गाज़ा पट्टी
राजधानी |
गजा 31°25′N 34°20′E |
सबसे बड़ा नगर | गाज़ा |
राजभाषा(एँ) | अरबी |
सरकार | इस्लामिक समाजवादी राज्य |
सत्ताधारी पार्टी हमास |
प्रधानमन्त्री इस्माइल हनियाह राष्ट्रपति महमूद अब्बास |
संगठित 13 सितम्बर 1993 ओस्लो सन्धि | हस्ताक्षर पीए मई 1994 में आशिंक रूप से काबिज हुआ; सितम्बर 2005 में पूरी तरह से पकड़ बनाई; हमास 2007 से सत्ता में है (इजराइल वायुसीमा, जमीनी सीमा और समुद्री सीमा पर नियन्त्रण रखता है।) |
क्षेत्रफल - | कुल 360 km2 (201 वाँ) |
जनसंख्या |
जुलाई 2007 जनगणना 1,481,080 (149 वां1) जनगणना 9, 520 |
सकल घरेलू उत्पाद (पीपीपी) - प्राक्कलन |
कुल $770 मिलियन (160 वां1) प्रति व्यक्ति $600 (167 वां1) |
मुद्रा |
मिस्री पाउण्ड (वास्तविक) इजराइली नई शिकल (ILS) |
समय मण्डल |
(यू॰टी॰सी॰+2) ग्रीष्मकालीन (दि॰ब॰स॰) (यू॰टी॰सी॰+3) |
दूरभाष कूट |
970 |
ग़ज़ा पट्टी इस्रायल के दक्षिण-पश्चिम में स्थित एक 6-10 कि॰मी॰ चौड़ी और कोई 45 कि॰मी॰ लम्बा क्षेत्र है। इसके तीन ओर इसरायल का नियन्त्रण है और दक्षिण में मिस्र है। हालाँकि जमीन के सिर्फ दो तरफ इसरायल है पर पश्चिम की दिशा में भूमध्यसागर में इसकी जलीय सीमा इसरायल द्वारा नियन्त्रित होती है।
इसका नाम इसके प्रमुख शहर ग़ज़ा (उच्चारण ग़ाज़्ज़ा भी होता है) पर पड़ा है। इसका दूसरा प्रमुख शहर इसके दक्षिण में स्थित राफ़ा है जो मिस्र की सीमा से लगा है। गजापट्टी में कोई 25 लाख लोग रहते हैं जिसमें कोई 4 लाख लोग अकेले गाज़ा शहर में रहते हैं।
इतिहास
गज़ापट्टी का इतिहास तो 1948 में इस्राइल के निर्माण के साथ शुरु होता है पर इस क्षेत्र के सम्पूर्ण इतिहास के लिए इसरायल का इतिहास देखा जा सकता है। 1948 में इसरायल के निर्माण के बाद यहाँ बसे अरबों के लिए अर्मिस्टाइस रेखा बनाई जिसके तहत गजा पट्टी में अरब, जो सुन्नी मुस्लिम हैं, रहेंगे तथा यहूदी इसरायल मे रहेंगे। 1948 से लेकर 1967 तक इसपर मिस्र का अधिकार था पर 1967 के छःदिनी लड़ाई में, जिसमें इसरायल ने अरब देशों को निर्णायक रूप से हरा दिया, इसरायल ने मिस्र से यह पट्टी भी छीन ली जिसके बाद से इसपर इसरायल का नियंत्रण बना हुआ है।
गाजा भूमध्यसागरीय तट पर एक तटीय पट्टी है, जो प्राचीन व्यापार और समुद्री मार्गों के एक चौराहे के रूप में एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थान रखती है। गाजा ने एक अशांत अतीत का सामना किया है। साल 1917 में तुर्क साम्राज्य के शासन से लेकर पिछली शताब्दी में ब्रिटिश, मिस्र और इजरायली सैन्य शासन तक चली हिंसा के फलस्वरूप आज फलस्तीनी लोगों का घर गाजा दुनिया की सबसे बड़ी खुली जेल के रूप में तब्दील हो गया है। इजरायल और मिस्र ने इसके चारों ही ओर से कड़ी नाकेबंदी कर रखी है।
साल 1948: ब्रिटिश शासन का अंत
साल 1940 के दशक के अंत में जब फलस्तीन में ब्रिटिश औपनिवेशिक प्राधिकरण कमजोर हुआ, तो यहूदी और अरब समुदायों के बीच तनाव बढ़ गया। यह आखिरकार मई 1948 में नए-नए स्थापित यहूदी राज्य इजरायल और उसके मुस्लिम अरब पड़ोसियों के बीच एक पूर्ण युद्ध में बदल गया। इस संघर्ष ने हजारों फलस्तीनी लोगों को विस्थापित कर दिया। इससे वे गाजा पट्टी में शरण लेने के लिए मजबूर हो गए। मिस्र की हमलावर सेना ने इस संकीर्ण तटीय पट्टी पर कब्जा कर लिया, जिससे गाजा की आबादी लगभग 200,000 हो गई।
साल 1950 और 1960 का दशक: मिस्र का नियंत्रण
मिस्र ने दो दशकों तक चले अपने सैन्य शासन के तहत गाजा पट्टी का प्रशासन किया। मिस्र ने फलस्तीनी लोगों को मिस्र में काम करने और अध्ययन करने की अनुमति दी। फलस्तीनी 'फिदायिन' जिनमें से कई शरणार्थी थे, उन्होंने इजरायल पर हमले किए, जिससे इजरायल को इसका जवाब देना पड़ा। संयुक्त राष्ट्र ने संयुक्त राष्ट्र राहत और कार्य एजेंसी (UNRWA) की स्थापना की, जो वर्तमान में गाजा पट्टी और अन्य क्षेत्रों में 16 लाख पंजीकृत फलस्तीनी शरणार्थियों को सेवाएं प्रदान करती है।
साल 1967: युद्ध और इज़राइली कब्जा
साल 1967 के पश्चिम एशिया के संघर्ष के दौरान इजरायल ने गाजा पट्टी पर कब्जा कर लिया। उस समय, एक इजरायली जनगणना में गाजा की आबादी 394,000 दर्ज की गई थी, जिसमें 60 प्रतिशत से अधिक शरणार्थी थे। मिस्रवासियों के चले जाने के बाद, कई गाज़ा के श्रमिकों ने इज़राइल के अंदर कृषि, निर्माण और सेवा उद्योगों में नौकरियां ले लीं, जहां तक वे उस समय आसानी से पहुंच सकते थे। यहां इज़रायली सैनिक उन जगहों और बस्तियों की रक्षा करने के लिए बने रहे जिन्हें इज़रायल ने अगले कुछ सालों में बनाया। इजरायली सेना की मौजूदगी फ़िलिस्तीनी आक्रोश का कारण बनी।
साल 1987: पहला फलस्तीनी विद्रोह, हमास का उदय
साल 1967 के युद्ध के दो दशक बाद, फलस्तीनी लोगों ने अपना पहला विद्रोह या इंतिफादा शुरू किया। यह आंदोलन दिसंबर 1987 में गाजा के जबालिया शरणार्थी शिविर में एक इजरायली ट्रक और फलस्तीनी श्रमिकों के बीच एक दुखद दुर्घटना के बाद शुरू हुआ। इस घटना के परिणामस्वरूप पथराव, हड़ताल और बंद हुए। जनता में इस गुस्से का फायदा उठाते हुए मिस्र स्थित मुस्लिम ब्रदरहुड ने हमास की स्थापना की, जो गाजा में स्थित एक सशस्त्र फलस्तीनी गुट है। यह यासर अराफात की धर्मनिरपेक्ष फतह पार्टी के लिए एक बड़ी चुनौती पेश करता है।
इस गुस्से को भांपते हुए, मिस्र स्थित मुस्लिम ब्रदरहुड ने गाज़ा में एक सशस्त्र फिलिस्तीनी शाखा- हमास बनाई. हमास, इजरायल द्वारा कब्जे वाले फिलिस्तीन में इजरायल के विनाश और इस्लामी शासन की बहाली के लिए समर्पित, यासिर अराफात की धर्मनिरपेक्ष फतह पार्टी का प्रतिद्वंद्वी बन गया। अराफात ने फिलिस्तीन मुक्ति संगठन का नेतृत्व किया था।
साल 1993: ओस्लो समझौता, फलस्तीनी अर्ध-स्वायत्तता
इज़राइल और फिलिस्तीनियों ने 1993 में एक ऐतिहासिक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए जिसके परिणामस्वरूप फिलिस्तीनी प्राधिकरण का निर्माण हुआ। अंतरिम समझौते के तहत, फिलिस्तीनियों को पहले गाज़ा और वेस्ट बैंक के जेरिको में सीमित नियंत्रण दिया गया था। उस समय दशकों के निर्वासन के बाद अराफात गाज़ा लौट आए।
ओस्लो प्रक्रिया ने नव निर्मित फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण को कुछ स्वतंत्रता दी, और इसमें परिकल्पना की गई कि पांच वर्षों के बाद राज्य का दर्जा दिया जाएगा। लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ। इज़राइल ने फ़िलिस्तीनियों पर सुरक्षा समझौतों से मुकरने का आरोप लगाया, और फ़िलिस्तीनी इज़रायली बस्तियों के निर्माण को जारी रखने से नाराज़ थे।
हमास और इस्लामिक जिहाद ने शांति प्रक्रिया को पटरी से उतारने की कोशिश के लिए बमबारी की, जिसके कारण इज़राइल को गाज़ा से फिलिस्तीनियों की आवाजाही पर और अधिक प्रतिबंध लगाने पड़े। साल 2000 में, दूसरे फिलिस्तीनी इंतिफादा के फैलने के साथ इजरायल-फिलिस्तीनी संबंध और खराब हो गए। फ़िलिस्तीनियों ने आत्मघाती बम विस्फोटों और गोलीबारी से हमला किया और इज़रायल ने हवाई हमलों, विध्वंस, नो-गो ज़ोन और कर्फ्यू के दौर की शुरुआत की।
गाज़ा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा कभी आर्थिक स्वतंत्रता के लिए विफल फिलिस्तीनी आशाओं का प्रतीक था और फिलिस्तीनियों का बाहरी दुनिया से एकमात्र सीधा संबंध था। जिस पर इज़राइल या मिस्र का नियंत्रण नहीं था। 1998 में इसे खोला गया था। इज़राइल ने इसे सुरक्षा के लिए खतरा माना और संयुक्त राज्य अमेरिका पर 11 सितंबर, 2001 के हमलों के कुछ महीने बाद रडार एंटीना और रनवे को नष्ट कर दिया। एक अन्य नुकसान गाज़ा की फिशिंग इंडस्ट्री को कम करना था, जो हजारों लोगों की आय का स्रोत थी।
साल 2000: दूसरा फलस्तीनी विद्रोह
वर्ष 2000 में, इजरायली-फलस्तीनी संबंध दूसरे इंतिफादा के फैलने के साथ और खराब हो गए। इसके बाद आत्मघाती बम विस्फोट, गोलीबारी, इजरायली हवाई हमले, विध्वंस और कर्फ्यू तक का गाजा गवाह बना। गाज़ा अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा, फलस्तीनी आर्थिक स्वतंत्रता का प्रतीक था और बाहरी दुनिया से उनका एकमात्र संपर्क था। इसे इजरायल या मिस्र द्वारा नियंत्रित नहीं किया गया था, को ध्वस्त कर दिया गया था। इज़रायल ने तस्करी रोकने के लिए गाजा के मछली पकड़ने के क्षेत्र को भी प्रतिबंधित कर दिया।
गाज़ा से हटी इजरायली सेना
अगस्त 2005 में इज़राइल ने गाज़ा से अपने सभी सैनिकों और निवासियों को हटा लिया। हालांकि, तब तक इज़राइल ने गाज़ा को बाहरी दुनिया से पूरी तरह से अलग कर दिया था। इजरायली बस्तियों को हटाने से गाज़ा के भीतर आवाजाही की ज्यादा स्वतंत्रता हुई और "टनल इकॉनोमी" में तेजी आई क्योंकि सशस्त्र समूहों, तस्करों और उद्यमियों ने तेजी से मिस्र में कई सुरंगें खोद दीं।
2006 में, हमास ने फिलिस्तीनी संसदीय चुनावों में आश्चर्यजनक जीत हासिल की और फिर अराफात के उत्तराधिकारी, राष्ट्रपति महमूद अब्बास के प्रति वफादार बलों को उखाड़ फेंककर गाज़ा पर पूर्ण नियंत्रण हासिल कर लिया। इसके बाद ज्यादातर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने हमास-नियंत्रित क्षेत्रों में फ़िलिस्तीनियों को मदद में कटौती कर दी क्योंकि हमास एक आतंकवादी संगठन है।
इज़राइल ने हजारों फिलिस्तीनी श्रमिकों को देश में प्रवेश करने से रोक दिया, जिससे उनकी आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत बंद हो गया। इज़रायली हवाई हमलों ने गाज़ा के एकमात्र विद्युत ऊर्जा संयंत्र को नष्ट कर दिया, जिससे बड़े पैमाने पर ब्लैकआउट हो गया। सुरक्षा चिंताओं का हवाला देते हुए, इज़राइल और मिस्र ने भी गाज़ा क्रॉसिंग के माध्यम से लोगों और सामानों की आवाजाही पर कड़े प्रतिबंध लगाए।
वर्ष 2005: गाजा से इजरायली बस्तियों की वापसी
अगस्त 2005 में, इजरायल ने गाजा पट्टी से अपने सैनिकों और वहां बसने वालों को वापस ले लिया, जिससे प्रभावी रूप से इस क्षेत्र को बाहरी दुनिया से अलग कर दिया गया। फलस्तीनी लोगों ने इजरायल के खाली किए संरचनाओं को ध्वस्त कर दिया। इसके बाद एक 'सुरंग अर्थव्यवस्था' तब पनपी जब मिस्र में सुरंगें खोदी गईं। हालांकि, निकासी ने भी बस्ती-आधारित उद्योगों को समाप्त कर दिया, जिससे गाजा के लोगों का रोजगार प्रभावित हुआ।
2005 में इसरायल ने फ़िलीस्तीनी स्वतंत्रता संस्था के साथ हुए समझौते के तहत ग़ज़ा और पश्चिमी तट से बाहर हट जाने का फेसला किया। साथ ही इसरायल ने ग़ज़ा तथा पश्चिमी तट पर स्थित यहूदी बस्तियों को भी हटाने का काम शुरु किया। २००७ में हुए चुनाव में हमास ने इसकी सत्ता हथिया ली जो इसरायल और संयुक्त राष्ट्र सहित कई देशों के अनुसार एक आतंकवादी संगठन है। हमास ने पश्चिमी तट पर स्थित अरबों से भी सम्पर्क तोड़ लिया जो 1948 में इसरायल के निर्माण का ही परिणाम हैं और इस कारण गजावासियों से अब तक जुड़े हुए थे।
गाजा पट्टी एक फिलिस्तीनी क्षेत्र है। यह मिस्त्र और इजरायल के मध्य भूमध्यसागरीय तट पर स्थित है। फिलिस्तीन अरबी और बहुसंख्य मुस्लिम बहुल इलाका है। फिलिस्तीन और कई दूसरे मुसलमान देश इजराइल को यहुदी राज्य के रूप में मानने से इनकार करते हैं। इसमें एक अहम मुद्दा इसे राज्य के रूप में स्वीकार करने का है तो दूसरा गाजा पट्टी का है जो इजराइल की स्थापना के समय से ही इजरायल और देशों के बीच संघर्ष का कारण साबित हुआ है । जून 1967 के युद्ध के बाद इजरायल ने फिर से गाजा पट्टी पर कब्जा कर लिया। इसके बाद इजरायल ने 25 सालों तक इस पर कब्जा बनाए रखा, लेकिन दिसंबर 1987 में गाजा के फिलिस्तिनियों के बीच दंगों और हिंसक झड़प ने एक विद्रोह का रूप ले लिया। 1994 में इजरायल ने फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन (पीएलओ) द्वारा हस्ताक्षरित ओस्लो समझौते की शर्तों के तहत फिलिस्तीनी अथॉरिटी (पीए) को गाजा पट्टी में सरकारी प्राधिकरण का चरणबद्ध स्थानांतरण शुरू किया। साल 2000 की शुरुआत में, पीए और इजरायल के बीच वार्ता नकाम होने के कारण हिंसा अपने चरम पर पहुंच गया, जिसे खत्म करने के लिए इजरायल के तत्कालीन प्रधानमंत्री एरियल शेरोन ने एक योजना की घोषणा की। इसके तहत गाजा पट्टी से इजरायल सैनिकों को वापस हटने और स्थानीय निवासियों को बसाने था। सितंबर 2005 में इजराइल ने क्षेत्र से पलायन पूरा कर लिया और गाजा पट्टी पर नियंत्रण को पीए में स्थानांतरित कर दिया गया। हालांकि, इजरायल ने क्षेत्ररक्षा और हवाई गश्त को जारी रखा। जून 2007 में हमास ने गाजा पट्टी पर कब्जा कर लिया और फतह (फिलिस्तिन राजनीतिक समूह) की अगुवाई वाली आपातकालीन कैबिनेट ने पश्चिम बैंक का कब्जा कर लिया था। फिलिस्तीनी अथॉरिटी अध्यक्ष महमूद अब्बास ने कहा कि गाजा हमास के नियंत्रण में रहेगा। 2007 के अंत में इजरायल ने गाजा पट्टी को दुश्मन क्षेत्र घोषित कर दिया और इसके साथ ही गाजा पर कई प्रतिबंधों को मंजूरी दी। इसमें बिजली कटौती, भारी प्रतिबंधित आयात और सीमा को बंद करना शामिल था। जनवरी 2008 में हुए हमलों के बाद गाजा पर इन प्रतिबंध को और बढ़ा दिया गया और सीमा को सील कर दिया गया। ताकि अस्थायी रूप से ईंधन आयात को रोका जा सके।
गाज़ा एक कोस्टल स्ट्रिप है जो भूमध्यसागरीय तट के साथ पुराने व्यापारिक और समुद्री मार्गों पर स्थित है। 1917 तक यह क्षेत्र ऑटोमन साम्राज्य के कब्जे में रहा था और पिछली सदी में यह ब्रिटिश से मिस्र और इजरायली सैन्य शासन में चला गया। अब यह एक बाड़ से घिरा क्षेत्र है जिसमें 2 मिलियन से अधिक फिलिस्तीनी रहते हैं।
साल 1948 में जैसे ही फिलिस्तीन में ब्रिटिश कॉलोनियल शासन समाप्त हुआ, यहूदियों और अरबों के बीच हिंसा तेज हो गई और इस कारण मई 1948 में तब नए बने इज़राइल स्टेट और इसके अरब पड़ोसियों के बीच युद्ध शुरू हो गया। अपने घरों से भागने या निकाले जाने के बाद हजारों फिलिस्तीनियों ने गाजा में शरण ली।
हमलावर मिस्र की सेना ने 25 मील (40 किमी) लंबी एक संकीर्ण तटीय पट्टी पर कब्जा कर लिया था, जो सिनाई से अश्कलोन के ठीक दक्षिण तक जाती थी। शरणार्थियों के आने से गाजा की आबादी तिगुनी होकर लगभग 200,000 हो गई।
संयुक्त राष्ट्र ने एक शरणार्थी एजेंसी, UNRWA की स्थापना की, जो आज गाजा में 1.6 मिलियन रजिस्टर्ड फिलिस्तीन शरणार्थियों के साथ-साथ जॉर्डन, लेबनान, सीरिया और वेस्ट बैंक में फिलिस्तीनियों के लिए काम करती है।
साल 2006: हमास राज में अलग- थलग पड़ा गाजा
हमास ने साल 2006 में फलस्तीनी संसदीय चुनावों में एक आश्चर्यजनक जीत हासिल की। इसके बाद में हमास ने गाजा पट्टी पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित कर लिया। हमास ने राष्ट्रपति महमूद अब्बास के प्रति वफादार बलों को सत्ता से हटा दिया। इसके बाद अंतरराष्ट्रीय समुदाय के कई देशों ने हमास-नियंत्रित क्षेत्रों में सहायता रोक दी और इसे आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया। इजरायल ने हजारों फलस्तीनी श्रमिकों के प्रवेश को प्रतिबंधित कर दिया और गाजा क्रॉसिंग के माध्यम से लोगों और सामानों की आवाजाही पर कड़े प्रतिबंध लगाए। इससे गाजा की अर्थव्यवस्था को तगड़ा झटका लगा।
संघर्ष का अंतहीन चक्र
इजरायल और फलस्तीनी उग्रवादी समूहों के बीच संघर्ष, हमलों और प्रतिशोध का चक्र शुरू हो गया जिससे गाजा पट्टी को बार-बार आर्थिक झटके लगे हैं। सबसे गंभीर झड़पों में से एक साल 2014 में हुई, जब हमास और अन्य समूहों ने इज़रायली शहरों में रॉकेट दागे। इसके बाद गाजा में विनाशकारी इज़रायली हवाई हमले हुए और तोपखाने से बमबारी हुई। अब ताजा हमलों के बाद इजरायल ने प्रण किया है कि वह हमास को सत्ता से उखाड़ फेकेगा। हमास की सैन्य ताकत को खत्म कर देगा। आने वाले दिनों में भीषण हिंसा देखने को मिल सकती है जिसके खाड़ी के अन्य देशों में भी फैलने की आशंका है।
लगातार चल रहा है संघर्ष
इजरायल और फिलिस्तीनी आतंकवादी समूहों के बीच संघर्ष, हमले और प्रतिशोध के कारण गाज़ा की अर्थव्यवस्था को बार-बार नुकसान उठाना पड़ा है। 2023 से पहले, सबसे खराब लड़ाई 2014 में हुई थी, जब हमास और अन्य समूहों ने इज़रायल के प्रमुख शहरों पर रॉकेट दागे थे। इज़राइल ने हवाई हमले और तोपखाने बमबारी की जिससे गाज़ा में बस्तियां तबाह हो गईं। इसमें 2,100 से अधिक फ़िलिस्तीनी मारे गए, जिनमें अधिकतर नागरिक थे। इज़रायल ने अपने मृतकों की संख्या 67 सैनिक और छह नागरिक बताई है।
7 अक्टूबर 2023 को, हमास के आतंकियों ने इज़राइल पर अचानक हमला किया, कस्बों में तोड़फोड़ की, सैकड़ों लोगों को मार डाला और दर्जनों बंधकों को वापस गाज़ा ले गए। इसके बाद इजरायल ने हमास को खत्म करने का वादा किया और अब लगातार जंग जारी है।
2009 का इसराली हमला
2008 में हुए संघर्ष विराम के बाद ग़ज़ा से हमास ने कई रॉकेट हमले दक्षिणी इसरायल में हुए। इसरायल ने भी कई हमले गाज़ा में किए। 2008 के दिसम्बर के आखिर में इसरायल ने ग़ज़ा पट्टी में अपने नागरिकों की हमास त्यक्त रॉकेटों की हत्या के बदले में हमला किया था। इसरायल के 13 लोग मारे गए जिसमें ३ नागरिक तथा 10 सैनिक थे जबकि बदले में ग़ज़ा के कोई 1300 लोग मारे गए। जनवरी में 22 दिन के बाद इसरायल ने एकतरफ़ा संघर्षविराम की घोषणा की। इसके बाद भी गाज़ा से राकेट दागे गए। इसके बाद इसरायल ने दोबारा सैनिक कार्यवाही की धमकी दी है।
पिछले कुछ दिनों में गाजा पट्टी से इजराइल पर रॉकट दागे गए, वहीं इजराइल ने जवाबी हमला करते हुए गाजा पट्टी पर हमला किया। इजराइल के हमले का निशाना मुख्य रूप से इस्लामिक जेहाद और हमास के ट्रेनिंग कैंप और हथियार बनाने के ठिकानों का निशाना बना गया। हमास का नौसेना केंद्र भी हमलों का निशाना रहा। गाजा पट्टी पर बार-बार ऐसे ही खूनी हालात पैदा हो रहे हैं, जिनमें आम नागरिक मारे जा रहे हैं। इस विवाद में इजरायल और हमास आमने-सामने होते हैं।
हमास इजरायल को देश ही नहीं मानता है और उसे खत्म करने की चुनौती देता है। दूसरी तरफ इजरायल और अमेरिका जैसे देश हमास को आतंकवादी संगठन मानते हैं और उसे समाप्त करना चाहते हैं। गाजा पट्टी पर हमास का अधिकार होने के बाद से ही इजरायल ने वहां तमाम तरह के प्रतिबंध लगाए हैं, जिसके कारण लोगों और आवश्यक सामग्री का क्षेत्र में परिवहन बंद हो गया है। हमास कहता है कि प्रतिबंध को हटाया जाए, जबकि इजरायल इसे जरूरी बताता है। आइये जानते हैं गाजापट्टी के बारे में
क्या है गाजा का विवाद
मध्यपूर्व में गाजा पट्टी सबसे विवादास्पद क्षेत्रों में से एक है। गाजा पट्टी बारुदी सुरंग पर बैठा हुआ है। इसको लेकर पिछले 70 सालों से विवाद चल रहा है। गाजा पट्टी एक फिलिस्तीनी क्षेत्र है। यह मिस्त्र और इजरायल के मध्य भूमध्यसागरीय तट पर स्थित है। यानी इसके एक ओर भूमध्य सागर है तो दूसरी ओर इजरायल तथा एक हिस्सा मिस्र को भी छूता है।यह मात्र 40 किमी लंबी और 10 किमी चौड़ी पट्टी है। इसका कुल क्षेत्र 235 वर्ग किलोमीटर है। फिलिस्तीन अरबी और बहुसंख्य मुस्लिम बहुल इलाका है, जहां की आबादी करीब 20 लाख है। इस पर इजरायल विरोधी आतंकी संगठन हमास द्वारा शासन किया जाता है।
जहां फिलिस्तीन और कई दूसरे मुसलमान देश इजराइल को यहूदी राज्य के रूप में मानने से इनकार करते हैं। 1947 के बाद जब संयुक्त राष्ट्र (UN) ने फिलिस्तीन को यहूदी और अरब राज्य में बांट दिया था, जिसके बाद से फिलिस्तीन और इजराइल के बीच संघर्ष जारी है। इसमें सबसे अहम मुद्दा इजराइल को राज्य के रूप में स्वीकार करने का है तो दूसरा गाजा पट्टी का है जो इजराइल की स्थापना के समय से ही इजरायल और दूसरे अरब देशों के बीच संघर्ष का कारण साबित हुआ है।
क्या है गाजा पट्टी का इतिहास ?
गाजा पट्टी के आकार का निर्धारण 1948-49 के अरब-इजरायली युद्ध के बाद हुआ था। इसके बाद गाजा पट्टी पर मिस्र ने 1948 से 1967 तक शासन किया। जून 1967 में छह दिनों के युद्ध के बाद इजरायल ने इस पट्टी पर कब्जा जमा लिया था और यह पूरी तरह उसके ही नियंत्रण में थी। इसके बाद इजरायल ने 25 सालों तक इस पर कब्जा बनाए रखा, लेकिन दिसंबर 1987 में गाजा के फिलिस्तिनियों के बीच दंगों और हिंसक झड़प ने एक विद्रोह का रूप ले लिया। हालांकि पट्टी की दक्षिणी सीमा पर मिस्र का ही कब्जा बरकरार रहा।
1994 में इजरायल ने फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन (पीएलओ) द्वारा हस्ताक्षरित ओस्लो समझौते की शर्तों के तहत फिलिस्तीनी अथॉरिटी (पीए) को गाजा पट्टी में सरकारी प्राधिकरण का चरणबद्ध स्थानांतरण शुरू किया। वर्ष 2000 की शुरुआत में फिलिस्तीनी अथॉरिटी और इजरायल के बीच वार्ता नाकाम होने से हिंसा अपने चरम पर पहुंच गई, जिसे सामाप्त करने के लिए इजरायल के तत्कालीन प्रधानमंत्री एरियल शेरोन ने एक योजना की घोषणा की। इसके तहत गाजा पट्टी से इजरायल सैनिकों को वापस हटाने और स्थानीय निवासियों को बसाने का प्रस्ताव था।
सितंबर 2005 में इजरायल ने गाजा पट्टी से अपनी सेना को वापस बुला लिया, जिसके बाद यह पट्टी फलस्तीन के अधिकार क्षेत्र में आ गई। हालांकि, इजरायल ने क्षेत्ररक्षा और हवाई गश्त को जारी रखा। अब मूलत: फलस्तीन (पेलेस्टाइन नेशनल अथॉरिटी) का ही एक हिस्सा होने के बावजूद यहां पर फिलस्तीन सरकार का नियंत्रण नहीं है।
गाजा पट्टी में रहने वालों में मूल निवासी और शरणार्थी शामिल
फिलिस्तीनी क्षेत्रों में गाजा पट्टी और इजरायल के कब्जे वाला वेस्ट बैंक शामिल हैं। पूर्वी यरुशलम के साथ वेस्ट बैंक की सीमा इजरायल, मृत सागर (Dead Sea) और जॉर्डन से जुड़ी हुई है। गाजा पट्टी में रहने वाले लोग फिलिस्तीनी हैं। इसमें रहने वाले लोगों में यहां के मूल निवासी और शरणार्थी दोनों शामिल हैं। यहां रहने वाले ज्यादातर लोग उत्तर में, विशेषकर गाजा शहर में रहते हैं।
कैसे इजरायल पर निर्भर है गाजा?
चूंकि, गाजा चारों ओर से इजरायल से घिरा हुआ है। इसलिए यहां किसी भी तरह की सप्लाई इजरायल के रास्ते ही होती है। केम फलोम वो चेक पॉइंट है, जहां से गाजा को सप्लाई जाती है। इसमें खाने-पीने की चीजों से लेकर दवा और दूसरी चीजें भी शामिल हैं। 2007 से गाजा फिलिस्तीन अथॉरिटी के कंट्रोल से निकलकर हमास के कंट्रोल में आ गया। इजरायल के अलावा अमेरिका, यूके और कनाडा जैसे देशों ने हमास को आतंकी संगठन करार दिया है। जबकि न्यूजीलैंड जैसे देशों ने हमास के मिलिट्री विंग को आतंकवादी संगठन माना है।
हमास को इजरायल मंजूर नहीं वो इसे फिलिस्तीन की जमीन पर कब्जा मानता है। हमास फिलिस्तीन की आजादी के लिए लड़ाई की बात करता है। ताजा हमले को भी हमास ने इजरायल की ऑपरेशनल फोर्स के खिलाफ आजादी की लड़ाई बताया है।
हमास को कौन-कौन से देश करते हैं समर्थन?
हमास को ईरान से भारी समर्थन मिलता है। काउंसिल ऑफ फॉरिन रिलेशन के मुताबिक, ईरान हमास को पैसे लेकर हथियार... यहां तक कि ट्रेनिंग तक देता है। हालांकि, इजिप्ट सिर्फ हमास के राजनीतिक समर्थन की बात करता है। लेकिन इजरायल का आरोप है कि हमास की ताकत के पीछे इजिप्ट भी है। इसके साथ ही लेबनान का हजबुल्लाह संगठन तो हमास को खुलेआम समर्थन करता ही है। इस हमले के बाद भी इजरायल की उत्तरी सीमा से लगने वाले इलाके में एक्टिव हिजबुल्लाह ने हमला किया। हालांकि, इस हमले के बाद इजरायल की तरफ से भी जवाबी कार्रवाई की गई।
अलक्सा मस्जिद इजरायल-गाजा के बीच टकराव का एक बड़ा कारण
अलक्सा मस्जिद इजरायल-गाजा के बीच टकराव का एक बड़ा कारण है। मक्का-मदीना के बाद यरूशलम इस्लाम का दूसरा सबसे पवित्र जगह माना जाता है। यहूदी भी इसे सबसे पाक जगह मानते हैं। वहां इजरायल का नियंत्रण हमास के लड़ाकों को कतई मंजूर नहीं है। गाजा का आरोप रहा है कि इजरायल गाजा को लेकर अपनी मनमर्जी करता रहता है। गाजा पर जिस तरीके से इजरायल का नियंत्रण है, उससे दुनिया की सबसे बड़ी ओपन जेल भी कहा जाता है।
अमेरिका ने की इजरायल को मदद की पेशकश
इधर, अमेरिका ने इजराइल को मिलिट्री सपोर्ट देने की बात कही है। US डिफेंस सेक्रेटरी लॉयड ऑस्टिन ने कहा- "मदद के लिए हमारे जहाज और लड़ाकू विमान इजराइल की तरफ बढ़ रहे हैं। हमने USS जेराल्ड आर फोर्ड एयरक्राफ्ट कैरियर (वॉरशिप) को अलर्ट कर दिया है।"
लेबनान के संगठन हिजबुल्लाह ने अमेरिका को दी धमकी
जंग के बीच लेबनान के संगठन हिजबुल्लाह ने अमेरिका को धमकी दी है। उसने कहा है- "अमेरिका ने अगर सीधे तौर पर जंग में दखल दिया तो वो मिडिल ईस्ट में अमेरिकी ठिकानों पर हमला कर देंगे।
कैसे फलस्तीन में बढ़ा यहूदियों का पलायन
1917 में बाल्फोर घोषणा में ब्रिटेन ने फलस्तीन में यहूदी लोगों के लिए अलग निवास स्थान का समर्थन किया था। इसके अगले साल ही 1918 में प्रथम विश्व युद्ध में ओटोमन साम्राज्य की हार हुई और फलस्तीन पर ब्रिटेन ने कब्जा कर लिया। यहां अरबी और यहूदी आबादी रहती थी और यहूदियों को बाहरी कहा जाता था, जबकि अरबी यहीं के रहने वाले थे। उस वक्त फलस्तीन में अरबियों की संख्या बहुत ज्यादा थी, लेकिन धीरे-धीरे यहूदियों की संख्या बढ़ने लगती है और 1922 से 1935 के बीच दुनियाभर के 1,35,000 यहूदी यहां आकर रहने लगे। इस तरीके से फलस्तीन की जनसांख्यिकी में बदलाव आने लगा और अरब लोगों को अपने अधिकारों को लेकर खतरा महसूस होने लगा।
गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक से कितनी दूरी पर है इजरायल
इजरायल और फलस्तीन के बीच विवाद में गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक का नाम भी काफी सुनने में आ रहा है। ये दोनों शहर भी इस विवाद का हिस्सा हैं। गाजा पट्टी से इजरायल की दूरी 62 किमी है, जबकि वेस्ट बैंक इजरायल से 166.3 किमी दूर स्थित है।
गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक से कितनी दूरी पर है इजरायल
इजरायल और फलस्तीन के बीच विवाद में गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक का नाम भी काफी सुनने में आ रहा है। ये दोनों शहर भी इस विवाद का हिस्सा हैं। गाजा पट्टी से इजरायल की दूरी 62 किमी है, जबकि वेस्ट बैंक इजरायल से 166.3 किमी दूर स्थित है।
कब और कैसे बना फलस्तीन
1918 में प्रथम विश्व युद्ध खत्म होने के बाद फलस्तीन पर ओटोमन का साम्राज्य खत्म हुआ और ब्रिटेन ने इसे अपने कब्जे में ले लिया। ब्रिटेन पहले से ही बाल्फोर घोषणा के तहत यहूदियों के लिए अलग निवास स्थान बनाने का समर्थन कर रहा था। इस शासनादेश के तहत 1922 से 1947 के बीच बड़ी संख्या में दुनियाभर के यहूदी फलस्तीन पहुंचने लगे और यहूदियों की संख्या बढ़े लगी। 1947 में संयुक्त राष्ट्र में इजरायल और फलस्तीन दो देश बनाने का प्रस्ताव पारित हुआ और 1948 में फलस्तीन को तोड़कर इजरायल को अलग कर दिया गया। इजरायल को 55 फीसदी और फलस्तीन को 45 फीसदी हिस्सा दिया गया। 1948 में इजरायल ने वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी पर कब्जा किया और पूरी 72 प्रतिशत जमीन का मालिक बन बैठा।
कितना बड़ा है फलस्तीन
फलस्तीन का कुल क्षेत्रफल 6,020 वर्ग किलोमीटर है। इजरायल गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक से मिलकर बना है। यूएन में फलस्तीन को नॉन मेंबर ऑब्जर्वर स्टेट का दर्जा प्राप्त है। इसको वोटिंग का अधिकार नहीं है, लेकिन जनरल असेंबली की डिबेट में हिस्सा ले सकता है। फलस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन (PLO) को अंतरराष्ट्रीय समुदाय आधिकारिक प्रतिनिधि मानता है। PLO को फतह मूवमेंट लीड करता है और वेस्ट बैंक के कुछ हिस्सों में इसका कंट्र्रोल है। यूएन ने पीएलओ ही फलस्तीन का प्रतिनिधित्व करता है।
गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक से कितनी दूरी पर है फलस्तीन
फलस्तीन का हिस्सा गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक के बीच की दूरी 93.2 किलोमीटर है।
गाजा पट्टी को कौन कंट्रोल करता है
साल 2007 में हमास ने गाजा पट्टी पर कंट्रोल ले लिया था। यहीं से उसने 7 अक्टूबर को इजरायल पर हमला किया था। यहां कंट्रोल लेने के बाद हमास ने इजरायल पर हमले और हिंसा शुरू की। हमास से सामना करने के लिए इजरायल ने अपना डिफेंस सिस्टम मजबूत किया और बॉर्डर क्रॉसिंग पर भी निगरानी बढ़ाई।
हमास
हमास एक अरबी शब्द है, जिसका मतलब होता है, जोशीला या मजबूत या उत्साह से भरा हुआ। इसका पूरा नाम हरकत अल-मुकावामा अल-इस्लामिया है। इसका मकसद वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी में स्वतंत्र इस्लामी राज्य की स्थापना करना है। साल 1987 में हमास की स्थापना हुई थी। हमास ने साल 2007 में गाजा पट्टी पर कब्जा किया था। तब फलस्तीन में गृह युद्ध हुआ था। फलस्तीन अथॉरिटी के राष्ट्रपति महमूद अब्बास के समर्थन वाले फतह गुट के लड़ाकों से जंग के बाद हमास ने गाजा पट्टी पर कब्जा किया था। गाजा में हमास मूवमेंट की शुरुआत वर्ष 1987 में हुई थी। इमाम शेख अहमद यासीन ने अपने सहयोगी अब्दुल अजीज अल रनतीसी के साथ इजरायल के खिलाफ पहले इंतिफादा (विद्रोह या जोरदार मूवमेंट) की शुरुआत की थी। अल जजीरा के मुताबिक, इस प्रकार से मिस्र के मुस्लिम ब्रदरहुड की शाखा के तौर पर हमास की शुरुआत हुई थी।
हमास कब, कैसे बना
साल 1935 में जहां फलस्तीन में यहूदियों का इमीग्रेशन बढ़ रहा था और ब्रिटिशों द्वारा गठित पील कमीशन ने फलस्तीन के बंटवारे की सिफारिश की। यह सब देखकर अरबियों ने अपने अधिकारों के लिए आवाज उठानी शुरू की और करीब 6 महीने की हड़ताल की। वहीं, यहूदियों ने भी इस विरोध को दबाने की कोशिश की। हमास का गठन दिसंबर, 1987 में हुआ था। जिस साल हमास का गठन हुआ था, उसी साल फलस्तीन में इंतिफादा मूवमेंट चला।
कौन हमास का चीफ
हमास का गठन शेख अहमद यासीन नाम के फलस्तीनी मौलाना ने किया था। वह मिस्त्र की मुस्लिम ब्रदरहुड की फलस्तीनी ब्रांच का हिस्सा थे। इस वक्त हमास का मुखिया इस्माइल हानियेह है और इसकी आर्मी विंग का प्रमुख मोहम्मद दायफ है। वह साल 2002 से इसका चीफ है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, उसका जन्म 1960 के दशक में गाजा में खान यूनिस शरणार्थी शिविर में हुआ था। पहले उसका नाम मोहम्मद दीब इब्राहिम अल-मसरी था।
फंडिंग और हथियार कहां से मिलता है
तंग हाली की बात करने वाले हमास ने इजरायल की जमीन पर जिस तरह कत्लेआम मचाया है, उससे यह सवाल खड़ा होता है कि इसके लिए उसे फंडिंग कर कौन रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, हमास को फंडिंग करने वाले इस्लामिक देश हैं। ईरान और कतर समेत कई मुस्लिम देश हमास को उकसाते हैं और फिर इन हरकतों के लिए उसे जरूरी फंड और हथियार मुहैया करवाते हैं।
कैसे करता है रॉकेट हमले
हमास के हमलों ने पूरे इजरायल को हिलाकर रख दिया है। हमास का हमले का करने का तरीका काफी अलग है। यह घनी आबादी वाले इलाकों में सुरंगे बनाकर हमले करता है। कई बार ये सुरंग स्कूलों, अस्पताओं अन्य नागरिक भवनों में जाकर खुलती हैं। इजरायली डिफेंस फोर्स (IDF) का कहना है कि इन सुरंगों को कई बार खोजना बेहद मुश्किल हो जाता है क्योंकि इन्हें बहुत अच्छे से छिपाया गया होता है। इन हमलों में करोड़ों रुपये का खर्च आता है। आईडीएफ का कहना है कि इजरायल नागरिक परियोजनाओं के लिए हर महीने बजरी, लोहा, सीमेंट, लकड़ी जैसे सामान जो गाजा भेजता है, उसका इस्तेमाल चरमपंथी हमास भी करता है।
वेस्ट बैंक
फलस्तीन का दूसरा हिस्सा वेस्ट बैंक है। इसके कुछ हिस्सों पर फतह मूवमेंट वाला फलस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन कंट्रोल करता है। वेस्ट बैंक इजरायल के पूर्वी हिस्से पर बसा है और इसकी एक सीमा जॉर्डन नदी के पश्चिमी हिस्से से मिलती है इसलिए इसको वेस्ट बैंक नाम दिया गया है। यहां 30 लाख फलस्तीनी आबादी रहती है। इजरायल के कब्जे वाला यरुशलम इसी के अंदर आता है। इसका क्षेत्रफल 5,860 वर्ग किलोमीटर है।
वेस्ट बैंक में किसकी सरकार
साल 1967 में सिक्स-डे वॉर के दौरान इजरायल ने पूर्वी यरुशलम और वेस्ट बैंक पर कब्जा कर लिया था। पहले यहां जॉर्डन का कंट्रोल था। 1967 में जब इजरायल ने लाखों यहूदियों को यहां बसाया था और अब भी यहां यहूदियों को बसाया जा रहा है। वेस्ट बैंक के 40 फीसदी हिस्से पर फतह मूवमेंट का कंट्रोल है और बाकी को इजरायल चलाता है।
PLO क्या है, कौन इसके नेता हैं और अभी सत्ता में कौन?
फॉरेन पॉलिसी के मुताबिक, विभिन्न दलों ने मिलकर साल 1964 में PLO का गठन किया था. संयुक्त राष्ट्र में फलस्तीन का प्रतिनिधित्व PLO करता है. फतह, पॉपुलर फ्रंट फोर द लिबरेशन ऑफ फलस्तीन, डेमोक्रेटिक फ्रंट फोर द लिबरेशन ऑफ फलस्तीन और फलस्तीन पीपल्स पार्टी इसका हिस्सा हैं. हालांकि, इसको लीड फतह मूवमेंट करता है और डेमोक्रेटिक फ्रंट इसकी शाखा है. मिलिटेंट ग्रुप हमास और फलस्तीन इस्लामिक जिहाद इसका हिस्सा नहीं हैं और फलस्तीन अथॉरिटी के साथ इसके रिश्तों पर भी वह ऐतराज जताते हैं. फलस्तीन अथॉरिटी इजरायल के कंट्रोल में है और इजरायली अधिकारी वेस्ट बैंक में सिक्योरिटी की देख-रेख के लिए फलस्तीन अथॉरिटी के लिए काम करते हैं. इजरायल और PLO के बीच 1994 में एक सीक्रेट डील हुई थी, जिसे ओसलो समोझौते के नाम से जाना जाता है. डील का मकसद दोनों देशों के बीच जारी जंग को खत्म करना था. इस डील के बाद फलस्तीन अथॉरिटी अस्तित्व में आया और यासिर अराफात इसके राष्ट्रपति चुने गए. PLO का गठन करने वालों में यासिर अराफात भी शामिल थे और साल 2004 में उनकी मौत हो गई. इस वक्त महमूद अब्बास फलस्तीन अथॉरिटी के राष्ट्रपति हैं.
अल-अक्सा परिसर क्या है
7 अक्टूबर को इजरायल में हुए हमले का एक कारण अल-अक्सा मस्जिद भी बताया जा रहा है. यहूदी और फलस्तीनियों के लिए यह एक पवित्र स्थल है, जो 35 एकड़ जमीन स्थित पर है. जहां मुस्लिम इसे हरम अल शरीफ के नाम से जानते हैं तो वहीं, यहूदी इसे टेंपल माउंट कहते हैं.
अल-अक्सा परिसर में क्या-क्या है
इस कंपाउंड में अल-अक्सा मस्जिद और डोम ऑफ रॉक हैं, जो मुस्लिमों के लिए पवित्र स्थान हैं. वहीं, यहूदी कहते हैं कि उनके इतिहास के दो पवित्र टेंपल इस कंपाउंड में थे. पहले और दूसरे टेंपल को तोड़ दिया गया था. दूसरे मंदिर को जब तोड़ा गया तो इसकी एक दीवार बची रह गई, जो आज भी मौजूद है और वेस्टर्न वॉल या वेलिंग वॉल के तौर जानी जाती है. यहूदी इसे अपनी धार्मिक निशानी मानते हैं. इस पवित्र स्थान के अंदर हॉली ऑफ द हॉलीज पवित्र स्थान भी है. यहूदियों का विश्वास है कि इसी जगह दुनिया बनी और पैंगबर अब्राहम को ईश्वर ने अपने प्रिय बेटे इसहाक की बलि देने को कहा था. हालांकि, बाद में ईश्वर ने अब्राहम की श्रद्धा से खुश होकर इसहाक को बख्शने को कहा. वहीं, मक्का और मदीना के बाद मुसलमानों के लिए अल अक्सा तीसरा सबसे पवित्र स्थल है. मुसलमानों का मानना है कि साल 621 में पैगंबर मोहम्मद यहीं से जन्नत गए थे.
जानें अल अक्सा परिसर की पूरी हिस्ट्री
1967 की जंग के बाद पूर्वी यरूशलम पर इजरायल ने कब्जा कर लिया. इसी जगह पर अल अक्सा परिसर है, जिसमें यहूदी, ईसाई और मुस्लिमों के पवित्र स्थल हैं. 1967 के युद्ध से पहले जॉर्डन का अल अक्सा परिसर पर कब्जा था. समझौते के बाद अल अक्सा के प्रबंधन का काम जॉर्डन को मिला और सुरक्षा की जिम्मेदारी इजरायल की हो गई. इसके तहत कहा गया कि, मस्जिद में इबादत सिर्फ मुसलमान कर पाएंगे. हालांकि यहूदियों को जाने की इजाजत होगी. अल अक्सा परिसर में दो मस्जिदें हैं, एक अल अक्सा मस्जिद और दूसरी मस्जिद का नाम 'डोम ऑफ द रॉक'- कुब्बतुस सखरा. इसे यहूदी भी अति पवित्र मानते हैं.
ईसाई, मुस्लिम और यहूदियों के लिए अल अक्सा परसिर इसलिए पवित्र हैं, क्योंकि यहां पर अब्राहम/इब्राहिम, दाऊद/डेविड और सुलेमान/सोलेमन, इलियास, ईसा मसीह और पैगंबर मोहम्मद ने इस पवित्र धरती पर इबादत की थी. ईसा मसीह और पैगंबर मोहम्मद को छोड़कर अन्य सभी पैगंबर- ईसाई, मुस्लिम और यहूदियों, तीनों के लिए पूजनीय हैं. अल अक्सा परिसर को यहूदी टेंपल माउंट कहते हैं, जबकि मुस्लिम इसे हरम शरीफ और अल कुद्स कहते हैं. इस परिसर की पश्चिमी दीवार को वेलिंग वॉर कहते हैं, जहां पर यहूदी दीवार के पास खड़े होकर इबादत करते हैं, वे इस स्थान के भीतर नहीं जाते हैं, क्योंकि वे मानते हैं कि यह जगह बेहद पवित्र है और अंदर जाने से कहीं ये अपवित्र न हो जाए.
यरूशलम
ईसाई, यहूदी और मुसलमान यरूशलम को अपना पवित्र स्थान मानते हैं. तीनों की अपनी अलग-अलग मान्यताएं हैं. इसके पूर्व हिस्से पर इजरायल का कब्जा है. वह इसे अपनी राजधानी बताता है. हालांकि, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसके इस दावे को मान्यता प्राप्त नहीं है. वहीं, फलस्तीन की मांग करने वाले इसे अपनी राजधानी बनाना चाहते हैं. यरूशलम का 125 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्रफल पूर्व और पश्चिम यरूशलम में फैला है. 1948 में हुए इजरायल-अरब युद्ध के बाद वेस्ट हिस्सा इजरायल के पास और पूर्व हिस्सा जॉर्डन के पास आया, लेकिन 1967 के बाद इजरायल ने पूर्वी हिस्सा भी हथिया लिया.
धार्मिक महत्व की बात करें तो ईसाईयों का ऐसा मानना है कि ईसा मसीह को इसी शहर में सूली पर चढ़ाया गया था. वहीं, मुसलमानों का कहना है कि पैगंबर मोहम्मद यहीं से जन्नत गए थे. इसके अलावा, यहूदियों का कहना है कि उनका फर्स्ट और सेकेंड टेंपल यहीं पर है और सेकेंड टेंपल की आखिरी दीवार अभी भी यहां मौजूद है.
क्या है सिक्स- डे वॉर, जिसमें अरब देशों को इजरायल ने चटाई थी धूल
मई, 1948 में जब इजरायल बना तो अगले ही दिन अरब और इजरायल युद्ध छिड़ गया. युद्ध के दौरान लेबनान, सीरिया, इराक और मिस्त्र जैसे देशों ने इजरायल पर हमला कर दिया, जिसका इजरायलियों ने भी मुंह तोड़ जबाव दिया. इस युद्ध के बाद यरूशम ईस्ट और वेस्ट दो हिस्सों में बंट गया. वेस्ट पर इजरायल और ईस्ट पर जॉर्डन का कब्जा हो गया. फिर 1967 में दोबार लेबनान, सीरिया, इराक, मिस्त्र और जॉर्डन जैसे अरब देशों ने इजरायल पर हमला कर दिया और इजरायल भी डटकर खड़ा रहा. 6 दिन चले इस युद्ध को सिक्स-डे वॉर के नाम से जाना जाता है. इस युद्ध में अरब देशों को करारी हार मिली. अब इस लड़ाई में अल अक्सा परिसर के अल अक्सा और टेंपल माउंट वाले हिस्से पर इजरायल का कब्जा हो गया.
क्यों है दोनों देशों में विवाद ?
19वीं सदी में इजराइल वाली पूरी भूमि फिलिस्तीन के नाम से जानी जाती थी. यूरोप में बिखरे हुए यहूदी फिलिस्तीन की ओर पलायन करने लगे. धीरे-धीरे इनकी संख्या फिलिस्तीन में अधिक होती गई और यहूदियों ने फिलिस्तीन में जमीन खरीदना शुरू कर दिया. यहूदियों का वर्चस्व फिलिस्तीन में बढ़ता है और उन्होंने वहां से फिलिस्तीनियों को भगाना शुरू कर दिया. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान 42 लाख यहूदियों को हिटलर ने गैस चैंबर में डालकर मार दिया. उसके बाद फिलिस्तीन से यहूदी भागने लगे.
संयुक्त राष्ट्र में गया मामला
उसके बाद नए अस्तित्व में आए संयुक्त राष्ट्र में यहूदियों और फिलिस्तीनियों का मामला चला गया. संयुक्त राष्ट्र ने फैसला किया गया कि जहां यहूदियों की संख्या ज्यादा है, उसे इजराइल दे दिया जाए और बाकी बचे अरब बहुसंख्यकों को फिलिस्तीन दे दिया जाए. उसके बाद से ही दोनों देशों में विवाद जारी है. 2008-09, 2012, 2014, 2021 और 2022 में भी दोनों देशोंं के बीच युद्ध हुआ.