पश्चिमी चम्पारण

पश्चिम चंपारण भारत के बिहार राज्य का एक प्रशासनिक जिला है तिरहुत प्रमंडल के अंतर्गत भोजपुरी भाषी है। हिमालय के तराई प्रदेश में बसा यह ऐतिहासिक जिला जल एवं वनसंपदा से पूर्ण है। चंपारण का नाम चंपा + अरण्य से बना है जिसका अर्थ होता है- चम्पा के पेड़ों से आच्छादित जंगल। बेतिया जिले का मुख्यालय शहर हैं। बिहार का यह जिला अपनी भौगोलिक विशेषताओं और इतिहास के लिए विशिष्ट स्थान रखता है। महात्मा गाँधी ने पूर्वी चंपारण से अंग्रेजों के खिलाफ नील आंदोलन से सत्याग्रह की मशाल जलायी थी।
जिला एक नज़र में
क्षेत्रफल: 5228 स्क्वायर किलोमीटर
जनसंख्या: 3,935,042
जनसंख्या घनत्व: 753 प्रति स्क्वायर किलोमीटर
साक्षरता दर : 55.70%
लैंगिक दर : 909 ( प्रति 1000 पुरुष )
अनुमंडल :3
प्रखंड/अंचल: 18
ग्राम: 1483
नगरपालिका क्षेत्र : 5
ग्राम पंचायतों की संख्या: 315
इतिहास
महात्मा गांधी ने राष्ट्रवादी राजेंद्र प्रसाद , अनुग्रह नारायण सिन्हा और ब्रजकिशोर प्रसाद के साथ 1917 में यहीं से चंपारण सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया था ।ऐतिहासिक दृष्टिकोण से पश्चिमी चंपारण एवं पूर्वी चंपारण एक है। चंपारण का बाल्मिकीनगर देवी सीता की शरणस्थली होने से अति पवित्र है वहीं दूसरी ओर गाँधीजी का प्रथम सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास का अमूल्य पन्ना है। राजा जनक के समय यह मिथिला प्रदेश का अंग था जो बाद में छठी सदी ईसापूर्व में वज्जि के साम्राज्य का हिस्सा बन गया। अजातशत्रु के द्वारा वज्जि को जीते जाने के बाद यह मौर्य वंश, कण्व वंश, शुंग वंश, कुषाण वंश तथा गुप्त वंश के अधीन रहा। सन 750 से 1155 के बीच पाल वंश का चंपारण पर शासन रहा। इसके बाद चंपारण कर्णाट वंश के अधीन हो गया। बाद में सन 1213 से 12227 ईस्वी के बीच बंगाल के गयासुद्दीन एवाज ने नरसिंह देव को हराकर मुस्लिम शासन स्थापित की। मुसलमानों के अधीन होने पर तथा उसके बाद भी यहाँ स्थानीय क्षत्रपों का सीधा शासन रहा।
मुग़ल काल के बाद के चंपारण का इतिहास बेतिया राज का उदय एवं अस्त से जुड़ा है। बादशाह शाहजहाँ के समय उज्जैन सिंह और गज सिंह ने बेतिया राज की नींव डाली। मुगलों के कमजोर होने पर बेतिया राज महत्वपूर्ण बन गया और शानो-शौकत के लिए अच्छी ख्याति अर्जित की। 1763 ईस्वी में यहाँ के राजा धुरुम सिंह के समय बेतिया राज अंग्रेजों के अधीन काम करने लगा। इसके अंतिम राजा हरेन्द्र किशोर सिंह के कोई पुत्र न होने से 1897 में इसका नियंत्रण न्यायिक संरक्षण में चलने लगा जो अबतक कायम है। हरेन्द्र किशोर सिंह की दूसरी रानी जानकी कुँवर के अनुरोध पर 1910 में बेतिया महल की मरम्मत करायी गयी थी। बेतिया राज की शान का प्रतीक यह महल आज यह शहर के मध्य में इसके गौरव का प्रतीक बनकर खड़ा है।
उत्तर प्रदेश और नेपाल की सीमा से लगा यह क्षेत्र भारत के स्वाधीनता संग्राम के दौरान काफी सक्रिय रहा है। स्वतंत्रता आन्दोलन के समय चंपारण के ही एक रैयत श्री राजकुमार शुक्ल के आमंत्रण पर महात्मा गाँधी अप्रैल 1917 में मोतिहारी आए और नील की खेती से त्रस्त किसानों को उनका अधिकार दिलाया। अंग्रेजों के समय 1866 में चंपारण को स्वतंत्र इकाई बनाया था। प्रशासनिक सुविधा के लिए 1972 में इसका विभाजन कर पूर्वी चंपारण और पश्चिमी चंपारण बना दिए गया।
स्वतंत्रता सेनानी और लेखक रमेश चंद्र झा पहले व्यक्ति थे जिन्होंने चंपारण के समृद्ध साहित्यिक इतिहास को लिखा था। उनकी शोध आधारित पुस्तकें जिनमें चंपारण की साहित्य साधना (चम्पारण की साहित्य साधना) (1958), चंपारण: साहित्य और साहित्यिक लेखक (चम्पारण: साहित्य और साहित्य) (1967) और अपने और सपने: ए लिटरेरी जर्नी ऑफ चंपारण (अपना और सपना: चंपारण की साहित्य यात्रा) (1988) शामिल हैं, जो चंपारण , बिहार की समृद्ध साहित्यिक विरासत और इतिहास का सावधानीपूर्वक दस्तावेजीकरण करती हैं । ये मौलिक पुस्तकें शोधकर्ताओं, विद्वानों, पीएच.डी. के लिए मूलभूत संदर्भ बिंदु के रूप में काम करती रहती हैं। छात्र, और पत्रकार समान रूप से। चंपारण की ऐतिहासिक और साहित्यिक विरासत की झा की गहन खोज और संरक्षण ने साहित्यिक अनुसंधान के क्षेत्र में आधारशिला के रूप में उनकी जगह पक्की कर दी है।
भूगोल
जिले का क्षेत्रफल 5,228 वर्ग किलोमीटर (2,019 वर्ग मील) है, तुलनात्मक रूप से कनाडा के अमुंड रिंगनेस द्वीप के बराबर । पश्चिमी चम्पारण के उत्तर में नेपाल तथा दक्षिण में गोपालगंज जिला स्थित है। इसके पूर्व में पूर्वी चंपारण है जबकि पश्चिम में इसकी सीमा उत्तर प्रदेश के पडरौना तथा देवरिया जिला से लगती है। जिले का क्षेत्रफल 5228 वर्ग किलोमीटर है जो बिहार के जिलों में प्रथम है। जिले की अंतरराष्ट्रीय सीमा बगहा-1, बगहा-2, गौनहा, मैनाटांड, रामनगर तथा सिकटा प्रखंड के 35 किलोमीटर तक उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व में नेपाल के साथ लगती है।
जलवायु
अपने पड़ोसी जिलों की तुलना में पश्चिमी चंपारण की जलवायु शीतल एवं आर्द्र है। हिमालय से आनेवाली ठंडी हवाओं के कारण यहाँ सर्दी अधिक होती है। गर्मी में तापमान 43° सेंटीग्रेड तक पहुँच जाता है। जून के अंत में मॉनसूनी वर्षा आरंभ हो जाती है। तराई क्षेत्र में सालाना 140 मिमी से अधिक वर्षा होती है। उत्तरी भाग में होनेवाली तीव्र वर्षा कई बार आवागमन में अवरोध का कारण बनता है।
धरातलीय संरचना
हिमालय की तलहठी में बसे पश्चिमी चम्पारण की धरातलीय बनावट में कई अंतर स्पष्ट दिखाई देते हैं। सबसे उत्तरी हिस्सा सोमेश्वर एवं दून श्रेणी है जहाँ की मिट्टी में शैल-संरचना का अभाव है और सिंचाई वाले स्थान पर भूमि कृषियोग्य है। यह सोमेश्वर श्रेणी से सटा तराई क्षेत्र है जो थारू जनजाति का निवास स्थल है। हिमालय के गिरिपाद क्षेत्र से रिसकर भूमिगत हुए जल के कारण तराई क्षेत्र को यथेष्ट आर्द्रता उपलब्ध है इसलिए यहाँ दलदली मिट्टी का विस्तार है। तराई प्रदेश से हटने पर समतल और उपजाऊ क्षेत्र मिलता है जिसे सिकरहना नदी (छोटी गंडक) दो भागों में बाँटती है। उत्तरी भाग में भारी गठन वाली कंकरीली पुरानी जलोढ मिट्टी पाई जाती है जबकि दक्षिण हिस्सा चूनायुक्त अभिनव जलोढ मिट्टी से निर्मित है और गन्ने की खेती के लिए अघिक उपयुक्त है। उत्तरी भाग में हिमालय से उतरने वाली कई छोटी नदियाँ सिकरहना में मिलती है। दक्षिणी भाग अपेक्षाकृत ऊँचा है लेकिन यहाँ बड़े-बड़े चौर भी मिलते है। सदावाही गंडक, सिकरहना एवं मसान के अलावे पंचानद, मनोर, भापसा, कपन आदि यहाँ की बरसाती नदियाँ है।
कृषि
गंडक एवं सिकरहना और इसकी सहायक नदियों के मैदान में होने से पश्चिमी चम्पारण जिला की मिट्टी उपजाऊ है। यहाँ के लोगों के जीवन का मुख्य आधार कृषि और गृह उद्योग है। उत्तम कोटि के बासमती चावल तथा गन्ने के उत्पादन में जिले को ख्याति प्राप्त है। भदई एवं अगहनी धान के अलावे गेहूँ, मक्का, खेसारी, तिलहन भी यहाँ की प्रमुख फसलों में शामिल है। तिरहुत नहर, त्रिवेनी नहर तथा दोन नहर पश्चिमी चंपारण तथा आसपास के जिले में सिंचाई का प्रमुख साधन है।
वनस्पति एवं वन्यजीवः
बिहार के कुल वन्य क्षेत्र का सबसे बड़ा हिस्सा पश्चिम चंपारण में है। बिहार का एकमात्र बाघ अभयारण्य 880 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में फैले बाल्मिकीनगर राष्ट्रीय उद्यान में स्थित है और नेपाल के चितवन नेशनल पार्क से सटा है। बेतिया से80 किलोमीटर तथा पटना से 294 किलोमीटर दूर स्थित इस वन्य जीव अभयारण्य में संरक्षित बाघ के अलावे काला हिरण, साँभर, चीतल, भालू, भेड़िया, तेंदुआ, नीलगाय, लकड़बग्घा, जंगली बिल्ली, अजगर जैसे वन्य जीव पाए जाते हैं। राजकीय चितवन नेशनल पार्क से कभी कभी एकसिंगी गैंडा और जंगली भैंसा भी आ जाते हैं। इस वनक्षेत्र में साल, सीसम, सेमल, सागवान, जामुन, महुआ, तून, खैर, बेंत आदि महत्वपूर्ण लकड़ियाँ पाई जाती है।
व्यापार एवं उद्योग
नेपाल से सड़क मार्ग द्वारा चावल, लकड़ी, मसाले का आयात होता है जबकि यहाँ से कपड़ा, पेट्रोलियम उत्पाद निर्यात किए जाते हैं। जिले तथा पड़ोस नेपाल में वनों का विस्तार होने से लकड़ियों का व्यापार होता है। उत्तम किस्म की लकड़ियों के अलावे बेतिया के आसपास बेंत मिलते हैं जो फर्नीचर बनाने के काम आता है। बगहा, बेतिया, चनपटिया एवं नरकटियागंज व्यापार के अच्छे केंद्र है। जिले में कृषि आधारित उद्योग ही प्रमुख है। मझौलिया, बगहा, हरिनगर तथा नरकटियागंज में चीनी मिल हैं। कुटीर उद्योगों में रस्सी, चटाई तथा गुड़ बनाने का काम होता है।
इस जिला में कुल 3 अनुमंडल और 18 प्रखंड है |
अनुमंडल : -
- बेतिया
- बगहा
- नरकटियागंज
प्रखंड : -
- गौनहा
- चनपटिया
- जोगापट्टी
- ठकराहा
- नरकटियागंज
- नौतन
- पिपरासी
- बगहा-1
- बगहा-2
- बेतिया
- बैरिया
- भितहा
- मधुबनी
- मझौलिया
- मैनाटांड
- रामनगर
- लौरिया
- सिकटा
ऐतिहासिक जनसंख्या
बोली
पश्चिमी चंपारण जिले की भाषाएँ (2011)
भोजपुरी (91.86%)
हिंदी (3.32%)
उर्दू (2.97%)
बंगाली (0.99%)
अन्य (0.86%)
भारत की 2011 की जनगणना के समय , जिले की 91.86% आबादी भोजपुरी , 3.32% हिंदी और 2.97% उर्दू को अपनी पहली भाषा के रूप में बोलती थी।
भाषाओं में भोजपुरी शामिल है , जो बिहारी भाषा समूह की एक बोली है जिसके लगभग 51 मिलियन वक्ता हैं, जो देवनागरी और कैथी दोनों लिपियों में लिखी जाती है।
जिले में लोकसभा क्षेत्र पश्चिम चंपारण , वाल्मिकी नगर हैं ।
जिले में विधानसभा क्षेत्र हैं- वाल्मिकी नगर , रामनगर , नरकटियागंज , बगहा , लौरिया , नौतन , चनपटिया , बेतिया , सिकटा
पर्यटन स्थल
बाल्मिकीनगर राष्ट्रीय उद्यान एवं बाघ अभयारण्य
लगभग 880 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में फैला बिहार का एक मात्र राष्ट्रीय उद्यान नेपाल के राजकीय चितवन नेशनल पार्क से सटा है। बेतिया से 80 किलोमीटर दूर बाल्मिकीनगर के इस राष्ट्रीय उद्यान का भीतरी 335 वर्ग किलोमीटर हिस्से को 1990 में देश का 18वाँ बाघ अभयारण्य बनाया गया। हिरण, चीतल, साँभर, तेंदुआ, नीलगाय, जंगली बिल्ली जैसे जंगली पशुओं के अलावे चितवन नेशनल पार्क से एकसिंगी गैडा और जंगली भैंसा भी उद्यान में दिखाई देते है।
बाल्मिकीनगर आश्रम और गंडक परियोजना
वाल्मिकीनगर राष्ट्रीय उद्यान के एक छोड़ पर महर्षि बाल्मिकी का वह आश्रम है जहाँ राम के त्यागे जाने के बाद देवी सीता ने आश्रय लिया था। सीता ने यहीं अपने ‘लव’ और ‘कुश’ दो पुत्रों को जन्म दिया था। महर्षि वाल्मिकी ने हिंदू महाकाव्य रामायण की रचना भी यहीं की थी। आश्रम के मनोरम परिवेश के पास ही गंडक नदी पर बनी बहुद्देशीय परियोजना है जहाँ 15 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है और यहाँ से निकाली गयी नहरें चंपारण के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश के बड़े हिस्से में सिंचाई की जाती है। गंडक बैराज के आसपास का शांत परिवेश चित्ताकर्षक है। बेतिया राज के द्वारा बनवाया गया शिव-पार्वती मंदिर भी दर्शनीय है।
त्रिवेणी संगम तथा बावनगढी
एक ओर नेपाल का त्रिवेणी गाँव तथा दूसरी ओर चंपारण का भैंसालोटन गाँव के बीच नेपाल की सीमा पर बाल्मिकीनगर से 5 किलोमीटर की दूरी पर त्रिवेणी संगम है। यहाँ गंडक के साथ पंचनद तथा सोनहा नदी का मिलन होता है। श्रीमदभागवत पुराण के अनुसार विष्णु के प्रिय भक्त ‘गज’ और ‘ग्राह’ की लड़ाई इसी स्थल से शुरु हुई थी जिसका अंत हाजीपुर के निकट कोनहारा घाट पर हुआ था। हरिहरक्षेत्र की तरह प्रत्येक वर्ष माघ संक्रांति को यहाँ मेला लगता है। त्रिवेणी से 8 किलोमीटर दूर बगहा-2 प्रखंड के दरवाबारी गाँव के पास बावनगढी किले का खंडहर मौजूद है। पास ही तिरेपन बाजार है। इस प्राचीन किले के पुरातात्विक महत्व के बारे में तथ्यपूर्ण जानकारी का अभाव है।
भिखना ठोढी
जिले के उत्तर में गौनहा प्रखंड स्थित भिखना ठोढी नरकटियागंज-भिखना ठोढी रेलखंड का अंतिम स्टेशन है। नेपाल की सीमा पर बसा यह छोटी सी जगह अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए चर्चित है। जाड़े के दिनों में यहाँ से हिमालय की हिमाच्छादित धवल चोटियाँ एवं अन्नपूर्णा श्रेणी साफ दिखाई देता है। यहाँ के शांत एवं मनोहारी परिवेश का आनंद इंगलैंड के राजा जॉर्ज पंचम ने भी लिया था। ब्रिटिस कालीन पुराने बंगले के अलावे यहाँ ठहरने की कई जगहें है।
भितहरवा आश्रम एवं रामपुरवा का अशोक स्तंभ
गौनहा प्रखंड के भितहरवा गाँव के एक छोटे से घर में ठहरकर महात्मा गाँधी ने चंपारण सत्याग्रह की शुरुआत की थी। उस घर को आज भितहरवा आश्रम कहा जाता है। स्वतंत्रता के मूल्यों का आदर करने वालों के लिए यह जगह तीर्थ समान है। आश्रम से कुछ ही दूरी पर रामपुरवा में सम्राट अशोक द्वारा बनवाए गए दो स्तंभ है जो शीर्षरहित है। इन स्तंभों के ऊपर बने सिंह वाले शीर्ष को कोलकाता संग्रहालय में तथा वृषभ (सांढ) शीर्ष को दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखा गया है।
नन्दनगढ, चानकीगढ एवं लौरिया का अशोक स्तंभ
लौरिया प्रखंड के नन्दऩगढ तथा नरकटियागंज प्रखंड के चानकी गढ में नंद वंश तथा चाणक्य के द्वारा बनवाए गए महलों के अवशेष हैं जो अब टीलेनुमा दिखाई देते हैं। नन्दनगढ के टीले को भगवान बुद्ध के अस्थि अवशेष पर बना स्तूप भी कहा जाता है। नन्दनगढ से एक किलोमीटर दूर लौरिया में 2300 वर्ष पुराना सिंह के शीर्ष वाला अशोक स्तंभ है। 35 फीट ऊँचे इस स्तंभ का आधार 35 इंच एवं शीर्ष 22 इंच है। इस विशाल स्तंभ की कलाकृति एवं बेहतरीन पॉलिस मौर्य काल के मूर्तिकारों की शानदार कलाकारी का नमूना है।
अन्य स्थलः
सुमेश्वर का किला: रामनगर प्रखंड में समुद्र तल से 2,884 फीट की ऊँचाई पर सोमेश्वर की पहाड़ी की खड़ी ढलान पर बना सुमेश्वर का किला अब खंडहर बन चुका है। नेपाल की सीमा पर बना यह किला अब खंडहर मात्र है लेकिन अंतेपुरवासियों की पानी की जरुरतों के लिए पत्थर काट कर बनाया गया कुंड देखा जा सकता है। किले के शीर्ष से आसपास की उपत्यकाएं एवं नेपाल स्थित घाटी और् पर्वत श्रेणियों का विहंगम दृश्य दृष्टिगोचर है। हिमालय के प्रसिद्ध धौलागिरि, गोसाईंनाथ एवं गौरीशंकर के धवल शिखरों को साफ देखा जा सकता है।
वृंदावन: बेतिया से 10 किलोमीटर दूर इस स्थान पर 1937 में ऑल इंडिया गाँधी सेवा संघ का वार्षिक सम्मेलन हुआ था। इसमें गाँधीजी सहित राजेन्द्र प्रसाद और जे बी कृपलानी ने हिस्सा लिया था। अपने शिक्षा संबंधी विचारों पर गाँधीजी द्वारा उस समय स्थापित एक बेसिक स्कूल अब भी चल रहा है।
सरैयां मान (पक्षी विहार): बेतिया से 6 किलोमीटर दूर सरैयां के शांत परिवेश में प्राकृतिक झील बना है। यह पक्षियों की कई प्रजातियों का प्रवास स्थल भी है। झील के किनारे लगे जामुन के पेड़ों से गिरनेवाले फल के कारण इसका पानी पाचक माना जाता है। यह स्थान लोगों के लिए पिकनिक स्थल एवं पक्षी-विहार है।




