महाराणा रतन सिंह द्वितीय

  • Posted on: 23 April 2023
  • By: admin

रतन सिंह द्वितीय 

मेवाड़ के राणा 

मेवाड़ रियासत 

शासनकाल 1528–1531 

पूर्ववर्ती राणा सांगा 

उत्तराधिकारी विक्रमादित्य सिंह 

मृत्यु 1531

मेवाड़ के राजवंश सिसोदिया 

पिता राणा सांगा 

माता रानी धन कुंवर 

महाराणा रतन सिंह द्वितीय (Maharana Ratan Singh II), महाराणा सांगा (संग्राम सिंह) के पुत्र थे। महाराणा सांगा के 7 पुत्र थे जिनमें से तीन पुत्रों की मृत्यु महाराणा सांगा के जीवित रहते ही हो गई।

30 January 1528 ईस्वी को महाराणा सांगा के पुत्र महाराणा रतन सिंह द्वितीय  मेवाड़ के महाराणा बने क्योंकि जीवित बचे तीन भाइयों विक्रमादित्य, उदय सिंह और रतन सिंह में यह सबसे बड़े थे।

महाराणा रतन सिंह द्वितीय के मेवाड़ का राजा बनने के बाद इनके दोनों छोटे भाई विक्रमादित्य और उदय सिंह को रणथंबोर का राजा नियुक्त किया गया।

इन्होंने आमेर के राजा पृथ्वीराज की पुत्री के साथ गुप्त विवाह किया था। स्वयं पृथ्वीराज को यह बात मालूम न थी। उन्होंने हाड़ा वंशीय सरदार सूरजमल के साथ अपनी पुत्री का विवाह कर दिया जब महाराणा को इस विवाह की खबर लगी तो उन्हें बडा दुःख हुआ। 

महाराणा रतन सिंह द्वितीय  के मेवाड़ का शासक बनने के पश्चात उनके दोनों छोटे भाइयों विक्रमादित्य और उदय सिंह को रणथंबोर की बागडोर मिलने के पीछे मुख्य वजह यह थी कि महारानी हाड़ी ( कर्मवातीबाई) ने महाराणा सांगा से पहले ही यह जागीर अपने दोनों पुत्रों के लिए मांग ली थी, क्योंकि महारानी को शक था कि महाराणा सांगा की मृत्यु के पश्चात हो सकता है रतन सिंह इन्हें राज्य से दूर कर दे।

महाराणा सांगा से रणथंबोर राज्य की मांग स्वीकृत करवा कर रानी हाड़ी ने अपने दोनों पुत्रों विक्रमादित्य और उदय सिंह को उनके भाई सूर्यमल (सूरजमल) को सौंप दिए।

वीरवर महाराणा संग्रामसिंह ने गुजरात और मालवा के शासकों को बुरी तरह हराया था। वे दोनों इस पराजय से दुःखी होकर मेवाड़ पर सदा दृष्टि लगाये रहते थे। जब इन्होंने देखा कि महाराणा रतन सिंह द्वितीय के समय में सरदारों ओर सामन्तों में फूट पड़ रही है तो इन्होंने मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया। इस आक्रमण की बात सुनकर महाराणा बढ़े दुखी हुए। परन्तु मंत्रियों ने उन्हें समझाया कि कुछ भी होमेवाड़ की रक्षा अवश्य करनी होगी। इस पर महाराणा ने रण-भभेरी बजवा कर हुक्म दिया कि पवित्र भूमि मेवाड़ की रक्षा के लिये सब सामन्त और सरदार कराला देवी के मंदिर में ठीक 12 बजे उपस्थित हों। सामन्‍त और सरदार ठीक समय पर पहुँच गये, परन्तु युवराज उपस्थित न हो सके। उनका एक सिलनी से स्नेह था।

वे उस समय उससे मिलने के लिये गये हुए थे। उपस्थिति का घण्टा बजते ही सरदारों में काना फूसी होने लगी कि युवराज अभी तक नहीं आया। जब महाराणा ने देखा कि एक सरदार ने खड़े होकर ताना मारा कि सब आ गये, पर युवराज अभी तक नहीं आये। उस समय मेवाड़ में यह नियम था कि युद्ध की भेरी बजने पर कोई सरदार या सामन्‍त ठीक समय पर उपस्थित न होता तो वह फाँसी पर लटका दिया जाता था।

महमूद खिलजी (मांडू) का मेवाड़ की ओर रुख

महाराणा सांगा की मृत्यु का समाचार सुनकर मांडू का बादशाह महमूद खिलजी बहुत खुश हुआ और बदला लेने के लिए अपनी सेना को मेवाड़ की तरफ भेजा जिसकी कमान शर्जा खां के हाथ में सौंपी। शर्जा खां महमूद खिलजी की सेना का नेतृत्व करते हुए मेवाड़ में पहुंचा और लूटपाट शुरू कर दी। जब इस बात की खबर महाराणा रतन सिंह द्वितीय को भूमि तो वह भी अपनी सेना सहित मालवा पर चढ़ाई करने के लिए निकल पड़े।

दूसरी तरफ महमूद खिलजी भी महाराणा रतन सिंह द्वितीय का सामना करने के लिए अपनी सेना के साथ निकला और उज्जैन होता हुआ सारंगपुर आ गया। अपने आप को और अधिक मजबूत करने के लिए महमूद खिलजी ने एक चाल चली मोइन खान (देवास) और सलहदी पुरबिये को बड़ी उपाधि और परगने दिए ताकि वह उनको अपने साथ मिला सके।

लेकिन दोनों को महमूद खिलजी पर विश्वास नहीं था इसलिए दोनों ने महाराणा रतन सिंह द्वितीय के साथ संधि कर ली और गुजरात के बादशाह बहादुर शाह के पास चले गए। जब यह बात महमूद खिलजी को पता चली तो वह डर गया और बिना युद्ध लड़े पुनः मांडू लौट गया। मांडू प्रदेश को महाराणा रतन सिंह द्वितीय ने लूटा और मोइन खान और सलहदी प्रदान किए।

1528-1531 ई. –  मालवा की फ़ौज को शिकस्त देना : रायसेन के सलहदी तंवर व सीवास के सिकन्दर खां ने मालवा के कुछ क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया। जब मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी ने इन दोनों को मारना चाहा, तो ये दोनों मेवाड़ आ गए।

सुल्तान महमूद खिलजी ने महाराणा रतनसिंह पर क्रोधित होकर अपने सिपहसालार शर्जाखां को फौज देकर मेवाड़ भेजा। कुछ समय बाद महमूद ने भी मेवाड़ की तरफ कूच किया।

महाराणा रतनसिंह ने मेवाड़ी फौज के साथ चित्तौड़ से निकलकर कुल बादशाही फौज को उसके मुल्क तक खदेड़ दिया और सम्भल को लूटते हुए सारंगपुर तक जा पहुंचे।

महाराणा की इस चढ़ाई में सलहदी तंवर की सेना भी शामिल थी। महाराणा की इस प्रतिक्रिया को देखते हुए महमूद खिलजी जो उज्जैन तक आ गया था, वापिस लौट गया।

ख़रजी की घाटी में महाराणा रतनसिंह व गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह की मुलाकात हुई। बहादुरशाह इन दिनों मालवा पर चढ़ाई करना चाहता था। महाराणा द्वारा मालवा की सेना को परास्त करने से बहादुरशाह का काम आसान हो गया।

बहादुरशाह ने महाराणा से कहा कि आप हमें फ़ौजी मदद दे दें, तो हम मालवा वालों को बर्बाद कर देंगे। महाराणा रतनसिंह ने सलहदी तंवर, डूंगरसी व जाजराय को अपनी कुछ सेना के साथ बहादुरशाह के साथ जाने को कहा।

बहादुरशाह ने खुश होकर महाराणा रतनसिंह को 30 हाथी, बहुत से घोड़े व 1500 ज़रदोजी खिलअतें भेंट की। बहादुरशाह ने सेना सहित मालवा पर चढ़ाई की और महमूद खिलजी को बन्दी बनाकर गुजरात ले गया।

बहादुरशाह ने मालवा का राज्य गुजरात में मिला दिया, जिससे बहादुरशाह की शक्ति काफी बढ़ गई। इन्हीं दिनों 26 दिसम्बर, 1530 ई. को मुगल बादशाह बाबर की मृत्यु हो गई।

रणथंबोर एक ऐसा राज्य था जो धन-धान्य से परिपूर्ण था जिसकी कीमत लगभग 50-60 लाख रुपए से भी अधिक थी। इतना बड़ा राज्य और मजबूत किले वाला प्रदेश महाराणा रतन सिंह द्वितीय के दोनों भाइयों उदय सिंह और विक्रमादित्य के हाथ में था, जो महाराणा रतन सिंह द्वितीय को अच्छा नहीं लगता था वह इसे हथियाना चाहते थे।

इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए महाराणा रतन सिंह ने कोठारिया के पूरणमल चौहान को रणथंबोर भेजा। जब पूरणमल रणथंबोर पहुंचे तो उन्होंने रानी हाड़ी को बताया की उदय सिंह और विक्रमादित्य महाराणा रतन सिंह द्वितीय के लिए किसी तीर्थ से कम नहीं है। आप और आपके दोनों पुत्रों का चित्तौड़ में हार्दिक स्वागत है। सारा वृतांत सुनने के बाद रानी हाड़ी को लगा कि महाराणा रतन सिंह द्वितीय के मन में कुछ तो कपट हैं। पूरणमल को जवाब देते हुए रानी हाड़ी ने कहा कि विक्रमादित्य और उदयसिंह अभी छोटे हैं, मैं इन्हें अभी नहीं भेज सकती हूं।

पूरणमल चित्तौड़ पहुंचा और सभी बातें महाराणा रतन सिंह द्वितीय को बताई। यह सुनकर महाराणा रतन सिंह द्वितीय सूर्यमल से बहुत नाराज हुए। यहीं से दोनों के बिच में दरार बढ़ती गई। यह उन दिनों की बात है जब महाराणा रतन सिंह बूंदी में थे दूसरी तरफ अपनी माता की आज्ञा का पालन करते हुए सूर्यमल रणथंबोर से मेवाड़ की तरफ आ रहा था। बूंदी के समीप दोनों की मुलाकात हुई। महाराणा रतन सिंह द्वितीय हाथी पर सवार थे जबकि उन का छोटा भाई सूर्यमल घोड़े पर था। मौका देखकर महाराणा रतन सिंह ने सूर्यमल पर वार कर दिया लेकिन वह बच गया।

महाराणा रतन सिंह द्वितीय ने स्वयं को सही साबित करने के लिए सूर्यमल को बताया कि यह उनकी गलती से नहीं बल्कि हाथी की गलती से हुआ है और उन्होंने सूर्यमल के सामने शपथ ली थी अब वह इस हाथी पर कभी भी सवारी नहीं करेंगे।

कुछ ही दिनों में सूर्यमल और महाराणा रतन सिंह द्वितीय के बीच में लड़ाई हुई सूर्यमल ने महाराणा रतन सिंह द्वितीय के साथी पूरणमल को कटार से मार गिराया महाराणा रतन सिंह द्वितीय पूरणमल को बचाने के लिए दौड़े लेकिन कटार का एक हिस्सा महाराणा रतन सिंह द्वितीय की छाती में घुस गया।

इस तरह महाराणा सांगा के बाद मेवाड़ के शासक बने महाराणा रतन सिंह द्वितीय की मृत्यु हो गई। जब यह खबर उनकी पत्नी महारानी पंवार के पास पहुंची तो वह भी सती हो गई।

 

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