महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय
संग्राम सिंह II (24 मार्च 1690 - 11 जनवरी 1734) भारत के मेवाड़ के शासक थे । उन्होंने 1710 से 1734 तक शासन किया। उनका उत्तराधिकारी उनका पुत्र जगत सिंह द्वितीय था ।
संग्राम सिंह II (24 मार्च 1690 - 11 जनवरी 1734) भारत के मेवाड़ के शासक थे । उन्होंने 1710 से 1734 तक शासन किया। उनका उत्तराधिकारी उनका पुत्र जगत सिंह द्वितीय था ।
महाराणा अमर सिंह सिसोदिया द्वितीय मेवाड़, राजस्थान के शिशोदिया राजवंश के शासक थे।अमर सिंह अमर सिंह के नाम से भी जाना जाता है 1698 में और 1710 में उनकी मृत्यु के साथ उनका राज्य काल समाप्त हुआ। उन के शासनकाल में मुगल अपनी शक्तियों को खो दिया मुगलों ने और इसे उन्हें स्वतंत्र होने का एक मौका मिल गया परंतु औरंगजेब की मृत्यु के बाद उन्होंने बहादुर शाह प्रथम की बढ़ती शक्ति के कारण और उन्होंने खुद को शांति और मुगलों के अधीन ही रखा।उनका जन्म 1672 ईसवी में हुआ था और 38 वर्ष की अवस्था में उनका स्वर्गवास हो गया।
जय सिंह (5 दिसंबर 1653 - 23 सितंबर 1698) मेवाड़ साम्राज्य के महाराणा थे जिन्होंने 1680 से 1698 तक शासन किया। वह महानारा राज सिंह प्रथम के पुत्र थे । जय सिंह ने मुगल बादशाह औरंगजेब के खिलाफ कई लड़ाईयां लड़ीं । 1680-81 में उसने अपने कुलीन दयालदास को मालवा भेजा। दयालदास ने धार और मांडू पर अधिकार कर लिया। उसने उन शहरों को लूटा और मुगल सेना के खिलाफ कई लड़ाइयाँ लड़ीं। उन्होंने आमेर की कछवा राजकुमारी दयावती बाई (1650-1683) से विवाह किया जिनकी प्रसव के दौरान मृत्यु हो गई। उन्होंने 1685 में ढेबर झील का निर्माण किया जिसे जयसमंद के नाम से भी जाना जाता है।
राज सिंह प्रथम (24 सितम्बर 1629 – 22 अक्टूबर 1680) मेवाड़ के शिशोदिया राजवंश के शासक (राज्यकाल 1652 – 1680) थे। वे जगत सिंह प्रथम के पुत्र थे। उन्होने औरंगजेब के अनेकों बार विरोध किया।
महाराणा जगतसिंह प्रथम कर्ण सिंह द्वितीय के बाद उसका पुत्र जगतसिंह-प्रथम महाराणा बना। महाराणा जगतसिंह का राज्याभिषेक 28 अप्रैल 1628 ई. को किया गया था
महाराणा करण सिंह द्वितीयमेवाड़ राजस्थान के शिशोदिया राजवंश के शासक थे उनके पिता राणा अमरसिंह थे। पहले मेवाड़ी राजकुमार जो मुगल दरबार मे गए तथा सर्वप्रथम मुगल दरबार मे मनसबदारी प्राप्त की।
राणा अमर सिंह (1597 – 1620 ई० ) मेवाड़ के शिशोदिया राजवंश के शासक थे। वे महाराणा प्रताप के पुत्र तथा महाराणा उदयसिंह के पौत्र थे।
प्रारंभिक जीवन और राज्याभिषेक
महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया ( ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया रविवार विक्रम संवत 1597 तदनुसार 9 मई 1540 – 19 जनवरी 1597) उदयपुर मेवाड़ में सिसोदिया राजवंश के राजा थे। उनका नाम इतिहास में वीरता शौर्य, त्याग, पराक्रम और दृढ प्रण के लिये अमर है। उन्होंने मुगल बादशहा अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की और कई सालों तक संघर्ष किया किंतु महाराणा प्रताप अकबर से हल्दीघाटी के युद्ध में हार गए थे ।
उदयसिंह द्वितीय (जन्म 04 अगस्त 1522 - 28 फरवरी 1572 ,चित्तौड़गढ़ दुर्ग, राजस्थान, भारत) मेवाड़ के एक महाराणा और उदयपुर शहर के संस्थापक थे। ये मेवाड़ साम्राज्य के 53वें शासक थे। उदयसिंह मेवाड़ के शासक राणा सांगा (संग्राम सिंह) के चौथे पुत्र थे जबकि बूंदी की रानी कर्णावती इनकी माँ थीं।
बनवीर (1540 में मृत्यु) जिसे बनबीर के नाम से भी जाना जाता है 1536 और 1540 के बीच मेवाड़ साम्राज्य के शासक थे। वह राणा सांगा के भतीजे थे जो उनके भाई पृथ्वीराज और उनकी पासवान से पुत्र थे। बनवीर राज्य में राजनीतिक अस्थिरता के युग में मेवाड़ के सिंहासन को जीतने में सफल हुए जो 1528 में सांगा की मृत्यु के बाद शुरू हुआ। 1536 में मेवाड़ के प्रमुखों की सहायता से उन्होंने विक्रमादित्य की हत्या कर दी और राजवंश के अगले शासक बन गए। अपने प्रशासनिक सुधारों के बावजूद वह अपने अवैध जन्म के कारण मेवाड़ रईसों का समर्थन पाने में असफल रहा। वह 1540 में मरावली के युद्ध में उदयसिं
विक्रमादित्य सिंह (1517 - 1536) मेवाड़ साम्राज्य के महाराणा थे वह एक सिसोदिया राजपूत और राणा सांगा के पुत्र और उदय सिंह द्वितीय के बड़े भाई थे। वह गुजरात सल्तनत से हार गया था और मेवाड़ के रईसों के साथ अपने गुस्सैल स्वभाव के कारण अलोकप्रिय था। अपने शासनकाल के दौरान 1535 में गुजरात के बहादुर शाह ने चित्तौड़ को बर्खास्त कर दिया था।
महाराणा रतन सिंह द्वितीय (Maharana Ratan Singh II), महाराणा सांगा (संग्राम सिंह) के पुत्र थे। महाराणा सांगा के 7 पुत्र थे जिनमें से तीन पुत्रों की मृत्यु महाराणा सांगा के जीवित रहते ही हो गई।
30 January 1528 ईस्वी को महाराणा सांगा के पुत्र महाराणा रतन सिंह द्वितीय मेवाड़ के महाराणा बने क्योंकि जीवित बचे तीन भाइयों विक्रमादित्य, उदय सिंह और रतन सिंह में यह सबसे बड़े थे।
राणा सांगा (महाराणा संग्राम सिंह) (12 अप्रैल 1482 - 30 जनवरी 1528) (राज 1509-1528) उदयपुर में सिसोदिया राजपूत राजवंश के राजा थे तथा राणा रायमल के सबसे छोटे पुत्र थे।
परिचय
राणा रायमल (1473 -1509) मेवाड के राजपूत राजा थे। वे राणा कुम्भा के पुत्र थे। उनके शासन के आरम्भिक दिनों में ही मालवा के शासक घियास शाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया किन्तु उसे सफलता नहीं मिली। इसके शीघ्र बाद घियास शाह के सेनापति जफर खान ने मेवाड़ पर आक्रमण किया किन्तु वह भी मण्डलगढ़ और खैराबाद में पराजित हुआ। रायमल ने राव जोधा की बेटी शृंगारदेवी से विवाह करके राठौरों से शत्रुता समाप्त कर दी। रायमल ने रायसिंह टोडाऔर अजमेर पर पुनः अधिकार कर लिया। उन्होने मेवाड़ को भी शक्तिशाली बनाया तथा चित्तौड़गढ़ चित्तौड़ के एकनाथ जी मंदिर का पुनर्निर्माण कराया।रायमल के अंतिम
उदय सिंह ने 1468 में अपने पिता राणा कुंभा की हत्या कर दी और उसके बाद हत्यारा (हत्यारा) के रूप में जाना जाने लगा। 1473 में खुद उदय की मृत्यु हो गई, मृत्यु का कारण कभी-कभी बिजली गिरने के परिणामस्वरूप बताया गया था लेकिन उनके पिता राणा कुंभा की मृत्यु का बदला लेने के लिए उनके अपने भाई राणा रायमल द्वारा भी हत्या किए जाने की संभावना थी।
महाराणा कुम्भा या महाराणा कुम्भकर्ण (मृत्यु 1468 ई.) सन 1433 से 1468 तक मेवाड़ के राजा थे। भारत के राजाओं में उनका बहुत ऊँचा स्थान है। उनसे पूर्व राजपूत केवल अपनी स्वतंत्रता की जहाँ-तहाँ रक्षा कर सके थे। कुंभकर्ण ने मुसलमानों को अपने-अपने स्थानों पर हराकर राजपूती राजनीति को एक दोहरा रूप दिया। इतिहास में ये 'राणा कुंभा' के नाम से अधिक प्रसिद्ध हैं। महाराणा कुम्भा को चित्तौड़ दुर्ग का आधुनिक निर्माता भी कहते हैं क्योंकि इन्होंने चित्तौड़ दुर्ग के अधिकांश वर्तमान भाग का निर्माण कराया।
राणा मोकल मेवाड़ के राणा लाखा तथा ( मारवाड़ की राजकुमारी ) रानी हंंसाबाई केे पुत्र थे।
महाराणा मोकल सिंह मेवाड़ साम्राज्य के महाराणा थे। वह महाराणा लाखा सिंह के पुत्र थे, अपने पिता की तरह, महाराणा मोकल एक उत्कृष्ट निर्माता थे। उन्होंने न केवल अपने पिता लाखा द्वारा शुरू किए गए भवनों को पूरा किया, बल्कि कई नए भी बनवाए। समाधिश्वर का मंदिर जो की भोज परमार द्वारा निर्मित था, उसकी मरम्मत महाराणा मोकल ने करवाई थी जिसे मोकल जी का मंदिर भी कहा जाता है।
राणा लाखा ( 1382 ई.- 1421 ई. ) चित्तौड़ मेवाड़ में सिसोदिया राजपूत राजवंश राजा थेे इनके पिता का नाम राणा क्षेत्र सिंह था।
जब राणा लाखा गद्दी पर बैठे,तब मेवाड़ आर्थिक समस्याओं से ग्रसित था, लेकिन लाखा के शासनकाल में ही जावर नामक स्थान पर चाँदी की खान निकल आती है जो की एशिया की सबसे बडी चाँदी की खान है जिससे लाखा की समस्त आर्थिक समस्याएँ हल हो जाती हैं, इसी घटना से राणा लाखा का शासनकाल उन्नति की ओर बढ जाता है |
खेता या क्षेत्र सिंह (निधन 1382) मेवाड़ साम्राज्य के शासक थे। इनके पिता का नाम राणा हम्मीर सिंह था जबकि इनके उत्तराधिकार राणा लखा हुए इन्होंने अजमेर और मांडलगढ़ में शासन किया था।
राणा क्षेत्र सिंह जिन्होंने 1364 ईस्वी से 1382 ईस्वी तक मेवाड़ राज्य शासन किया था क्षेत्र सिंह राणा हम्मीर सिंह की सन्तान थे। इन्होंने अजमेर और मांडलगढ़ पर शासन किया था जबकि मंदसौर और छप्पन पर भी राज काज किया था। उनका निधन एक युद्ध के दौरान 1382 में हो गया था इसके बाद इनके उत्तराधिकारी इनके ही पुत्र राणा लाखा हुए थे।