महाराणा उदयसिंह द्वितीय

  • Posted on: 23 April 2023
  • By: admin

महाराणा उदयसिंह द्वितीय 

मेवाड़ के राणा 

शासनावधि - 1537-1572 (32 साल) 

राज्याभिषेक 1540, चित्तौड़गढ़

पूर्ववर्ती बनवीर

उत्तरवर्ती महाराणा प्रताप

जन्म 4 अगस्त 1522

चित्तौड़गढ़ दुर्ग, राजस्थान, भारत

निधन 28 फ़रवरी 1572 (उम्र 49)

गोगुन्दा ,राजस्थान ,भारत

संगिनी महारानी जयवंता बाई , स्वरूपदे

राजवंश सिसोदिया[कृपया उद्धरण जोड़ें]

पिता राणा सांगा

माता रानी कर्णावती

धर्म हिन्दू

उदयसिंह द्वितीय (जन्म 04 अगस्त 1522 - 28 फरवरी 1572 ,चित्तौड़गढ़ दुर्ग, राजस्थान, भारत) मेवाड़ के एक महाराणा और उदयपुर शहर के संस्थापक थे। ये मेवाड़ साम्राज्य के 53वें शासक थे। उदयसिंह मेवाड़ के शासक राणा सांगा (संग्राम सिंह) के चौथे पुत्र थे जबकि बूंदी की रानी कर्णावती इनकी माँ थीं।

उदयसिंह द्वितीय महज 5 वर्ष के थे, तब उनके पिता महाराणा सांगा का निधन हो गया। जैसे तैसे इनकी माता रानी कर्णावती ने इनका पालन पोषण किया लेकिन जब महाराणा उदयसिंह द्वितीय महज 12 वर्ष के थे तभी गुजरात के शासक बहादुर शाह द्वारा चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर आक्रमण किया गया। इस आक्रमण के दौरान उनकी माता महारानी कर्णावती ने जोहर कर लिया।  महारानी कर्णावती के 2 पुत्र थे। बड़े पुत्र का नाम महाराणा विक्रमादित्य और छोटे बेटे का नाम उदयसिंह था।

मेवाड़ साम्राज्य के लिए यह समय बहुत ही खराब रहा बहुत सारी उथल-पुथल देखने को मिली। दासी पुत्र बनवीर ने महाराणा विक्रमादित्य की हत्या कर दी और उदयसिंह द्वितीय की हत्या करने के लिए भी आतुर था। ताकि उसके रास्ते में आने वाले सभी कांटो को दूर किया जा सके और वह मेवाड़ का शासक बन सके।

व्यक्तिगत जीवन

उदयसिंह का जन्म चित्तौड़गढ़ में अगस्त 1522 में हुआ था । इनके पिता महाराणा सांगा के निधन के बाद रतन सिंह द्वितीय को नया शासक नियुक्त किया गया। रत्न सिंह ने 1531 में शासन किया था। राणा विक्रमादित्य सिंह के शासनकाल के दौरान तुर्की के सुल्तान गुजरात के बहादुर शाह ने चित्तौड़गढ़ पर 1534 में हमला कर दिया था इस कारण उदयसिंह को बूंदी भेज दिया था ताकि उदयसिंह सुरक्षित रह सके। 1537 में बनवीर ने विक्रमादित्य का गला घोंटकर हत्या कर दी थी और उसके बाद उन्होंने उदयसिंह को भी मारने का प्रयास किया लेकिन उदयसिंह की धाय पन्ना धाय ने उदयसिंह को बचाने के लिए अपने पुत्र चन्दन का बलिदान दे दिया था इस कारण उदयसिंह ज़िंदा रह सके थे पन्ना धाय ने यह जानकारी किसी को नहीं दी थी कि बनवीर ने जिसको मारा है वो उदयसिंह नहीं बल्कि उनका पुत्र चन्दन था। इसके बाद पन्ना धाय बूंदी में रहने लगी। लेकिन उदयसिंह को आने जाने और मिलने की अनुमति नहीं दी।और उदयसिंह को खुफिया तरीक से कुम्भलगढ़ में 2 सालों तक रहना पड़ा था।

इसके बाद 1540 में कुम्भलगढ़ में उदयसिंह का राजतिलक किया गया और मेवाड़ का राणा बनाया गया। उदयसिंह के सबसे बड़े पुत्र का नाम महाराणा प्रताप था जबकि पहली पत्नी का नाम महारानी जयवंताबाई था। उदयसिंह की दूसरी पत्नी का नाम सज्जा बाई सोलंकी था जिन्होंने शक्ति सिंह और विक्रम सिंह को जन्म दिया था जबकि जगमाल सिंह ,चांदकंवर और मांकनवर को जन्म धीरबाई भटियानी ने दिया था ये उदयसिंह की सबसे पसंदीदा पत्नी थी। इनके अलावा इनकी चौथी पत्नी रानी वीरबाई झाला थी जिन्होंने जेठ सिंह को जन्म दिया था।

जीवित होने की खबर

मेवाड़ की जनता दासी पुत्र बनवीर से परेशान थी। तभी वर्ष 1537 ईस्वी में एक खबर मेवाड़ में आग की तरह फैल गई और यह खबर थी कि मेवाड़ के सच्चे वारिस महाराणा सांगा के पुत्र कुंवर उदयसिंह जीवित है। यह खबर सुनते ही मेवाड़ के सरदारों सामंतों और जनता के रोंगटे खड़े हो गए। इस समय कोई भी खुशी से फूला नहीं समा रहा था।

यह वही समय था जब दासी पुत्र बनवीर स्वयं को एक सच्चा राजपूत साबित करने की निरंतर कोशिश कर रहा था लेकिन मेवाड़ के ज्यादातर सरदार और सामंत बनवीर से नाराज थे। दरअसल बनवीर को कोई भी राजपूत नहीं मानता था।

एक किस्सा बहुत ही प्रचलित है 1 दिन की बात है दासी पुत्र बनवीर ने सभी सरदारों और सामंतों को भोजन पर आमंत्रित किया भोजन के समय उन्होंने कोठारिया के रावत खान पुरबिया चौहान की थाली में झूठा खाना परोसते हुए खाने को कहा!

लेकिन उन्होंने भोजन नहीं किया और वहां से उठ कर चले गए इतने में बनवीर समझ गया और रावत खान को आवाज लगाई कि “क्या तुम मुझे असली राजपूत नहीं मानते हो”? तभी रावत खान ने पीछे मुड़कर कहा अब तक तो तुमसे कह नहीं पाए लेकिन यही असली वजह है। इतना सुनने के बाद बनवीर आग बबूला हो गया और वहां पर मौजूद सभी सरदार बिना खाना खाए वहां से चले गए।

जब बनवीर ने कुंवर उदयसिंह के जीवित होने की खबर सुनी तो उसे एकाएक यकीन नहीं हुआ। लेकिन जब उसे पूरा वाकया पता चला कि पन्नाधाय ने अपने पुत्र चंदन को कुंवर उदयसिंह के पालने में सुला दिया था और बनवीर ने कुंवर उदयसिंह द्वितीय की जगह चंदन को मौत के घाट उतार दिया तो उसे बहुत पछतावा हुआ।

बनवीर और महाराणा उदयसिंह द्वितीय के बीच युद्ध

1540 ईस्वी में महाराणा उदयसिंह और दासी पुत्र बनवीर के बीच मावली में युद्ध लड़ा गया था। इस युद्ध में महाराणा उदय सिंह द्वितीय ने प्रत्यक्ष रूप से भाग लिया लेकिन दासी पुत्र बनवीर स्वयं युद्ध में भाग ना लेकर कुंवर सिंह तंवर के नेतृत्व में सेना भेजी। महाराणा उदय सिंह की तरफ से राव कुंपा और राव जेता जैसे बलशाली योद्धा लड़ रहे थे। वही बनवीर की ओर से इस युद्ध में रामा सोलंकी व मल्ला सोलंकी ने भाग लिया।

दोनों सेनाओं के बीच मावली में एक भयंकर युद्ध हुआ इस युद्ध के समय महाराणा उदयसिंह द्वितीय की आयु महज 18 वर्ष थी। महाराणा उदय सिंह की सेना ने पराक्रम दिखाते हुए कुंवर सिंह तंवर के नेतृत्व में लड़ रही दासी पुत्र बनवीर की सेना को पूरी तरह से पराजित कर दिया।

महाराणा उदयसिंह ने मावली के युद्ध में बनवीर के सेना को बुरी तरह से पराजित करने के बाद बनवीर के साथी मल्ला सोलंकी के आधिकारिक क्षेत्र ताणा पर धावा बोल दिया। लगभग 1 माह की तनातनी के पश्चात मल्ला सोलंकी मारा गया।

अब महाराणा उदय सिंह का अगला लक्ष्य था चित्तौड़ पर विजय प्राप्त करना क्योंकि उदयसिंह द्वितीय को सामंतों और सरदारों ने मिलकर मेवाड़ का महाराणा तो घोषित कर दिया लेकिन दरअसल अभी तक चित्तौड़ पर शासन बनवीर का था।

महाराणा उदयसिंह। नई चाल चलते हुए बनवीर के प्रधान चील मेहता को अपनी तरफ मिला लिया और रात का समय देखकर महाराणा उदय सिंह और उनके सैनिकों ने किले पर प्रवेश किया इस भयंकर युद्ध में कई राजपूत वीरगति को प्राप्त हुए। महाराणा उदयसिंह द्वितीय की इस जीत के बाद उदय सिंह जी का रुतबा बहुत बढ़ गया। चित्तौड़गढ़ दुर्ग में विजय के पश्चात उनका भव्य स्वागत किया गया।

शेरशाह सूरी द्वारा चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर आक्रमण 

शेरशाह सूरी ने वर्ष 1534 ईस्वी को चित्तौड़गढ़ पर हमला कर देता है लेकिन महाराणा उदयसिंह द्वितीय ने शेरशाह सूरी को चित्तौड़गढ़ बिना किसी युद्ध के सौप देते है और उसके बाद बाद शेरशाह सूरी ने सम्सख्वास्खाँ को चित्तौड़गढ़ दुर्ग का प्रशासक बना देते है। तथा चित्तौड़गढ़ पर शासन करने लग जाते है। महाराणा उदयसिंह द्वितीय मेवाड़ का प्रथम शासक था जिन्होंने अफगानी शासन की अधीनता स्वीकार की थी। इसके अलावा महाराणा उदयसिंह छापामार और गोरिल्ला युद्ध की कला में बहुत अच्छे थे। इस कला में महाराणा उदयसिंह मेवाड़ के पहले शासक थे। इसी युद्ध कला के कारण महाराणा उदयसिंह ने शेरशाह सूरी की मृत्यु के बाद फिर से चित्तौड़गढ़  पर शासक किया।

महाराणा उदयसिंह द्वारा जयमल राठौड़ को शरण 

साल 1562 में अकबर ने मेड़ता नागौर के शासक जयमल राठौड़ पर हमला कर दिया था। तब महाराणा उदय सिंह ने जयमल राठौड़ को अपने चितौडगढ़ में शरण दी थी। इसी कारण से सन 1567 में जलाल उद्दीन अकबर ने मांडलगढ़ भीलवाड़ा के मार्ग चित्तौड़गढ़ पर हमला कर दिया था। इस वजह से उदयसिंह गोगुंदा की पहाड़ियों में भाग जाते है। तथा अकबर ने महाराणा उदयसिंह का पीछा करने के लिए हैसन कुली खां को भेज देते हैं। महाराणा उदयसिंह द्वितीय चित्तौड़गढ़ का शासन जयमल राठौड़ और फतेह सिंह को सौंप देता है।

महाराणा उदयसिंह द्वितीय द्वारा उदयपुर की स्थापना

महाराणा उदयसिंह द्वितीय और सभी सामंतों ने मिलकर निर्णय लिया कि चित्तौड़गढ़ का दुर्ग हालांकि बहुत मजबूत है लेकिन यह एक पहाड़ी पर बना हुआ है जिसके चलते यदि इस को चारों तरफ से घेर लिया जाए तो फिर हमारे पास कोई चारा नहीं बचता है, इसलिए उन्होंने उदयपुर बसाने का निर्णय लिया।

वर्तमान समय में उदयपुर सिटी पैलेस के अंदर निर्मित नवचोकिया महल नेका की चौपाल, मर्दाना महल, राज आंगन आदि का निर्माण महाराणा उदय सिंह जी द्वितीय द्वारा किया गया था। वहीं दूसरी तरफ महाराणा उदय सिंह द्वितीय ने पिछोला झील का जीर्णोद्धार करवाया था।

राणा उदयसिंह द्वितीय का अकबर से युद्ध

साल 1567 में जब चित्तौड़गढ़ में अकबर ने इस किले का दूसरी बार हमला किया तो यहां राणा उदयसिंह की सूझबूझ काम में आय थी। अकबर की पहली चढ़ाई को उदयसिंह  ने निष्फल कर दिया था। पर जब दूसरी बार चढ़ाई की गयी तो लगभग छह मॉस के इस घेरे में किले के पास के कुओं तक में पिने का पानी समाप्त होने लगा। किले के पास के लोगों की और सेना की स्थिति बहुत खराब होने लगी थी। तब किले के रक्षकदल सेना के उच्च पदाधिकारियों और राज्य दरबारियों ने मिलकर राणा उदयसिंह से निवेदन किया कि राणा संग्राम सिंह के उत्तराधिकारी के रूप में आप ही हमारे भीतर हैं, इस लिए आपकी जीवन की रक्षा इस समय बहुत आवश्यक है। आप को इस किले से सुरक्षित निकालकर हम सभी दुश्मनि सेना पर युद्ध करने के लिए निकल पड़ेंगे। तब महाराणा उदयसिंह द्वितीय ने सभी राजकोष को सावधानी से निकाला और उन्हें साथ लेकर पीछे से अपने कुछ विश्वास अंग रक्षको के साथ किले को छोड़कर निकल गये। फिर अगले दिन अकबर की सेना के साथ उनकी सैना का बहुत ही भयंकर युद्ध हुआ था और वीर राजपूतों ने अपना आखरी बलिदान दिया। अनेकों वीरों की छाती पर पैर रखता हुआ अकबर चितौड के किले में घुसा तो उसे जल्दी ही पता चल गया कि वह युद्ध तो जीत गया है परन्तु कूटनीति में हार गया है।

राणा उदय सिंह का विवाह

महाराणा उदय सिंह की विवाह जवंताबाई से हुई है। जवंताबाई पाली के 13 अघेराजों की पुत्री थीं। विवाह के बाद 9 मई 1540 को चैत्र शुक्ल पक्ष के दिन बादल महल में शिरोमणि महाराणा प्रताप का जन्म हुआ। जवंताबाई उदय सिंह की पहली महारानी थीं। जवंताबाई के अलावा, महाराणा उदय सिंह की 22 रानियाँ थीं। उदय सिंह के 17 बेटे और 5 बेटियां थीं।

राणा उदय सिंह की रानियाँ और संतान

1572 में राणा उदय सिंह मृत्यु हो गई। उस समय वह 42 वर्ष के थे और उनकी सात रानियों में से 24 लड़के थे। उनके सबसे छोटे जगमल के पुत्र जगमल थे, जिनसे उनका अपार स्नेह था। अपनी मृत्यु के समय राणा उदयसिंह ने अपने पुत्र को ही अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। लेकिन अधिकांश राज्य के दरबार प्रमुख नहीं चाहते थे कि उदय सिंह जगमल जैसे अयोग्य राजकुमार के साथ सफल हो। 

वह पहली बार 1566 में राणा उदय सिंह के शासनकाल के दौरान चढ़ा, जिसमें वह असफल रहा। इसके बाद 1567 में एक और चढ़ाई की गई और वह इस बार किले पर कब्जा करने में सफल रहा। अत: राणा उदयसिंह की मृत्यु के समय उनके उत्तराधिकारी की अनिवार्य योग्यता चित्तौड़गढ़ को वापस लेना और अकबर जैसे शासक से लड़ने की चुनौती स्वीकार करना था। राणा उदयसिंह के पुत्र जगमल में इतनी क्षमता नहीं थी, इसलिए राज्य के दरबारियों ने उसे अपना राजा मानने से इनकार कर दिया।

महाराणा उदयसिंह द्वितीय की मृत्यु के बाद

साल 28 फरवरी 1572 में राजस्थान के गोगुन्दा में हुई थी। महाराणा उदयसिंह ने अपनी मृत्यु से पहले राजकुमार जगमाल को उत्तराधिकारी घोषित किया था। महाराणा प्रताप महाराणा उदयसिंह द्वितीय की अंतिम क्रिया करने के बाद राज्य दरबारियों ने राणा जगमल को राजगद्दी से उतारकर महाराणा प्रताप को राजगद्दी पर बैठा दिया। इस प्रकार एक मौन क्रांति हुई और मेवाड़ का शासक उदयसिंह की इच्छा से नही बल्कि दरबारियों की इच्छा से महाराणा प्रताप बने। इस घटना को इसी रूप में अधिकांश इतिहासकारों ने उल्लेखित किया है। इसी घटना से एक बात स्पष्ट हो जाती है,कि प्रताप और उनके पिता उदयसिंह के बीच के संबंध इतने अच्छे नही थे। कई लेखक ने महाराणा संग्राम सिंह और महाराणा प्रताप के बीच खड़े राणा उदयसिंह की उपेक्षा करनी आरंभ कर दी। जिससे राणा उदयसिंह के साथ कई प्रकार के आरोप मढ़ दिये गये। जिससे इतिहास में उन्हें एक विलासी और कायर शासक के रूप में निरूपति किया गया है।

 

Share