कर्नाटक
राजधानी | बंगलोर | ||
राजभाषा(एँ) | कन्नड़ भाषा, तुळु भाषा, कोंकणी भाषा | ||
स्थापना | 1 नवंबर 1956 | ||
जनसंख्या | 5,28,50,562 | ||
घनत्व | 714 /वर्ग किमी | ||
क्षेत्रफल | 1,91,976 वर्ग किमी | ||
भौगोलिक निर्देशांक | 12°58′13″N 77°33′37″E | ||
जलवायु | उष्णकटिबंधीय | ||
ग्रीष्म | 40 °C | ||
शरद | 6 °C | ||
ज़िले | 30 | ||
सबसे बड़ा नगर | बंगलोर | ||
मुख्य ऐतिहासिक स्थल | मैसूर | ||
मुख्य पर्यटन स्थल | बैंगलोर, मैसूर | ||
लिंग अनुपात | 1000:965 ♂/♀ | ||
साक्षरता | 66.60% | ||
स्त्री | 56.9% | ||
पुरुष | 76.1% | ||
राज्यपाल | थावर चंद गहलोत | ||
मुख्यमंत्री | सिद्धारमैया | ||
विधानसभा सदस्य | 224 | ||
विधान परिषद सदस्य | 75 | ||
राज्यसभा सदस्य | 12 | ||
बाहरी कड़ियाँ | अधिकारिक वेबसाइट | ||
अद्यतन | 15:37, 11 जून 2022 (IST) | ||
कर्नाटक जिसे कर्णाटक भी कहते हैं, दक्षिण भारत का एक राज्य है। इस राज्य का सृजन 1 नवंबर, 1956 को राज्य पुनर्संगठन अधिनियम के अधीन किया गया था। मूलतः यह मैसूर राज्य कहलाता था और 1973 में इसे पुनर्नामकरण कर कर्नाटक नाम मिला था। कर्नाटक की सीमाएं पश्चिम में अरब सागर, उत्तर पश्चिम में गोआ, उत्तर में महाराष्ट्र, पूर्व में आंध्र प्रदेश, दक्षिण-पूर्व में तमिल नाडु एवं दक्षिण में केरल से लगती हैं। राज्य का कुल क्षेत्रफल 74,122 वर्ग मील (1,91,976 वर्ग कि॰मी॰) है, जो भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 5.83% है। यह राज्य आठवां सबसे बड़ा राज्य है और इसमें 29 जिले हैं। राज्य की आधिकारिक और सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है कन्नड़।
हालांकि कर्नाटक शब्द के उद्गम के कई सन्दर्भ हैं, फिर भी उनमें से सर्वाधिक स्वीकार्य तथ्य है कि कर्नाटक शब्द का उद्गम कन्नड़ शब्द करु, अर्थात् काली या ऊंची और नाडु अर्थात् भूमि या प्रदेश या क्षेत्र से आया है, जिसके संयोजन करुनाडु का पूरा अर्थ हुआ काली भूमि या ऊंचा प्रदेश। काला शब्द यहां के बयालुसीम क्षेत्र की काली मिट्टी से आया है और ऊंचा यानि दक्खन के पठारी भूमि से आया है। ब्रिटिश राज में यहां के लिए कार्नेटिक शब्द प्रयोग किया गया है, जो कृष्णा नदी के दक्षिणी ओर की प्रायद्वीपीय भूमि के लिए प्रयोग किया गया है और कर्नाटक शब्द का अपभ्रंश है।
प्राचीन एवं मध्यकालीन इतिहास देखें तो कर्नाटक क्षेत्र कई बड़े शक्तिशाली साम्राज्यों का क्षेत्र रहा है। इन याज्यों के दरबारों के विचारक, दार्शनिक और भाट व कवियों के सामाजिक, साहित्यिक व धार्मिक संरक्षण में आज का कर्नाटक उपजा है। भारतीय शास्त्रीय संगीत के दोनों ही रूपों, कर्नाटक संगीत और हिन्दुस्तानी संगीत को इस राज्य का महत्त्वपूर्ण योगदान मिला है। आधुनिक युग के कन्नड़ लेखकों को सर्वाधिक ज्ञानपीठ सम्मान मिले हैं। राज्य की राजधानी बंगलुरु शहर है, जो भारत में हो रही त्वरित आर्थिक एवं प्रौद्योगिकी का अग्रणी योगदानकर्त्ता है।
इतिहास
कर्नाटक के आदिम निवासी लौह धातु का प्रयोग उत्तर भारतीयों की अपेक्षा पहले से जानते थे, और ईसापूर्व 1200 इस्वी के औजार धारवाड़ जिले के हल्लूर में मिले हैं। ज्ञात इतिहास के आरंभ में इस प्रदेश पर उत्तर भारतीयों का शासन था। पहले यहाँ नन्दों तथा मौर्यों का शासन था। सातवाहनों का राज्य (ईसापूर्व 30 - 230 इस्वी) उत्तरी कर्नाटक में फैला था जिसके बाद कांची के पल्लवों का शासन आया। पल्लवों के प्रभुत्व को स्थानीय कदम्बों (बनवासी के) तथा कोलार के गंगा राजवंश ने खत्म किया।
कदम्ब राजवंश की स्थापना सन् 345 में मयूरशर्मन नामक ब्राह्मण ने की थी। पल्लवों की राजधानी में अपमान सहने के बाद उसने पल्लवों के खिलाफ विद्रोह कर दिया था। उसके परवर्तियों में से एक ककुस्थ वर्मन (435-55) तो इतना शक्तिशाली हो गया था कि वकट तथा गुप्तों ने भी उनके साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापिक किया था। माना जाता है कि महाकवि कालिदास ने उसके दरबार की यात्रा की थी।
गंगा राजवंश ने सन् 350 के आसपास कोलार से शासन आरंभ किया था और बाद में उन्होंने अपनी राजधानी मैसूर के पास तालकडु में स्थापित की। बदामी चालुक्यों के आने से पहले तक वे दक्षिणी कर्नाटक में एकक्षत्र राज्य करते रहे।
चालुक्य
बदामी के चालुक्यों के अन्दर ही सम्पूर्ण कर्नाटक एक शासन सूत्र में बंध पाया था। वे अपने शासनकाल में बनाई गई कलाकृतियों के लिए भी जाने जाते हैं। इसी कुल के पुलकेशिन द्वितीय (609-42) ने हर्षवर्धन को हराया था। पल्लवों के साथ युद्ध में वे धीरे-धीरे क्षीण होते गए।
बदामी के चालुक्यों की शक्ति क्षीण होने के बाद राष्ट्रकूटों का शासन आया पर वे अधिक दिन प्रभुत्व मे नहीं रह पाए। कल्याण के चालुक्यों ने सन् 973 में उन्हें सत्ता से बाहर कर दिया। सोमेश्वर प्रथम ने चोलों के आक्रमण से बचने की सफलतापूर्वक कोशिश की। उसने कल्याण में अपनी राजधानी स्थापित की और चोल राजा राजाधिराज की कोप्पर में सन् 1054 में हत्या कर दी। उसका बेटा विक्रमादित्य षष्टम तो इतना प्रसिद्ध हुआ कि कश्मीर के कवि दिल्हण ने अपनी संस्कृत रचना के लिए उसके नायक चुना और विक्रमदेव चरितम की रचना की। वो एक प्रसिद्ध कानूनविद विज्ञानेश्वर का भी संरक्षक था। उसने चोल राजधानी कांची को 1085 में जीत लिया।
यादवों (या सेवुना) ने देवगिरि (आधुनिक दौलताबाद, जो बाद में मुहम्मद बिन तुगलक की राजधानी बना) से शासन करना आरंभ किया। पर यादवों को दिल्ली सल्तनत की सेनाओं ने 1296 में हरा दिया। यादवों के समय भास्कराचार्य जैसे गणितज्ञों ने अपनी अमर रचनाए कीं। हेमाद्रि की रचनाए भी इसी काल में हुईं। चालुक्यों की एक शाखा इसी बीच शकितशाली हो रही थी - होयसल। उन्होंने बेलुरु, हेलेबिदु और सोमनाथपुरा में मन्दिरों की रचना करवाई। जब तमिल प्रदेश में चोलों और पाण्ड्यों में संघर्ष चल रहा था तब होयसलों ने पाण्ड्यों को पीछे की ओर खदेड़ दिया। बल्लाल तृतीय (मृत्यु 1343) को दिल्ली तथा मदुरै दोनों के शासकों से युद्ध कना पड़ा। उसके सैनिक हरिहर तथा बुक्का ने विजयनगर साम्राज्य की नींव रखी। होयसलों के शासनकाल में कन्नड़ भाषा का विकास हुआ।
विजयनगर साम्राज्य की स्थापना के समय वो दक्षिण में एक हिन्दू शक्ति के रूप में देखा गया जो दिल्ली और उत्तरी भारत पर सत्तारूढ़ मुस्लिम शासकों के विरूद्ध एक लोकप्रिय शासक बना। हरिहर तथा बुक्का ने न केवल दिल्ली सल्तनत का सामना किया बल्कि मदुरै के सुल्तान को भी हराया। कृष्णदेव राय इस काल का सबसे महान शासक हुआ। विजयनगर के पतन (1565) के बाद बहमनी सल्तनत के परवर्ती राज्यों का छिटपुत शासन हुआ। इन राज्यों को मुगलों ने हरा दिया और इसी बीच बीजापुर के सूबेदार शाहजी के पुत्र शिवाजी के नेतृत्व में मराठों की शक्ति का उदय हुआ। मराठों की शक्ति अठारहवीं सदी के अन्त तक क्षीण होने लगी थी। दक्षिण में हैदर अली ने मैसूर के वोड्यार राजाओं की शक्ति हथिया ली। चौथे आंग्ल-मैसूर युद्ध में हैदर अली के पुत्र टीपू सुल्तान को मात देकर अंग्रेजों ने मैसूर का शासन अपने हाथों में ले लिया। सन् 1818 में पेशवाओं को हरा दिया गया और लगभग सम्पूर्ण राज्य पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। सन् 1956 में कर्नाटक राज्य बना।
प्रागैतिहासिक काल
चौथी और तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के दौरान, कर्नाटक नंद और मौर्य साम्राज्य का हिस्सा था। चित्रदुर्ग में 230 ईसा पूर्व के आसपास के ब्रह्मगिरि शिलालेख सम्राट अशोक के हैं और पास के क्षेत्र को "इसिला" कहते हैं, जिसका संस्कृत में अर्थ है "गढ़वाले क्षेत्र"। कन्नड़ में "इसिला" का अर्थ "तीर चलाना" हो सकता है ("सिला" या "साला" का अर्थ है गोली चलाना और "इसे" या "ईसे" का कन्नड़ में अर्थ है फेंकना)। मौर्य के बाद उत्तर में शतवाहन और दक्षिण में गंगा सत्ता में आये जिसे मोटे तौर पर आधुनिक काल में कर्नाटक का प्रारंभिक बिंदु माना जा सकता है। अमोगावर्ष द्वारा रचित कविराजमार्ग कर्नाटक को दक्षिण में कावेरी नदी और उत्तर में गोदावरी नदी के बीच का क्षेत्र बताता है। यह भी कहता है "काव्य प्रयोग परिनाथमथिगल" (चित्र देखें) जिसका अर्थ है कि क्षेत्र के लोग कविता और साहित्य में विशेषज्ञ हैं।
प्रारंभिक काल
लगभग 3 ईसा पूर्व शतवाहन सत्ता में आये। सातवाहन ने उत्तरी कर्नाटक के कुछ हिस्सों पर शासन किया। वे प्राकृत को प्रशासनिक भाषा के रूप में इस्तेमाल करते थे और वे कर्नाटक से संबंधित हो सकते हैं। सेमुखा और गौतमीपुत्र शातकर्णी महत्वपूर्ण शासक थे। यह साम्राज्य लगभग 300 वर्षों तक चला। शतवाहन साम्राज्य के विघटन के साथ, कर्नाटक के उत्तर में कदंब और दक्षिण में गंग सत्ता में आ गए।
बनवासी कदम्ब
कदंबों को कर्नाटक का सबसे प्रारंभिक स्वदेशी शासक माना जाता है। इसका संस्थापक मयूरवर्मा था और इसका सबसे शक्तिशाली शासक ककुस्थवर्मा था। कदंब नाम का श्रेय कदंब के पेड़ को दिया जाता है जो उस स्थान के पास उगाया गया था जहां साम्राज्य की स्थापना हुई थी। चालुक्यों द्वारा उनके साम्राज्य पर कब्ज़ा करने से पहले कदंबों ने लगभग 200 वर्षों तक शासन किया, लेकिन कदंबों की कुछ छोटी शाखाओं ने 14वीं शताब्दी तक हनागल, गोवा और अन्य क्षेत्रों पर शासन किया। इस पुराने साम्राज्य का विवरण चंद्रावल्ली, चंद्रगिरि, हल्मिडी, तालगुंडा आदि शिलालेखों से मिलता है।
तालाकड़ की गंगा
गंगा ने पहले नंदगिरि से और फिर तलकाड से शासन किया। वे जैन और हिंदू धर्मों के संरक्षक थे। वे कन्नड़ साहित्य के उत्कर्ष और विकास के लिए एक मजबूत नींव रखने में भी सहायक थे। उन्होंने लगभग 700 वर्षों तक शासन किया। अपने चरम काल के दौरान, साम्राज्य में कोडुगु, तुमकुर, बैंगलोर, मैसूर जिले, आंध्र और तमिलनाडु के कुछ हिस्से शामिल थे। दुर्विनिता, श्रीपुरुष और रत्चामल्ला प्रसिद्ध शासक थे। गंगा वास्तुकला का सबसे प्रसिद्ध उदाहरण श्रवणबेलगोला में निर्मित गोमतेश्वर है। 983 ई. में गंगा मंत्री "चावुण्डराय" द्वारा। यह प्रतिमा एक ही अखंड चट्टान से बनाई गई है और इसकी ऊंचाई 57 फीट है। यह दुनिया की सबसे ऊंची मोनोलिथ प्रतिमा है, और इतनी परिपूर्ण है कि प्रेरित अपूर्णता (कन्नड़ में दृष्टि नेवरने) के निशान के रूप में हाथ की उंगलियां थोड़ी कट जाती हैं। मूर्ति नग्न है और उस रूप में मानव की सुंदरता को दर्शाती है। यह मूर्ति कर्नाटक में अपनी तरह की पहली मूर्ति है और इसके बाद तुलनीय मूर्तियाँ निर्मित नहीं की गईं।
बादामी के चालुक्य
चालुक्य साम्राज्य की स्थापना पुलकेशिन ने की थी। उनके पुत्र कीर्तिवर्मा ने साम्राज्य को संगठित और मजबूत किया। मंगलेश जो एक शक्तिशाली शासक था उसने साम्राज्य का विस्तार किया। "चालुक्य" नाम का कोई निश्चित अर्थ नहीं है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान ब्रह्मा के चेलुका (एक प्रकार का जहाज) से पैदा हुए बहादुर व्यक्ति का नाम चालुक्य था। वे देवता विष्णु के संरक्षक थे। सबसे प्रसिद्ध शासक पुलकेशिन द्वितीय (लगभग 610 ई. - लगभग 642 ई.) था। उसे "सत्यशेर्य परमेश्वर" और "दक्षिण पथेश्वर्य" की उपाधि प्राप्त थी क्योंकि उसने कनौज के अधिकांश दक्षिणी और उत्तरी शासकों हर्षवर्द्धन को हराया था। उनके शासन के दौरान, साम्राज्य कर्नाटक के दक्षिण तक फैला हुआ था और इसमें पूरा पश्चिमी भारत (यानी गुजरात, महाराष्ट्र) शामिल था। बाद की विजयों ने पूर्वी भागों (उड़ीसा, आंध्र) को भी उसके शासन में ला दिया। चीनी यात्री जुआनज़ैंग ने उसके दरबार का दौरा किया और साम्राज्य को "महोलोचा" (महाराष्ट्र) कहा। उनके विवरण में पुलकेशिन द्वितीय के व्यक्तिगत विवरण और नियोजित सैन्य तकनीकें शामिल थीं। अजंता के एक कलात्मक चित्र में फारसी सम्राट कुसरू द्वितीय के प्रतिनिधि के राज्य में आगमन को दर्शाया गया है। पुलकेशिन द्वितीय अंततः पल्लव शासक नरसिम्हावर्मन से हार गया, जिसने बादामी पर कब्जा कर लिया और खुद को "वातापीकोंडा" कहा, जिसका शाब्दिक अर्थ है "वह जिसने बादामी को जीता"। पुलकेशिन द्वितीय का अंत एक रहस्य बना हुआ है। लेकिन साम्राज्य 757 ई. तक कायम रह सका। वास्तुकला में उनके योगदान में बादामी, ऐहोल, पट्टडकल, महाकूटा आदि के गुफा मंदिर शामिल हैं।
मान्यखेत का राष्ट्रकूट
राष्ट्रकूट नाम पटेला, गौड़ा, हेगड़े, रेड्डी आदि की तरह एक औपचारिक उपाधि है। दंतिदुर्ग और उनके पुत्र कृष्ण ने चालुक्यों से साम्राज्य छीन लिया और उस पर एक शक्तिशाली साम्राज्य बनाया। गोविंदा के शासनकाल के दौरान, साम्राज्य पूरे दक्षिण और उत्तर में अधिक शक्तिशाली हो गया। उनके पुत्र नृपतुंगा अमोगावर्ष कविराजमार्ग के कार्य के कारण "कविचक्रवर्ती" के रूप में अमर हो गए। सी में. 914 ई. अरब यात्री हसन-अल-मसूद ने साम्राज्य का दौरा किया। 10वीं शताब्दी कन्नड़ साहित्य के लिए स्वर्ण युग थी। प्रसिद्ध कवि "पम्पा" अरिकेसरी के दरबार में थे जो राष्ट्रकूटों के सामंत थे। आदिकवि पंपा ने महाकाव्य "विक्रमार्जुन विजया" के माध्यम से "चंपू" शैली को लोकप्रिय बनाया। इस काल में रहने वाले अन्य प्रसिद्ध कवियों में पोन्ना, रन्ना आदि शामिल हैं। सी के दौरान. 973 ई. चालुक्य के तैल द्वितीय ने कर्क द्वितीय (राष्ट्रकूटों के अंतिम शासक) की कमजोरी का फायदा उठाकर लंबी लड़ाई के बाद राष्ट्रकूटों को हराया। एलोरा का विश्व प्रसिद्ध कैलाश मंदिर उनकी वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है।
कल्याण के चालुक्य
राष्ट्रकूट के बाद चालुक्य आए जिन्होंने कल्याण पर शासन किया। इनमें सबसे प्रसिद्ध विक्रमादित्य 6 था। वह "विक्रम शक" नामक एक नए युग की स्थापना के लिए जिम्मेदार थे। इस अवधि (लगभग 1150 ई.पू.) के दौरान हुई एक महत्वपूर्ण घटना बसवेश्वर का सामाजिक और धार्मिक आंदोलन है जो बिज्जला के दरबार में थे। इस अवधि के दौरान बसवेश्वर, अल्लामप्रभु, चन्नबासवन्ना और अक्कमहादेवी के तहत जो साहित्य फला-फूला, उसने नाडुगन्नाडा (मध्य कन्नड़) में "वचनन्ना" को जन्म दिया, जो समझने में सरल, सुरुचिपूर्ण और लोगों तक पहुंचने में प्रभावी था। साहित्य के वचन रूप ने संस्कृत के प्रभाव को काफी हद तक हटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और इस प्रकार कन्नड़ को साहित्य के लिए एक प्रभावी भाषा के रूप में लोकप्रिय बनाया। कश्मीरी कवि बिल्हण उसके दरबार में आये और वहीं रहने लगे। उन्होंने विक्रमादित्य 6 की प्रशंसा करते हुए "विक्रमांकदेवचरित" लिखा। कलचुर्य ने उनके साम्राज्य पर कब्ज़ा कर लिया और लगभग 20 वर्षों तक शासन किया लेकिन साम्राज्य की अखंडता को देखने में असफल रहे। इस प्रकार साम्राज्य टूट गया जिसे उत्तर में सेवुना और दक्षिण में होयसला ने साझा किया।
देवगिरि के सेवुना
सेवुना नासिक से थे और 835 ई. के दौरान सत्ता में आए। उन्होंने 12वीं शताब्दी की शुरुआत तक दक्कन के कुछ हिस्सों और कर्नाटक के बहुत छोटे हिस्सों पर शासन किया, जिसकी राजधानी देवगिरी थी। सिंगाना द्वितीय मुख्य शासक था और उसके शासनकाल के दौरान, अधिकांश साम्राज्य में स्थिरता का अनुभव हुआ जिसे उसके बाद बनाए नहीं रखा जा सका। वे लगातार होयसला और अन्य शासकों के साथ युद्ध में थे और दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी और उनके सेनापति मलिक काफूर से हार गए।
द्वारसमुद्र के होयसल
होयसल अपनी वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध थे। साम्राज्य की स्थापना महान व्यक्ति "साला" द्वारा की गई थी, जो सोसावुर (वर्तमान में चिक्कमगलूर में अंगड़ी) गांव के रहने वाले थे। एक बार, वह अपने शिक्षक सुदत्त के साथ वसंतिका मंदिर गए, लेकिन, एक बाघ उनके रास्ते में आ गया और उन पर हमला करने की कोशिश की। मालिक ने एक "खतारी" (चाकू) फेंका और चिल्लाया "होय साला (मारो, साला)" और वह आज्ञाकारी रूप से सहमत हो गया और बाघ को कुचल दिया, जिससे वह मर गया। सुदत्त ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा कि वह एक शक्तिशाली साम्राज्य स्थापित करेगा। होयसल के प्रतीक में साला को बाघ से लड़ते हुए दर्शाया गया है। कुछ लोग व्याख्या करते हैं कि आदमी होयसला का प्रतिनिधित्व करता है और बाघ चोलों का प्रतिनिधित्व करता है (बाघ उनका प्रतीक है), जबकि यह तलक्कड़ में चोलों पर होयसला की जीत का प्रतिनिधित्व करता है। यह किंवदंती उनके शाही प्रतीक में भी चित्रित है और कई शिलालेखों और बेलूर मंदिर के सामने पाई जाती है। होयसल जैन धर्म के संरक्षक थे लेकिन सभी धर्मों का सम्मान भी करते थे। 8वीं शताब्दी के दौरान, प्रसिद्ध दार्शनिक आदि शंकराचार्य ने चिकमंगलूर के श्रृंगेरी में दक्षिणाम्नाय शारदा पीठ की स्थापना की और विदेहक (हिंदू) धर्म को प्रोत्साहन दिया। प्रसिद्ध दार्शनिक रामानुजाचार्य ने यदुगिरि (अब मेलुकोटे, मैसूर के पास) में चेलुवनारायण मंदिर की स्थापना की। प्रसिद्ध होयसला राजा बिट्टीदेव (जिन्हें बिट्टिगा भी कहा जाता है) रामानुजाचार्य से प्रभावित थे और हिंदू बन गए, और अपना नाम बदलकर विष्णुवर्धन रख लिया।
विश्व प्रसिद्ध चेन्नाकेशव मंदिर, बेलूर, होयसलेश्वर मंदिर, हेलेबिड और चेन्नाकेशव मंदिर, सोमनाथपुरा उनकी वास्तुकला के उदाहरण हैं। मदुरै के युद्ध में वीर बल्लाला तृतीय की मृत्यु के बाद, होयसल राजवंश का अंत हो गया। पुरालेखशास्त्र के प्रसिद्ध विशेषज्ञ श्री फ़र्गुसेन ने "होयसलेश्वर" मंदिर की वास्तुकला को किसी भी गॉथिक वास्तुकला की कला से बढ़कर बताया है। कुछ यूरोपीय आलोचक हेलेबिड में होयसला वास्तुकला की तुलना ग्रीस के एथेंस में पार्थेनन से करते हैं।
विजयनगर
विजयनगर साम्राज्य की स्थापना हरिहर और बुक्का ने की थी। साम्राज्य की स्थापना कठिन समय के दौरान हुई थी जब वारंगल के काकतीय और कुम्मतदुर्ग के राजा कम्पिली मारे गए थे और उनके राजवंशों को दिल्ली सल्तनत ने उखाड़ फेंका था। कमजोर होयसल सम्राट वीर बल्लाला III ने तिरुवन्नामलाई से कड़ी लड़ाई लड़ी और अंततः मदुरै की लड़ाई में दम तोड़ दिया। ऐसे समय में, विद्यारण्य के आध्यात्मिक मार्गदर्शन में, हक्का और बुक्का ने एक खरगोश को शिकारी कुत्तों को भगाने की कोशिश करते हुए पाया। इसलिए, 1336 ई. में, उन्होंने एक शहर बनाया और पहले इसका नाम विद्यानगर रखा (विद्यारण्य की याद में), लेकिन इसे बदलकर विजयनगर कर दिया। हक्का ने हरिहर राय प्रथम का नाम धारण किया और उनके कार्य के कारण 1346 ई. में साम्राज्य मजबूती से स्थापित हो गया। उन्होंने मदुरै सल्तनत को अपने अधीन कर लिया और श्रीरंगम के श्री रंगनाथ की मूर्ति को वापस लाने में मदद की, जिसे दिल्ली सल्तनत के हमले के दौरान तिरूपति में स्थानांतरित कर दिया गया था। उनके भाई बुक्का ने, बुक्का राया प्रथम के नाम से, उनका उत्तराधिकारी बनाया। उनके उत्तराधिकारी सक्षम प्रशासक थे और लगभग 300 वर्षों तक दक्षिण भारत में मुस्लिम आक्रमण को रोकने में सफल रहे। इतालवी, पुर्तगाली और फ़ारसी आगंतुकों (पारसी, कांता, अब्दुल रजाक) ने विजयनगर की राजधानी हम्पी को उन दिनों रोम के समकक्ष बताया। कृष्णदेवराय साम्राज्य के सबसे प्रसिद्ध शासक थे। 1530 में उनकी मृत्यु के बाद शाही परिवार में आंतरिक झगड़े पैदा हो गए। साम्राज्य को स्थिर रखने वाला और जागीरदारों के विद्रोहों को कुचलने वाला कोई नहीं था। इसका लाभ उठाते हुए, बरार सल्तनत और बीजापुर, बीदर, गोलकुंडा और अहमदनगर के सुल्तानों ने सी में तालीकोटा की लड़ाई में आलिया राम राय की सेना को हरा दिया। 1565 ई. इन सुल्तानों ने हम्पी को भी बर्खास्त कर दिया। विजया विट्ठल मंदिर (हम्पी में) का पत्थर का रथ विजयनगर वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
बहमनी
दक्षिण भारत में मुस्लिम शासकों की विजय के फलस्वरूप बहुमनी साम्राज्य की स्थापना हुई। मुस्लिम छापे इतने तीव्र थे कि लगभग दो हमलों में, दक्षिण के चार साम्राज्य नष्ट हो गए (लगभग 1318 ई. में देवगिरि, लगभग 1323 ई. में आंध्र का वरंगल, लगभग 1330 ई. में तमिलनाडु के पांड्य और आंशिक रूप से होयसला) . लेकिन होयसला बल्लाला ने अपनी राजधानी तिरुवन्नमलाई स्थानांतरित कर दी और अपनी लड़ाई जारी रखी। फारस के अमीर हसन ने खुद को बहमनी कहा और बहमनी साम्राज्य की स्थापना की। मुहम्मद शाह एक सक्षम शासक था और उसने साम्राज्य को मजबूत किया। साम्राज्य ने महाराष्ट्र के बड़े हिस्से और तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक (बीजापुर, बीदर, गुलबर्गा क्षेत्र) के कुछ हिस्सों पर कब्जा कर लिया। मुहम्मद गवन बहुमान के तहत सबसे प्रसिद्ध मंत्री थे। उन्होंने बीदर से शासन किया। रूसी यात्री निकितेन ने सी. में साम्राज्य का दौरा किया था। 1470 ई. और बीदर को एक सुन्दर शहर बताया।
बीजापुर के सुल्तान
लगभग सी. 1490 ई. में साम्राज्य पाँच भागों में टूट गया, जिनमें बीदर और बीजापुर कर्नाटक के थे। अन्य राज्य बरार, अहमदनगर और गोलकुंडा हैं। मुहम्मद इब्राहिम आदिल शाह ने बीजापुर में प्रसिद्ध गोल गुम्बज का निर्माण कराया। उनके शासनकाल में मुस्लिम वास्तुकला फली-फूली लेकिन कई अधूरी रह गईं। इब्राहिम द्वितीय के दरबार में रहने वाले फरिस्ता ने "नजुमल-उलूम" (वैज्ञानिकों का सितारा) नामक एक विश्वकोश संकलित किया जिसमें दक्षिणी शैली की कई कलाएँ शामिल थीं। औरंगजेब के नेतृत्व में मुगलों ने आखिरकार 1686 में सिकंदर आदिल शाह को हरा दिया, जबकि तत्कालीन सुल्तान को दौलताबाद किले में कैद कर दिया गया, जहां 1686 में उनकी मृत्यु हो गई, जिससे आदिल शाही राजवंश समाप्त हो गया।
केलाडी के नायक
विजयनगर शासनकाल के दौरान केलाडी के नायकों ने मलनाड और करावली (पश्चिमी तट) क्षेत्रों पर शासन किया। उन्होंने पुर्तगालियों और बीजापुर के सुल्तानों को सफलतापूर्वक खदेड़ दिया। उन्होंने विजयनगर साम्राज्य के पतन के बाद हिंदू धर्म के सिद्धांतों और परंपराओं को आगे बढ़ाया। अपने चरम के दौरान, राज्य बनवासी (उत्तरा कन्नड़ में) से कन्नूर (केरल में) और पश्चिमी तट से सक्कारेपट्टन (कोडगु में) तक फैला हुआ था, और इसमें उडुपी, दक्षिण कन्नड़, उत्तर कन्नड़, शिमोगा, चिक्कमगलूर के वर्तमान जिले शामिल थे। हसन और कोडागु के कुछ हिस्से। उनमें से सबसे प्रसिद्ध शिवप्पा नायक थे, जिनके पास उत्कृष्ट सैन्य और प्रशासनिक कौशल थे। उन्होंने बीजापुर के सुल्तानों से विजयनगर के तिरुमाला नायक को आश्रय दिया। वह अपने कराधान और कृषि प्रणालियों के लिए प्रसिद्ध थे। उनकी भूमि कराधान प्रणाली "शिवप्पनायकन शिस्तु" (शिवप्पनायक का अनुशासन) के नाम से प्रसिद्ध है। एक महत्वपूर्ण रानी केलाडी चेन्नम्मा थीं। वह औरंगजेब की मुगल सेना को चुनौती देने और हराने वाली पहली भारतीय शासकों में से एक थीं। शिवाजी के पुत्र राजाराम को आश्रय देते हुए, उन्होंने गुरिल्ला युद्ध का सहारा लिया और औरंगजेब की सेना से युद्ध किया। मुग़ल बादशाह को स्वयं उसके साथ शांति के लिए मुकदमा करना पड़ा। वह कन्नड़ पारंपरिक (जनपद) गीतों में अमर हैं। बाद में, रानी वीरम्माजी के शासनकाल के दौरान, मैसूर के हैदर अली ने उनके राज्य पर कब्ज़ा कर लिया और उन्हें मधुगिरि में कैद कर दिया।
मैसूर के वोडेयार
द्वारका से मैसूर आए यादव वंश के येदुराया और कृष्णदेव से मरप्पनायक को रोकने के लिए मदद के लिए संपर्क किया गया था। उन्होंने उसे हरा दिया और मार डाला। उनके उत्तराधिकारी का विवाह येदुरैया से हुआ था और वह 1399 ई. में राजगद्दी पर बैठे। मैसूर को पहले "महिषमंडल" कहा जाता था जिसका अर्थ है राक्षस महिष का क्षेत्र। इस क्षेत्र में एक देवी द्वारा राक्षस को मार दिया गया था और इसलिए इसका नाम मैसूर पड़ा। राजा वोडेयार द्वारा छोटे राज्य को एक शक्तिशाली साम्राज्य में बदल दिया गया था। उन्होंने अपनी राजधानी मैसूर से श्रीरंगपट्टन में स्थानांतरित कर दी। चिक्कदेवराज. वोडेयार उनमें से सबसे प्रसिद्ध शासक है और उसने नायक (इक्केरी), सुल्तानों (मदुरै) और शिवाजी को हराकर "कर्नाटक चक्रवर्ती" की उपाधि प्राप्त की। 1686 ई. तक राज्य में लगभग पूरा दक्षिण भारत शामिल था। 1687 ई. में उन्होंने तीन लाख रुपये देकर मुगलों से बैंगलोर शहर खरीदा। 1761 ई. तक हैदर अली, जो एक सामान्य सैनिक था, ने उनके साम्राज्य पर कब्ज़ा कर लिया।
श्रीरंगपट्टन की सल्तनत
हैदर अली, जिसने मैसूर को वोडेयारों से छीन लिया था, ने श्रीरंगपट्टनम से शासन किया। उसने जल्द ही प्रधान मंत्री नंजराज को हटा दिया और राजा को अपने ही महल में बंदी बना लिया। टीपू सुल्तान ने हैदर अली का उत्तराधिकारी बनाया। उन्होंने अंग्रेजों और उनके सहयोगियों के खिलाफ खूनी युद्ध लड़े लेकिन चौथे एंग्लो-मैसूर युद्ध में ब्रिटिश, मराठों और हैदराबाद निजामों के संघ से बुरी तरह हार गए और 1799 ई. में युद्ध के मैदान में उनकी मृत्यु हो गई।
मैसूर वोडेयर्स
टीपू की पराजय के बाद 1800 ई. की संधि के अनुसार अंग्रेजों ने राज्य का विभाजन कर दिया जिसमें बेल्लारी, कडप्पा, कुरनूल क्षेत्र निजामों को मिल गये; मराठों को उत्तरी भाग मिले; तटीय भागों को अंग्रेजों ने अपने पास रखा, लेकिन उन्होंने इसे बॉम्बे और मद्रास प्रेसीडेंसी के बीच विभाजित कर दिया। ब्रिटिश भारत के तत्कालीन गवर्नर-जनरल मार्कविस ऑफ वेलेस्ले ने मैसूर में वोडेयार को बहाल कर दिया और प्रशासन दीवान पूर्णैया को दे दिया गया क्योंकि सिंहासन राजकुमार अभी भी युवा था। पूर्णैया एक सक्षम प्रशासक थे और उनके मार्गदर्शन में साम्राज्य किसी भी आधुनिक सरकार की तरह कार्य करता था। कतार में अन्य मंत्री सर शेषाद्रि अय्यर, डॉ. एम. विश्वेश्वरैया और सर मिर्जा इस्माइल थे। 1824 ई. के आसपास कित्तूर की "रानी चन्नम्मा" और उनके सेनापति "संगोली रायन्ना" ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई शुरू की और स्वतंत्रता की घोषणा की। इसके फलस्वरूप 1831 ई. में अंग्रेजों ने साम्राज्य पर अधिकार कर लिया।
ब्रिटिश अधिग्रहण
1831 ई. में अंग्रेजों ने साम्राज्य पर कब्ज़ा कर लिया और आयुक्तों की नियुक्ति की, जिन्हें ब्रिटिश साम्राज्य की ओर से शासन करने की शक्ति दी गई। इनमें मार्क कब्बन सबसे महत्वपूर्ण थे। उन्होंने साम्राज्य के कामकाज के तरीके को व्यवस्थित रूप से बदल दिया और बड़े बदलाव लाए लेकिन उन्होंने कुछ पुरानी परंपराओं को जारी रखा। इस अवधि के दौरान राज्य बम्बई और मद्रास प्रांतों, हैदराबाद निजाम और मैसूर के बीच विभाजित हो गया।
मैसूर वोडेयर्स
ब्रिटिश आयुक्तों के शासन की अवधि के बाद, मैसूर को जयचामराजा वोडेयार के अधीन वोडेयारों को वापस दे दिया गया। इस अवधि के दौरान स्वतंत्रता की चाहत ने जोर पकड़ लिया जिसके परिणामस्वरूप कई नेताओं को जेल में डाल दिया गया। इस संघर्ष के फलस्वरूप अंततः अंग्रेजों द्वारा भारत को स्वतंत्रता प्रदान की गई। वोडेयार का शासन भारतीय स्वतंत्रता तक जारी रहा और अंततः उन्होंने मैसूर को भारतीय संघ में मिला लिया जो एक राज्य के रूप में भारत में शामिल हो गया।
कर्नाटक राज्य
भारतीय स्वतंत्रता और देश के विभाजन के बाद, राज्यों को भाषाई और अन्य मानदंडों के आधार पर पुनर्गठित किया गया और इस प्रकार कन्नड़ भाषी आबादी के विभाजित क्षेत्र मैसूर के नाम से वर्तमान कर्नाटक बनाने के लिए एक साथ आए। 1 नवंबर 1973 को मैसूर का नाम बदलकर कर्नाटक कर दिया गया। राज्य ने बैंगलोर शहर को अपनी राजधानी के रूप में चुना और कन्नड़ को एक प्रशासनिक भाषा का दर्जा दिया। केंगल हनुमंथ्या द्वारा निर्मित विधान सौध राज्य संसद भवन बन गया। अट्टारा कचेरी को राज्य उच्च न्यायालय बनाया गया।
बेंगलुरु शहर
लगभग 1537 ई. में एक महत्वपूर्ण घटना घटी केम्पेगौड़ा द्वारा बेंगलुरु शहर की स्थापना, जो यलहंका साम्राज्य का एक सरदार था। प्रचलित मान्यता के अनुसार, जब केम्पेगौड़ा शिकार के लिए गए तो उन्होंने एक मोला (खरगोश) को नायी (कुत्ते) का पीछा करते देखा। उन्होंने इसे एक अच्छा संकेत माना और उस स्थान पर उन्होंने एक किला बनवाया जिससे बेंगलुरु शहर की नींव पड़ी। इससे प्रसन्न होकर विजयनगर सम्राट अच्युतराय ने किले के आसपास की जगह केम्पेगौड़ा को दे दी। केम्पेगौड़ा ने साम्राज्य के धन का उपयोग शहर को बेहतर बनाने और विदेशी व्यापारियों और स्थानीय श्रमिकों को वहां बसाने के लिए किया। उन्होंने शहर की चारों दिशाओं में अलासुरु, हेब्बाला, लालबाग और केम्पमबुडी झील जैसी जगहों पर व्यूइंग (निगरानी) टावर और उनके प्रतीक बनवाए। आज भी उन्हें देखा जा सकता है और ये उनकी यादें बनकर रह गई हैं। इन टावरों का उपयोग बैंगलोर नगर निगम के प्रतीक के रूप में किया जाता है। हालाँकि उन दिनों टावरों का दायरा बड़ा था, लेकिन आज शहर उनसे आगे निकल गया है।
भूगोल
कर्नाटक राज्य में तीन प्रधान मंडल हैं: तटीय क्षेत्र करावली, पहाड़ी क्षेत्र मालेनाडु जिसमें पश्चिमी घाट आते हैं, तथा तीसरा बयालुसीमी क्षेत्र जहां दक्खिन पठार का क्षेत्र है। राज्य का अधिकांश क्षेत्र बयालुसीमी में आता है और इसका उत्तरी क्षेत्र भारत का सबसे बड़ा शुष्क क्षेत्र है। कर्नाटक का सबसे ऊंचा स्थल चिकमंगलूर जिला का मुल्लयनगिरि पर्वत है। यहां की समुद्र सतह से ऊंचाई 1,929 मीटर (6,329 फीट) है। कर्नाटक की महत्त्वपूर्ण नदियों में कावेरी, तुंगभद्रा नदी, कृष्णा नदी, मलयप्रभा नदी और शरावती नदी हैं।
यहां की मिट्टी की कृषि हेतु योग्यता के अनुसार यहां की मृदा को छः प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है: लाल, लैटेरिटिक, काली, ऍल्युवियो-कोल्युविलय एवं तटीय रेतीली मिट्टी। राज्य में चार प्रमुख ऋतुएं आती हैं। जनवरी और फ़रवरी में शीत ऋतु, उसके बाद मार्च-मई तक ग्रीष्म ऋतु, जिसके बाद जून से सितंबर तक मॉनसून वर्षा ऋतु और अंततः अक्टूबर से दिसम्बर पर्यन्त मॉनसूनोत्तर काल। मौसम विज्ञान के आधार पर कर्नाटक तीन क्षेत्रों में बांटा जा सकता है: तटीय, उत्तरी आंतरिक और दक्षिणी आंतरिक क्षेत्र। इनमें से तटीय क्षेत्र में सर्वाधिक वर्षा होती है, जिसका लगभग 3,638.5 मि॰मी॰ (143 इंच) प्रतिवर्ष है, जो राज्य के वार्षिक औसत 1,139 मि॰मी॰ (45 इंच) से कहीं अधिक है। शिमोगा जिला में अगुम्बे भारत में दूसरा सर्वाधिक वार्षिक औसत वर्षा पाने वाला स्थल है। यहां का सर्वाधिक अंकित तापमान 45.6 ° से. (114 °फ़ै.) रायचूर में तथा न्यूनतम तापमान 2.8 °से. (37 °फ़ै) बीदर में है।
कर्नाटक का लगभग 38,724 वर्ग कि॰मी (14,951 वर्ग मील) (राज्य के भौगोलिक क्षेत्र का 20%) वनों से आच्छादित है। ये वन संरक्षित, सुरक्षित, खुले, ग्रामीण और निजी वनों में वर्गीकृत किये जा सकते हैं। यहां के वनाच्छादित क्षेत्र भारत के औसत वनीय क्षेत्र 23% से कुछ ही कम हैं और राष्ट्रीय वन नीति द्वारा निर्धारित 33% से कहीं कम हैं।
उप-मंडल
कर्नाटक राज्य में 30 जिले हैं —बागलकोट, बंगलुरु ग्रामीण, बंगलुरु शहरी, बेलगाम, बेल्लारी, बीदर, बीजापुर, चामराजनगर, चिकबल्लपुर, चिकमंगलूर, चित्रदुर्ग, दक्षिण कन्नड़, दावणगिरि, धारवाड़, गडग, गुलबर्ग, हसन, हवेरी, कोडगु, कोलार, कोप्पल, मांड्या, मैसूर, रायचूर, रामनगर, शिमोगा, तुमकुर, उडुपी, उत्तर कन्नड़ एवं यादगीर। प्रत्येक जिले का प्रशासन एक जिलाधीश या जिलायुक्त के अधीन होता है। ये जिले फिर उप-क्षेत्रों में बंटे हैं, जिनका प्रशासन उपजिलाधीश के अधीन है। उप-जिले ब्लॉक और पंचायतों तथा नगरपालिकाओं द्वारा देखे जाते हैं।
2001 की जनगणना के आंकड़ों से ज्ञात होता है कि जनसंख्यानुसार कर्नाटक के शहरों की सूची में सर्वोच्च छः नगरों में बंगलुरु, हुबली-धारवाड़, मैसूर, गुलबर्ग, बेलगाम एवं मंगलौर आते हैं। 10 लाख से अधिक जनसंख्या वाले शहरों में मात्र बंगलुरु ही आता है। बंगलुरु शहरी, बेलगाम एवं गुलबर्ग सर्वाधिक जनसंख्या वाले जिले हैं। प्रत्येक में 30 लाख से अधिक जनसंख्या है। गडग, चामराजनगर एवं कोडगु जिलों की जनसंक्या 10 लाख से कम है।
जलवायु
पश्चिम से पूर्व की ओर बढ़ते हुए पठार पर मलनाड ज़्यादा खुले क्षेत्र में परिवर्तित हो जाता है, जिसे मैदान कहते हैं, जहाँ कम वर्षा होती है और मॉनसूनी जंगलों का स्थान झाड़ीदार जंगल ले लेते हैं। मॉनसूनी जंगलों में वन्य जीवन समृद्ध है, जिसमें बाघ, हाथी, गौर और हिरन शामिल हैं। जंगली सूअर, भालू और तेंदुआ मैदानी क्षेत्र में रहते हैं। यहाँ पाए जाने वाले पक्षियों में मोर सबसे आम है। कर्नाटक राज्य में डांडेली में वन्यजीव अभयारण्य और बांदीपुर और नगरहोल में राष्ट्रीय अद्यान हैं।
वन और वन्य जीवन
वन विभाग के पास राज्य के 20.15 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र का प्रबंधन है। वनों का वर्गीकरण इस प्रकार किया गया है-
सुरक्षित वन
संरक्षित वन
अवर्गीकृत वन
ग्रामीण वन
निजी वन
यहाँ 5 राष्ट्रीय पार्क और 23 वन्य जीव अभयारण्य है।
ईंधन की लकड़ी, चारा और इमारती लकड़ी के लिए जंगलों को विकसित किया जा रहा है।
प्रोजेक्ट टाइगर और प्रोजेक्ट एलीफेंट जैसी अनेक योजनाएं केंद्रीय सहायता से लागू की जा रही हैं।
विदेशी सहायता से अनेक वन परियोजनाएं शुरू की गई हैं।
जापान बैंक फॉर इंटरनेशनल कोऑपरेशन से कर्नाटक के लिए फारेस्ट मैनेजमेंट और बायो-डार्यवर्सिटी परियोजना चल रही है और यह पूरे राज्य कर्नाटक में 2005 - 06 से 2012 - 13 तक लागू करने की योजना है।
जनसांख्यिकी
2001 की भारत की जनगणना के अनुसार, कर्नाटक की कुल जनसंख्या 52,850,562 है, जिसमें से 26,898,918 (50.89%) पुरुष और 25,951,644 स्त्रियां (43.11%) हैं। यानि प्रत्येक्क 1000 पुरुष 964 स्त्रियां हैं। इसके अनुसार 1991 की जनसंख्या में 17.25% की वृद्धि हुई है। राज्य का जनसंख्या घनत्व 275.6 प्रति वर्ग कि.मी है और 33.98% लोग शहरी क्षेत्रों में रहते हैं। यहां की साक्षरता दर 66.6% है, जिसमें 76.1% पुरुष और 56.9% स्त्रियां साक्षर हैं। यहां की कुल जनसंख्या का 83% हिन्दू हैं और 11% मुस्लिम, 4% ईसाई, 0.78% जैन, 0.73% बौद्ध और शेष लोग अन्य धर्मावलंबी हैं।
कर्नाटक की आधिकारिक भाषा कन्नड़ है और स्थानीय भाषा के रूप में 64.75% लोगों द्वारा बोली जाती है। 1991 के अनुसार अन्य भाषायी अल्पसंख्यकों में उर्दु (9.72%), तेलुगु (8.34%), तमिल (5.46%), मराठी (3.95%), टुलु (3.38%, हिन्दी (1.87%), कोंकणी (1.78%), मलयालम (1.69%) और कोडव तक्क भाषी 0.25% हैं। राज्य की जन्म दर 2.2% और मृत्यु दर 0.72% है। इसके अलावा शिशु मृत्यु (मॉर्टैलिटी) दर 5.5% एवं मातृ मृत्यु दर 0.195% है। कुल प्रजनन (फर्टिलिटी) दर 2.2 है।
स्वास्थ्य एवं आरोग्य के क्षेत्र (सुपर स्पेशियलिटी हैल्थ केयर) में कर्नाटक की निजी क्षेत्र की कंपनियां विश्व की सर्वश्रेष्ठ से तुलनीय हैं। कर्नाटक में उत्तम जन स्वास्थ्य सेवाएं हैं, जिनके आंकड़े व स्थिति भारत के अन्य अधिकांश राज्यों की तुलना में श्रेष्ठ हैं। इसके बावजूद भी राज्य के कुछ अति पिछड़े इलाकों में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव है। प्रशासनिक उद्देश्य हेतु, कर्नाटक को चार रेवेन्यु मंडलों, 49 उप-मंडलों, 29 जिलों, 175 तालुकों और 745 होब्लीज़/रेवेन्यु वृत्तों में बांटा गया है। प्रत्येक जिला प्रशासन का अध्यक्ष जिला उपायुक्त होता है, जो भारतीय प्रशासनिक सेवा (आई.ए.एस) से होता है और उसके अधीन कर्नाटक राज्य सेवाओं के अनेक अधिकारीगण होते हैं। राज्य के न्याय और कानून व्यवस्था का उत्तरदायित्व पुलिस उपायुक्त पर होता है। ये भारतीय पुलिस सेवा का अधिकारी होता है, जिसके अधीन कर्नाटक राज्य पुलिस सेवा के अधिकारीगण कार्यरत होते हैं। भारतीय वन सेवा से वन उपसंरक्षक अधिकारी तैनात होता है, जो राज्य के वन विभाग की अध्यक्षता करता है। जिलों के सर्वांगीण विकास प्रत्येक जिले के विकास विभाग जैसे लोक सेवा विभाग, स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, पशु-पालन, आदि विभाग देखते हैं। राज्य की न्यायपालिका बंगलुरु में स्थित कर्नाटक उच्च न्यायालय (अट्टार कचेरी) और प्रत्येक जिले में जिले और सत्र न्यायालय तथा तालुक स्तर के निचले न्यायालय के अनुरक्षण में चलती है।
कर्नाटक की राजनीति में मुख्यतः तीन राजनैतिक पार्टियों: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी और जनता दल का ही वर्चस्व रहता है। कर्नाटक के राजनीतिज्ञों ने भारत की संघीय सरकार में प्रधानमंत्री तथा उपराष्ट्रपति जैसे उच्च पदों की भी शोभा बढ़ायी है। वर्तमान संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यू.पी.ए सरकार में भी तीन कैबिनेट स्तरीय मंत्री कर्नाटक से हैं। इनमें से उल्लेखनीय हैं पूर्व मुख्यमंत्री एवं वर्तमान क़ानून एवं न्याय मंत्रालय – वीरप्पा मोइली हैं। राज्य के कासरगोड और शोलापुर जिलों पर तथा महाराष्ट्र के बेलगाम पर दावे के विवाद राज्यों के पुनर्संगठन काल से ही चले आ रहे हैं।
कर्नाटक राज के आधिकारिक चिह्न में गंद बेरुंड बीच में बना है। इसके ऊपर घेरे हुए चार सिंह चारों दिशाओं में देख रहे हैं। इसे सारनाथ में अशोक स्तंभ से लिया गया है। इस चिह्न में दो शरभ हैं, जिनके हाथी के सिर और सिंह के धड़ हैं।
अर्थव्यवस्था
कर्नाटक का वर्ष २००७-०८ सकल राज्य उत्पाद लगभग 215.282 हजार करोड़ ($ 51.25 बिलियन) रहा। 2007-08 में इसके सकल घरेलु उत्पाद में 7% की वृद्धी हुई थी। भारत के राष्ट्रीय सकल घरेलु उत्पाद में वर्ष 2004-05 में इस राज्य का योगदान 5.2% रहा था। कर्नाटक पिछले कुछ दशकों में जीडीपी एवं प्रति व्यप्ति जीडीपी के पदों में तीव्रतम विकासशील राज्यों में रहा है। यह 56.2% जीडीपी और 43.9% प्रति व्यक्ति जीडीपी के साथ भारतीय राज्यों में छठे स्थान पर आता है। सितंबर, 2006 तक इसे वित्तीय वर्ष 2006-07 के लिए 78.097 बिलियन ($ 1.7255 बिलियन) का विदेशी निवेश प्राप्त हुआ था, जिससे राज्य भारत के अन्य राज्यों में तीसरे स्थान पर था। वर्ष 2004 के अंत तक, राज्य में अनुद्योग दर (बेरोजगार दर) 4.94% थी, जो राष्ट्रीय अनुद्योग दर 5.99% से कम थी। वित्तीय वर्ष 2006-07 में राज्य की मुद्रा स्फीर्ती दर 4.4% थी, जो राष्ट्रीय दर 4.7% से थोड़ी कम थी। वर्ष 2004-05 में राज्य का अनुमानित गरीबी अनुपात 17% रहा, जो राष्ट्रीय अनुपात 27.5% से कहीं नीचे है।
कर्नाटक की लगभग 56% जनसंख्या कृषि और संबंधित गतिविधियों में संलग्न है। राज्य की कुल भूमि का 64.6%, यानि 1.231 करोड़ हेक्टेयर भूमि कृषि कार्यों में संलग्न है। यहाँ के कुल रोपित क्षेत्र का 26.5% ही सिंचित क्षेत्र है। इसलिए यहाँ की अधिकांश खेती दक्षिण-पश्चिम मानसून पर निर्भर है। यहाँ भारत के सार्वजनिक क्षेत्र के अनेक बड़े उद्योग स्थापित किए गए हैं। जैसे हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड, नेशनल एरोस्पेस लैबोरेटरीज़, भारत हैवी एलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड, इंडियन टेलीफोन इंडस्ट्रीज़, भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड एवं हिन्दुस्तान मशीन टूल्स आदि जो बंगलुरु में ही स्थित हैं। यहाँ भारत के कई प्रमुख विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी अनुसंधान केन्द्र स्थित हैं। जैसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, केन्द्रीय विद्युत अनुसंधान संस्थान, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड एवं केन्द्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान। मैंगलोर रिफाइनरी एंड पेट्रोकैमिकल्स लिमिटेड, मंगलोर स्थित एक तेल शोधन केन्द्र है।
1980 के दशक से कर्नाटक (विशेषकर बंगलुरु) सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विशेष उभरा है। वर्ष २००७ के आंकड़ों के अनुसार कर्नाटक से लगभग २००० आई.टी फर्म संचालित हो रही थीं। इनमें से कई के मुख्यालय भी राज्य में ही स्थित हैं, जिनमें दो सबसे बड़ी आई.टी कंपनियां इन्फोसिस और विप्रो हैं। इन संस्थाओं से निर्यात रु. 50,000 करोड़ (12.5 बिलियन) से भी अधिक पहुंचा है, जो भारत के कुल सूचना प्रौद्योगिकी निर्यात का 38% है। देवनहल्ली के बाहरी ओर का नंदी हिल क्षेत्र में 50 वर्ग कि.मी भाग, आने वाले 22 बिलियन के ब्याल आईटी निवेश क्षेत्र की स्थली है। ये कर्नाटक की मूल संरचना इतिहास की अब तक की सबसे बड़ी परियोजना है। इन सब कारणों के चलते ही बंगलौर को भारत की सिलिकॉन घाटी कहा जाने लगा है।
भारत में कर्नाटक जैवप्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी अग्रणी है। यह भारत के सबसे बड़े जैव आधारित उद्योगों के समूह का केन्द्र भी है, जहां देश की ३२० जैवप्रौद्योगिकी संस्थाओं व कंपनियों में से 158 स्थित हैं। इसी राज्य से भारत के कुल पुष्प-उद्योग का 75% योगदान है। पुष्प उद्योग तेजी से उभरता और फैलता उद्योग है, जिसमें विश्व भर में सजावटी पौधे और फूलों की आपूर्ति की जाती है।
भारत के अग्रणी बैंकों में से सात, केनरा बैंक, सिंडिकेट बैंक, कार्पोरेशन बैंक, विजया बैंक, कर्नाटक बैंक, वैश्य बैंक और स्टेट बैंक ऑफ मैसूर का उद्गम इसी राज्य से हुआ था। राज्य के तटीय जिलों उडुपी और दक्षिण कन्नड़ में प्रति 500 व्यक्ति एक बैंक शाखा है। ये भारत का सर्वश्रेष्ठ बैंक वितरण है। मार्च 2002 के अनुसार, कर्नाटक राज्य में विभिन्न बैंकों की 4767 शाखाएं हैं, जिनमें से प्रत्येक शाखा औसत 11,000 व्यक्तियों की सेवा करती है। ये आंकड़े राष्ट्रीय औसत 16,000 से काफी कम है।
भारत के 3500 करोड़ के रेशम उद्योग से अधिकांश भाग कर्नाटक राज्य में आधारित है, विशेषकर उत्तरी बंगलौर क्षेत्रों जैसे मुद्दनहल्ली, कनिवेनारायणपुरा एवं दोड्डबल्लपुर, जहां शहर का 70 करोड़ रेशम उद्योग का अंश स्थित है। यहां की बंगलौर सिल्क और मैसूर सिल्क विश्वप्रसिद्ध हैं।
यातायात
कर्नाटक में वायु यातायात देश के अन्य भागों की तरह ही बढ़ता हुआ किंतु कहीं उन्नत है। कर्नाटक राज्य में बंगलुरु, मंगलौर, हुबली, बेलगाम, हम्पी एवं बेल्लारी विमानक्षेत्र में विमानक्षेत्र हैं, जिनमें बंगलुरु एवं मंगलौर अंतर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र हैं। मैसूर, गुलबर्ग, बीजापुर, हस्सन एवं शिमोगा में भी 2007 से प्रचालन कुछ हद तक आरंभ हुआ है। यहां चालू प्रधान वायुसेवाओं में किंगफिशर एयरलाइंस एवं एयर डेक्कन हैं, जो बंगलुरु में आधारित हैं।
कर्नाटक का रेल यातायात जाल लगभग 3,089 किलोमीटर (1,919 मील) लंबा है। 2002 में हुबली में मुख्यालय सहित दक्षिण पश्चिमी रेलवे के सृजन से पूर्व राज्य दक्षिणी एवं पश्चिमी रेलवे मंडलों में आता था। अब राज्य के कई भाग दक्षिण पश्चिमी मंडल में आते हैं, व शेष भाग दक्षिण रेलवे मंडल में आते हैं। तटीय कर्नाटक के भाग कोंकण रेलवे नेटवर्क के अंतर्गत आता है, जिसे भारत में इस शताब्दी की सबसे बड़ी रेलवे परियोजना के रूप में देखा गया है। बंगलुरु अन्तर्राज्यीय शहरों से रेल यातायात द्वारा भली-भांति जुड़ा हुआ है। राज्य के अन्य शहर अपेक्षाकृत कम जुड़े हैं।
कर्नाटक में 11 जहाजपत्तन हैं, जिनमें मंगलौर पोर्ट सबसे नया है, जो अन्य दस की अपेक्षा सबसे बड़ा और आधुनिक है। मंगलौर का नया पत्तन भारत के नौंवे प्रधान पत्तन के रूप में 4 मई, 1974 को राष्ट्र को सौंपा गया था। इस पत्तन में वित्तीय वर्ष 2006-07 में 3 करोड़ 20.4 लाख टन का निर्यात एवं 141.2 लाख टन का आयात व्यापार हुआ था। इस वित्तीय वर्ष में यहां कुल 1015 जलपोतों की आवाजाही हुई, जिसमें 18 क्यूज़ पोत थे। राज्य में अन्तर्राज्यीय जलमार्ग उल्लेखनीय स्तर के विकसित नहीं हैं।
कर्नाटक के राष्ट्रीय एवं राज्य राजमार्गों की कुल लंबाइयां क्रमशः 3,973 किलोमीटर (2,469 मील) एवं 9,829 किलोमीटर (6,107 मील) हैं। कर्नाटक राज्य सड़क परिवहन निगम (के.एस.आर.टी.सी) राज्य का सरकारी लोक यातायात एवं परिवहन निगम है, जिसके द्वारा प्रतिदिन लगभग 22 लाख यात्रियों को परिवहन सुलभ होता है। निगम में 25,000 कर्मचारी सेवारत हैं। 1990 के दशक के अंतिम दौर में निगम को तीन निगमों में विभाजित किया गया था, बंगलौर मेट्रोपॉलिटन ट्रांस्पोर्ट कार्पोरेशन, नॉर्थ-वेस्ट कर्नाटक ट्रांस्पोर्ट कार्पोरेशन एवं नॉर्थ-ईस्ट कर्नाटक ट्रांस्पोर्ट कार्पोरेशन। इनके मुख्यालय क्रमशः बंगलौर, हुबली एवं गुलबर्ग में स्थित हैं।
खनिज
कुछ स्थानों पर कर्नाटक की उच्च खनिज भंडार वाली पूर्व कैंब्रियन युग की चट्टानें हैं, जो कम से कम 57 करोड़ वर्ष पुरानी हैं। कर्नाटक भारत में क्रोमाइट का सबसे बड़ा उत्पादन है; यह देश में मैग्नेसाइट उत्पादन दो राज्यों में से एक (दूसरा राज्य तमिलनाडु) है। उच्च गुणवत्ता वाले लौह अयस्क भंडार मुख्यत: चिकमगलूर और चित्रदुर्ग ज़िलों में हैं; अल्प मात्रा में अभ्रक ताम्र अयस्क, बॉक्साइट, रक्तमणि का भी खनन होता है। भारत में सोना इस क्षेत्र में स्थित कोलार स्वर्ण क्षेत्र से निकाला जाता है। राष्ट्रीयकृत हो चुकी सोने की प्रमुख खानें 2,743 मीटर तक गहरी हैं।
कृषि
कर्नाटक राज्य में लगभग 66 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण है और 55.60 प्रतिशत जनता कृषि और इससे जुडे रोज़गारों में लगी है। राज्य की 60 प्रतिशत, लगभग 114 लाख हेक्टेयर भूमि कृषि योग्य है। कुल कृषि योग्य भूमि के 72 प्रतिशत भाग में अच्छी वर्षा होती है, बाक़ी लगभग 28 प्रतिशत भूमि में सिंचाई की व्यवस्था है। राज्य में 10 प्रतिशत कृषि मौसमी क्षेत्र हैं। यहाँ की प्रमुख मिट्टी लाल मिट्टी है, फिर दूसरे स्थान पर काली मिट्टी है। आज्य की कुल भूमि का 51.7 प्रतिशत भाग राज्य का बुआई क्षेत्र है। वर्ष 2007-08 में लगभग 117.35 लाख टन खाद्यान्न का उत्पादन हुआ है।
उद्योग
राज्य के खनिज संसाधन, भद्रावती में लौह और इस्पात उद्योग और बंगलोर में भारी इंजीनियरिंग कारख़ाने को आधार प्रदान करते है। राज्य के अन्य उद्योगों में सूती वस्त्र की मिलें चीनी प्रसंस्करण, वस्त्र निर्माण, खाद्य सामग्री, बिजली की मशीनरी उर्वरक, सीमेंट और काग़ज़ उद्योग शामिल हैं। मैसूर शहर बंगलोर दोनों में प्राचीन काल से स्थापित रेशम उद्योग है, जहाँ भारत के मलबेरी रेशम का अधिकांश हिस्सा उत्पादित होता है। जोग जलप्रपात के पास स्थित शरावती परियोजना कर्नाटक के उद्योगों को बिजली प्रदान करने वाले अनेक जलविद्युत संयंत्रों में सबसे बड़ी है।
दुग्ध उत्पादन
कर्नाटक देश के प्रमुख दुग्ध उत्पादक राज्यों में से एक है।
कर्नाटक मिल्क फेडरेशन के पास 21 प्रसंस्करण संयंत्र हैं जिनकी क्षमता लगभग 26.45 लाख लीटर प्रतिदिन है।
42 प्रतिशत दुग्ध केंद्रों की क्षमता 14.60 लाख लीटर प्रतिदिन है।
बागवानी
राज्य के 16.30 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बागवानी होती है।
इसमें 101 लाख मी. टन उत्पादन होता है।
केंद्र सरकार ने ‘राष्ट्रीय बागवानी मिशन’ के अंतर्गत 171.29 करोड़ रुपए का निवेश किया है।
सिंचाई योजनाएँ
कर्नाटक राज्य में 28 प्रतिशत कृषि योग्य क्षेत्र में सिंचाई होती है।
2006-07 के दौरान कुल 33.14 लाख हेक्टयेर भूमि की सिंचाई क्षमता थी जिसमें से 23.21 लाख हेक्टेयर बड़ी और 9.93 लाख हेक्टेयर लघु सिंचाई परियोजनाएं शामिल हैं।
बिजली उत्पादन
कर्नाटक देश का पहला ऐसा राज्य है जहां पनबिजली संयंत्र स्थापित किए गए थे।
आज कर्नाटक की सकल बिजली उत्पादन की क्षमता 7222.91 है।
2007-08 में 31229 करोड़ यूनिट बिजली का उत्पादन हुआ।
सूचना प्रौद्योगिकी
कनार्टक सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अतुलनीय है।
2006-07 में यहाँ से 48700 करोड़ रुपए के सॉफ्टवेयर का निर्यात हुआ था।
2007-08 में नवंबर, 2007 तक 24,450 करोड़ रुपए का निर्यात हो चुका था।
नैसकॉम की ताजा रिपोर्ट के अनुसार मैंगलौर और मैसूर सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अधिक गति से उन्नति कर रहे है।
जैव प्रौद्योगिकी
कनार्टक राज्य और विशेषकर बैंगलोर शहर देश का सबसे बड़ा जैव भंडार है।
2006-07 के दौरान एस एल एल डब्ल्यूए ने तीन परियोजनाएं स्वीकृत की हैं, जिन पर 535.50 करोड़ रुपए का निवेश होगा।
जैव प्रौद्योगिकी का निर्यात 21.5 करोड़ अमेरिकी डॉलर रहा।
पर्यटन स्थल
एक राज्य - कई दुनियां’ के रूप में जाना जाने वाला कर्नाटक राज्य दक्षिण भारत का प्रमुख पर्यटन केंद्र बनता जा रहा है।
सूचना प्रौद्योगिकी और जैव प्रौद्योगिकी के केंद्र कनार्टक में हाल ही में बहुत से पर्यटक आते हैं।
2005-06 की तुलना में 2006-07 में पर्यटकों की संख्या में 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यह राज्य अपने स्मारकों की विरासत और प्राकृतिक पर्यटन के रूप में प्रसिद्ध है।
'स्वर्ण रथ', जिसका नाम दक्षिण भारत की विश्व धरोहर 'हंपी' के प्रस्तर रथ के नाम पर रखा गया है, प्राचीन धरोहरों, भव्य महलों, वन्यजीवन और सुनहरे समुद्र-तटों के बीच भ्रमण करेगा। मैसूर में श्रीरंगपटन, मैसूर के महल, नगरहोल राष्ट्रीय पार्क (कबीनी) की सैर कराते हुए 11वीं शताब्दी के 'होयसाला स्थापत्य' और विश्व धरोहर 'श्रवणबेल गोला, बेलूर, हलेबिड, हंपी' से होते हुए बदामी, पट्टदकल व ऐहोल की त्रिकोणीय धरोहर से होते हुए गोवा के सुनहरे समुद्र-तटों का अवलोकन कराते हुए अंत में यह बैंगलोर वापस आएगा।
मेगुती स्थान कर्नाटक राज्य के बीजापुर ज़िले में स्थित है। इस स्थान पर 634 ई. में चालुक्य वास्तुशैली में निर्मित एक महत्त्वपूर्ण जैन मंदिर है।
कर्नाटक में धरोहर वाले महल, घने वन और पवित्र स्थलों की भरमार है। ‘होम स्टे’ नामक नई अवधारणा ने राज्य में पर्यटन के नए आयाम जोड़ दिए हैं। हंपी और पट्टकल को विश्व धरोहर स्थल घोषित कर दिया गया है।
संस्कृति
कर्नाटक राज्य में विभिन्न बहुभाषायी और धार्मिक जाति-प्रजातियां बसी हुई हैं। इनके लंबे इतिहास ने राज्य की सांस्कृतिक धरोहर में अमूल्य योगदान दिया है। कन्नड़िगों के अलावा, यहां तुलुव, कोडव और कोंकणी जातियां, भी बसी हुई हैं। यहां अनेक अल्पसंख्यक जैसे तिब्बती बौद्ध तथा अनेक जनजातियाँ जैसे सोलिग, येरवा, टोडा और सिद्धि समुदाय हैं जो राज्य में भिन्न रंग घोलते हैं। कर्नाटक की परंपरागत लोक कलाओं में संगीत, नृत्य, नाटक, घुमक्कड़ कथावाचक आदि आते हैं। मालनाड और तटीय क्षेत्र के यक्षगण, शास्त्रीय नृत्य-नाटिकाएं राज्य की प्रधान रंगमंच शैलियों में से एक हैं। यहां की रंगमंच परंपरा अनेक सक्रिय संगठनों जैसे निनासम, रंगशंकर, रंगायन एवं प्रभात कलाविदरु के प्रयासों से जीवंत है। इन संगठनों की आधारशिला यहां गुब्बी वीरन्ना, टी फी कैलाशम, बी वी करंथ, के वी सुबन्ना, प्रसन्ना और कई अन्य द्वारा रखी गयी थी। वीरागेस, कमसेल, कोलाट और डोलुकुनिता यहां की प्रचलित नृत्य शैलियां हैं। मैसूर शैली के भरतनाट्य यहां जत्ती तयम्मा जैसे पारंगतों के प्रयासों से आज शिखर पर पहुंचा है और इस कारण ही कर्नाटक, विशेषकर बंगलौर भरतनाट्य के लिए प्रधान केन्द्रों में गिना जाता है।
कर्नाटक का विश्वस्तरीय शास्त्रीय संगीत में विशिष्ट स्थान है, जहां संगीत की कर्नाटक (कार्नेटिक) और हिन्दुस्तानी शैलियां स्थान पाती हैं। राज्य में दोनों ही शैलियों के पारंगत कलाकार हुए हैं। वैसे कर्नाटक संगीत में कर्नाटक नाम कर्नाटक राज्य विशेष का ही नहीं, बल्कि दक्षिण भारतीय शास्त्रीय संगीत को दिया गया है।१६वीं शताब्दी के हरिदास आंदोलन कर्नाटक संगीत के विकास में अभिन्न योगदान दिया है। सम्मानित हरिदासों में से एक, पुरंदर दास को कर्नाटक संगीत पितामह की उपाधि दी गयी है।[50] कर्नाटक संगीत के कई प्रसिद्ध कलाकार जैसे गंगूबाई हंगल, मल्लिकार्जुन मंसूर, भीमसेन जोशी, बसवराज राजगुरु, सवाई गंधर्व और कई अन्य कर्नाटक राज्य से हैं और इनमें से कुछ को कालिदास सम्मान, पद्म भूषण और पद्म विभूषण से भी भारत सरकार ने सम्मानित किया हुआ है।
गमक कर्नाटक संगीत पर आधारित एक अन्य भारतीय शास्त्रीय संगीत शास्त्रीय संगीत शैली है, जिसका प्रचलन कर्नाटक राज्य में है। कन्नड़ भगवती शैली आधुनिक कविगणों के भावात्मक रस से प्रेरित प्रसिद्ध संगीत शैली है। मैसूर चित्रकला शैली ने अनेक श्रेष्ठ चित्रकार दिये हैं, जिनमें से सुंदरैया, तंजावुर कोंडव्य, बी.वेंकटप्पा और केशवैय्या हैं। राजा रवि वर्मा के बनाये धार्मिक चित्र पूरे भारत और विश्व में आज भी पूजा अर्चना हेतु प्रयोग होते हैं। मैसूर चित्रकला की शिक्षा हेतु चित्रकला परिषत नामक संगठन यहां विशेष रूप से कार्यरत है।
कर्नाटक में महिलाओं की परंपरागत भूषा साड़ी है। कोडगु की महिलाएं एक विशेष प्रकार से साड़ी पहनती हैं, जो शेष कर्नाटक से कुछ भिन्न है। राज्य के पुरुषों का परंपरागत पहनावा धोती है, जिसे यहां पाँचे कहते हैं। वैसे शहरी क्षेत्रों में लोग प्रायः कमीज-पतलून तथा सलवार-कमीज पहना करते हैं। राज्य के दक्षिणी क्षेत्र में विशेष शैली की पगड़ी पहनी जाती है, जिसे मैसूरी पेटा कहते हैं और उत्तरी क्षेत्रों में राजस्थानी शैली जैसी पगड़ी पहनी जाती है और पगड़ी या पटगा कहलाती है।
चावल और रागी राज्य के प्रधान खाद्य में आते हैं और जोलड रोट्टी, सोरघम उत्तरी कर्नाटक के प्रधान खाद्य हैं। इनके अलावा तटीय क्षेत्रों एवं कोडगु में अपनी विशिष्ट खाद्य शैली होती है। बिसे बेले भात, जोलड रोट्टी, रागी बड़ा, उपमा, मसाला दोसा और मद्दूर वड़ा कर्नाटक के कुछ प्रसिद्ध खाद्य पदार्थ हैं। मिष्ठान्न में मैसूर पाक, बेलगावी कुंड, गोकक करदंतु और धारवाड़ पेड़ा मशहूर हैं।
संगनकल्लू
कर्नाटक के बेलारी ज़िले में स्थित संगनकल्लू से नव- पाषाणयुगीन तथा ताम्र- पाषाणयुगीन संस्कृतियों के प्रमाण मिले हैं। 1872 ई. में इस स्थल से घर्षित पाषाण कुल्हाड़ियाँ प्राप्त हुई हैं। 1884 ई. में इस स्थल के नजदीक एक पहाड़ी पर शैल चित्र तथा उकेरी गई मानव, हस्ति, वृषभ, पक्षी तथा तारों की आकृतियों की खोज की गई। इस क्षेत्र में दो राखी-ढेरियाँ पाई गई हैं। प्रथम राखी ढेरी के उत्खनन में तीन चरण अनावृत्त किए हैं।
नंजनगूड
नंजनगूड प्राचीन तीर्थनगर कर्नाटक में कावेरी की सहायक काबिनी नदी के तट पर मैसूर से 26 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है। यह नगर 10वीं और 11वीं शताब्दी में गंग चोल वंश के समय से ही विख्यात रहा है। इस नगर में श्रीकांतेश्वर नंजुनदेश्वर (शिव) को समर्पित एक प्रसिद्ध मन्दिर है। सम्भवतः यह कर्नाटक का सबसे बड़ा मन्दिर है।
हम्पी
यूनेस्को की विश्व विरासत की सूची में शामिल हम्पी भारत का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। 2002 में भारत सरकार ने इसे प्रमुख पर्यटन केन्द्र के रूप में विकसित करने की घोषणा की थी। हम्पी में स्थित दर्शनीय स्थलों में सम्मिलित हैं- विरुपाक्ष मन्दिर, रघुनाथ मन्दिर, नरसिंह मंन्दिर, सुग्रीव गुफ़ा, विट्ठलस्वामी मन्दिर, कृष्ण मन्दिर, प्रसन्ना विरूपक्ष, हज़ार राम मन्दिर, कमल महल तथा महानवमी डिब्बा आदि।
धर्म
आदि शंकराचार्य ने शृंगेरी को भारत पर्यन्त चार पीठों में से दक्षिण पीठ हेतु चुना था। विशिष्ट अद्वैत के अग्रणी व्याख्याता रामानुजाचार्य ने मेलकोट में कई वर्ष व्यतीत किये थे। वे कर्नाटक में 1098 में आये थे और यहां 1122 तक वास किया। इन्होंने अपना प्रथम वास तोंडानूर में किया और फिर मेलकोट पहुंचे, जहां इन्होंने चेल्लुवनारायण मंदिर और एक सुव्यवस्थित मठ की स्थापना की। इन्हें होयसाल वंश के राजा विष्णुवर्धन का संरक्षण मिला था। 12वीं शताब्दी में जातिवाद और अन्य सामाजिक कुप्रथाओं के विरोध स्वरूप उत्तरी कर्नाटक में वीरशैवधर्म का उदय हुआ। इन आन्दोलन में अग्रणी व्यक्तित्वों में बसव, अक्का महादेवी और अलाम प्रभु थे, जिन्होंने अनुभव मंडप की स्थापना की जहां शक्ति विशिष्टाद्वैत का उदय हुआ। यही आगे चलकर लिंगायत मत का आधार बना जिसके आज कई लाख अनुयायी हैं। कर्नाटक के सांस्कृतिक और धार्मिक ढांचे में जैन साहित्य और दर्शन का भी महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।
इस्लाम का आरंभिक उदय भारत के पश्चिमी छोर पर 10वीं शताब्दी के लगभग हुआ था। इस धर्म को कर्नाटक में बहमनी साम्राज्य और बीजापुर सल्तनत का संरक्षण मिला। कर्नाटक में ईसाई धर्म 16वीं शताब्दी में पुर्तगालियों और 1545 में सेंट फ्रांसिस ज़ेवियर के आगमन के साथ फैला। राज्य के गुलबर्ग और बनवासी आदि स्थानों में प्रथम सहस्राब्दी में बौद्ध धर्म की जड़े पनपीं। गुलबर्ग जिले में 1986 में हुई अकस्मात् खोज में मिले मौर्य काल के अवशेष और अभिलेखों से ज्ञात हुआ कि कृष्णा नदी की तराई क्षेत्र में बौद्ध धर्म के महायन और हिनायन मतों का खूब प्रचार हुआ था।
मैसूर दशहरा मैसूर राज्य में नाड हब्बा (राज्योत्सव) के रूप में मनाया जाता है। यह मैसूर के प्रधान त्यौहारों में से एक है। उगादि (कन्नड़ नव वर्ष), मकर संक्रांति, गणेश चतुर्थी, नाग पंचमी, बसव जयंती, दीपावली आदि कर्नाटक के प्रमुख त्यौहारों में से हैं।
भाषा
राज्य की आधिकारिक भाषा है कन्नड़, जो स्थानीय निवासियों में से 65% लोगों द्वारा बोली जाती है। कन्नड़ भाषा ने कर्नाटक राज्य की स्थापना में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है, जब 1956 में राज्यों के सृजन हेतु भाषायी सांख्यिकी मुख्य मानदंड रहा था। राज्य की अन्य भाषाओं में कोंकणी एवं कोडव तक हैं, जिनका राज्य में लंबा इतिहास रहा है। यहां की मुस्लिम जनसंख्या द्वारा उर्दु भी बोली जाती है। अन्य भाषाओं से अपेक्षाकृत कम बोली जाने वाली भाषाओं में ब्यारी भाषा व कुछ अन्य बोलियां जैसे संकेती भाषा आती हैं। कन्नड़ भाषा का प्राचीन एवं प्रचुर साहित्य है, जिसके विषयों में काफी भिन्नता है और जैन धर्म, वचन, हरिदास साहित्य एवं आधुनिक कन्नड़ साहित्य है। अशोक के समय की राजाज्ञाओं व अभिलेखों से ज्ञात होता है कि कन्नड़ लिपि एवं साहित्य पर बौद्ध साहित्य का भी प्रभाव रहा है। हल्मिडि शिलालेख 450 ई. में मिले कन्नड़ भाषा के प्राचीनतम उपलब्ध अभिलेख हैं, जिनमें अच्छी लंबाई का लेखन मिलता है। प्राचीनतम उपलब्ध साहित्य में 850 ई. के कविराजमार्ग के कार्य मिलते हैं। इस साहित्य से ये भी सिद्ध होता है कि कन्नड़ साहित्य में चट्टान, बेद्दंड एवं मेलवदु छंदों का प्रयोग आरंभिक शताब्दियों से होता आया है।
कुवेंपु, प्रसिद्ध कन्नड़ कवि एवं लेखक थे, जिन्होंने जय भारत जननीय तनुजते लिखा था, जिसे अब राज्य का गीत (एन्थम) घोषित किया गया है। इन्हें प्रथम कर्नाटक रत्न सम्मान दिया गया था, जो कर्नाटक सरकार द्वारा दिया जाने वाला सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। अन्य समकालीन कन्नड़ साहित्य भी भारतीय साहित्य के प्रांगण में अपना प्रतिष्ठित स्थान बनाये हुए है। सात कन्नड़ लेखकों को भारत का सर्वोच्च साहित्य सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार मिल चुका है, जो किसी भी भारतीय भाषा के लिए सबसे बड़ा साहित्यिक सम्मान होता है। तुळु भाषा मुख्यतः राज्य के तटीय जिलों उडुपी और दक्षिण कन्नड़ में बोली जाती है। तुळु महाभारतो, अरुणब्ज द्वारा इस भाषा में लिखा गया पुरातनतम उपलब्ध पाठ है। तिगळारि लिपि के क्रमिक पतन के कारण तुलु भाषा अब कन्नड़ लिपि में ही लिखी जाती है, किन्तु कुछ शताब्दी पूर्व तक इस लिपि का प्रयोग होता रहा था। तिगळारि लिपि मूलतः संस्कृत भाषा लिखने के लिए प्रयोग करते थे। कोडव जाति के लोग, जो मुख्यतः कोडगु जिले के निवासी हैं, कोडव तक्क् बोलते हैं। इस भाषा की दो क्षेत्रीय बोलियां मिलती हैं: उत्तरी मेन्डले तक्क् और दक्षिणी किग्गाति टक। कोंकणी मुख्यतः उत्तर कन्नड़ जिले में और उडुपी एवं दक्षिण कन्नड़ जिलों के कुछ समीपस्थ भागों में बोली जाती है। कोडव तक्क् और कोंकणी, दोनों में ही कन्नड़ लिपि का प्रयोग किया जाता है। कई विद्यालयों में शिक्षा का माध्यम अंग्रेज़ी है और अधिकांश बहुराष्ट्रीय कंपनियों तथा प्रौद्योगिकी-संबंधित कंपनियों तथा बीपीओ में अंग्रेज़ी का प्रयोग ही होता है।
राज्य की सभी भाषाओं को सरकारी एवं अर्ध-सरकारी संस्थाओं का संरक्षण प्राप्त है। कन्नड़ साहित्य परिषत एवं कन्नड़ साहित्य अकादमी कन्नड़ भाषा के उत्थान हेतु एवं कन्नड़ कोंकणी साहित्य अकादमी कोंकणी साहित्य के लिए कार्यरत है। टुलु साहित्य अकादमी एवं कोडव साहित्य अकादमी अपनी अपनी भाषाओं के विकास में कार्यशील हैं।
शिक्षा
2001 की जनसंख्या अनुसार, कर्नाटक की साक्षरता दर 67.04% है, जिसमें 76.29% पुरुष तथा 57.45% स्त्रियाँ हैं। राज्य में भारत के कुछ प्रतिष्ठित शैक्षिक और अनुसंधान संस्थान भी स्थित हैं, जैसे भारतीय विज्ञान संस्थान, भारतीय प्रबंधन संस्थान, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कर्नाटक और भारतीय राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय।
मार्च 2006 के अनुसार, कर्नाटक में 54,529 प्राथमिक विद्यालय हैं, जिनमें 2,52,875 शिक्षक तथा 84.95 लाख विद्यार्थी हैं। इसके अलावा 9498 माध्यमिक विद्यालय जिनमें 92,287 शिक्षक तथा 13.84 लाख विद्यार्थी हैं। राज्य में तीन प्रकार के विद्यालय हैं, सरकारी, सरकारी सहायता प्राप्त निजी (सरकार द्वारा आर्थिक सहायता प्राप्त) एवं पूर्णतया निजी (कोई सरकारी सहायता नहीं)। अधिकांश विद्यालयों में शिक्षा का माध्यम कन्नड़ एवं अंग्रेज़ी है। विद्यालयों में पढ़ाया जाने वाला पाठ्यक्रम या तो सीबीएसई, आई.सी.एस.ई या कर्नाटक सरकार के शिक्षा विभाग के अधीनस्थ राज्य बोर्ड पाठ्यक्रम (एसएसएलसी) से निर्देशित होता है। कुछ विद्यालय ओपन स्कूल पाठ्यक्रम भी चलाते हैं। राज्य में बीजापुर में एक सैनिक स्कूल भी है।
विद्यालयों में अधिकतम उपस्थिति को बढ़ावा देने हेतु, कर्नाटक सरकार ने सरकारी एवं सहायता प्राप्त विद्यालयों में विद्यार्थियों हेतु निःशुल्क अपराह्न-भोजन योजना आरंभ की है। राज्य बोर्ड परीक्षाएं माध्यमिक शिक्षा अवधि के अंत में आयोजित की जाती हैं, जिसमें उत्तीर्ण होने वाले छात्रों को द्विवर्षीय विश्वविद्यालय-पूर्व कोर्स में प्रवेश मिलता है। इसके बाद विद्यार्थी स्नातक पाठ्यक्रम के लिए अर्हक होते हैं।
राज्य में यहां के विश्वविद्यालयों जैसे बंगलुरु विश्वविद्यालय,गुलबर्ग विश्वविद्यालय, कर्नाटक विश्वविद्यालय, कुवेंपु विश्वविद्यालय, मंगलौर विश्वविद्यालय तथा मैसूर विश्वविद्यालय, आदि से मान्यता प्राप्त 481 स्नातक महाविद्यालय हैं। 1998 में राज्य भर के अभियांत्रिकी महाविद्यालयों को नवगठित बेलगाम स्थित विश्वेश्वरैया प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के अंतर्गत्त लाया गया, जबकि चिकित्सा महाविद्यालयों को राजीव गांधी स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय के अधिकारक्षेत्र में लाया गया था। इनमें से कुछ अच्छे महाविद्यालयों को मानित विश्वविद्यालय का दर्जा भी प्रदान किया गया था। राज्य में 123 अभियांत्रिकी, 35 चिकित्सा 40 दंतचिकित्सा महाविद्यालय हैं। राज्य में वैदिक एवं संस्कृत शिक्षा हेतु उडुपी, शृंगेरी, गोकर्ण तथा मेलकोट प्रसिदध स्थान हैं। केन्द्र सरकार की 11वीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत्त मुदेनहल्ली में एक भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान की सथापना को स्वीकृति मिल चुकी है। ये राज्य का प्रथम आई.आई.टी संस्थान होगा। इसके अतिरिक्त मेदेनहल्ली-कानिवेनारायणपुरा में विश्वेश्वरैया उन्नत प्रौद्योगिकी संस्थान का 600 करोड़ रुपये की लागत से निर्माण प्रगति पर है।
नई योजनाएं और उपलब्धियां
ई-गवर्नेंस
भूमि के काग़ज़ात की ऑन लाइन डिलीवरी योजना 2000 में शुरू हुई और 200 लाख काग़ज़ात की डिजिटलीकरण कर दिया गया है तथा ऑनलाइन म्यूटेशन की प्रक्रिया से तालुक स्तर पर कियोस्क में आर. टी. सी. को आसानी से उपलब्ध कराया जा रहा है, जिनकी स्थापना इस प्रयोजन के लिए विशेष रूप से की गई है। अब यह निर्णय लिया गया है कि मौजूदा सॉफ्टवेयर का उन्नयन किया जाए ताकि नए विशेषताओं और तकनीकी आधार को सुदृढ़ बनाया जा सके। नए भूमि सॉफ्टवेयर में सभी मौजूदा विशेषताओं को शामिल किया जाएगा जैसे कि कावेरी कार्यक्रमों, बैंकों, कचहरियों को जोड़ा जाएगा और इसमें नई विशेषताएं होंगी जैसे कि भूमि अधिग्रहण के मामलों को जोड़ना, गैर कृषि भूमि का दाख़िला ख़ारिज़ करना।
इसके अलावा ई-गवर्नेंस ने ‘बैंगलोर एक कार्यक्रम’ शुरू किया है, जो बहुसेवा केंद्र है जहां लोग बिजली, टेलीफ़ोन आदि के बिल जमा कर सकते हैं और एक ही जगह 25 अन्य सेवाओं का उपयोग कर सकते हैं। इसने ‘नेम्मादी’ नामक कार्यक्रम शुरू किया है। इसके अंतर्गत 765 ऐसे टेलीसेंटर हैं जहां आय, जन्म और मृत्यु के प्रमाण पत्र प्राप्त किए जा सकते हैं। इसके अलावा मानव संसाधन प्रबंधन सेवा भी विकसित की गई है, जो सभी विभागों की केन्द्रीय पहलों और सर्वाधिक सामान्य कार्यों के रूप में कार्य करती है।
भाग्यलक्ष्मी
स्त्री-पुरुष अनुपात को संतुलित करने और ग़रीब परिवारों को नैतिक संबल प्रदान करने के लिए कर्नाटक सरकार ने ‘भाग्यलक्ष्मी’ योजना शुरू की है। यह दो लड़कियों तक सीमित है और ग़रीबी रेखा से नीचे रह रहे सभी परिवारों के लिए है। लड़की के जन्म के समय उसके नाम से 10,000 रुपए जमा किए जाएंगे और ब्याज सहित 18 वर्ष पूरा हो जाने पर दिए जाएंगे।
2007-08 के दौरान 1.31 लाख परिवारों के लिए 132.42 करोड़ रुपए जारी किए गए।
मुख्यमंत्री द्वारा प्रस्तुत 2008-09 के बजट में दी जाने वाली राशि को बढ़ाकर 1 लाख कर दिया गया है और इसके लिए 266.65 करोड़ रुपए निर्धारित किए गए हैं।
मदीलु
यह एक अन्य योजना है जो माँ और शिशु के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए बनाई गई है। इसके तहत प्रसव के बाद माँ और शिशु की ज़रूरत का सामान दिया जाता है। यह सुविधा ग़रीबी रेखा से नीचे रह रहे सभी परिवारों के लिए है।
2007-08 के दौरान इससे लगभग 1.50 लाख परिवारों को लाभ पहुंचा है।
2006-07 में 63.82 प्रतिशत लाभान्वित प्रसव थे और
2007-08 में यह संख्या 67.97 प्रतिशत रही।
भाग्यरथ
शिक्षा के लिए बेहतर पहुंच और इसे जारी रखने के लिए राज्य सरकार ने यह योजना प्रारम्भ की है। इसके तहत सरकार और अनुदान प्राप्त स्कूलों में आठवीं कक्षा में पढ़ने वाले लड़के और लड़कियों को साइकिलें दी जाएंगी।
2007-08 में ग़रीबी रेखा से नीचे रह रहे परिवारों की 1.75 लाख लड़कियों और 2.33 लड़कों को साइकिलें बांटी गई।
वर्ष 2008-09 में यह योजना आठवीं कक्षा में पढ़ने वाले सभी वर्ग के बच्चों के लिए कर दी गई है। आशा है कि इससे 7 लाख से अधिक बच्चों को लाभ मिलेगा।
बंदरगाह
कनार्टक राज्य में 155 समुद्री मील लगभग 300 किमी लंबे समुद्र तट पर केवल एक ही बड़ा बंदरगाह है - मंगलौर या न्यू मंगलौर। इसके अतिरिक्त 10 छोटे बंदरगाह है-
कारवाड
बेलेकेरी
ताद्री
भत्काल
कुंडापुर
हंगरकट्टा
मालपे
पदुबिद्री
होन्नावर
पुराना मंगलौर
इन 10 बंदरगाहों में से केवल कावाड़ हर मौसम के लिए उपयुक्त है जबकि शेष नौ बंदरगाहों ऐसे नहीं है। इन बंदरगाहों से 2006-07 में मालवाहक जहाजों के द्वारा 6573 हज़ार टन माल ढोया गया।
उडड्यन
नागरिक उड्डयन के क्षेत्र में बहुत विकास और वृध्दि हुई है।
2006-07 में अंतरराष्ट्रीय यात्रियों में 50 प्रतिशत और अंतर्देशीय यात्रियों में 44 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
राज्य के हवाई अड्डों से 2006-07 में 1.66 लाख टन माल ढोया गया। यह गत वर्ष से 19 प्रतिशत अधिक था।
बैंगलोर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा देश का पहला हरे-भरे मैदान वाला अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है, यह बैंगलोर के पास देवनहल्ली में बनाया गया है। यात्री और मालवाहक हवाई जहाजों के लिए बनाये गये हवाई अड्डे की लागत लगभग 2000 करोड़ रुपए की है। यह हवाई अड्डा 28 मई 2008 से शुरू हो गया है। इस हवाई अड्डे के कारण से बैंगलोर शहर विश्व के लिए सरल गंतव्य बन गया है और यहाँ पर सुविधाएं सर्वोत्तम अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार हैं। सरकार ने शिमोगा और गुलबर्गा में हवाई अड्डे विकसित करने की योजना बनाई है।