अमित शाह

  • Posted on: 25 June 2023
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गृह मंत्री, भारत सरकार - पदस्थ 

कार्यालय ग्रहण - 30 मई 2019 

प्रधानमंत्री  नरेन्द्र मोदी 

पूर्वा धिकारी  राजनाथ सिंह 

सांसद, लोकसभा 

पदस्थ 

कार्यालय ग्रहण - 19 अगस्त 2017 

पूर्वा धिकारी  लाल कृष्ण आडवाणी 

चुनाव-क्षेत्र  गाँधीनगर 

राष्ट्रीय अध्यक्ष, भारतीय जनता पार्टी 

पद बहाल - जुलाई 2014 – 20 जनवरी 2020 

पूर्वा धिकारी  राजनाथ सिंह 

उत्तरा धिकारी  जगत प्रकाश नड्डा 

जन्म  22 अक्टूबर 1964 (आयु 58) 

मुंबई, महाराष्ट्र, भारत 

जन्म का नाम  अमितभाई अनिलचन्द्र शाह

नागरिकता  भारतीय

राजनीतिक दल  भारतीय जनता पार्टी

जीवन संगी  सोनल शाह

बच्चे  जय शाह (पुत्र)

शैक्षिक सम्बद्धता  bhu

कैबिनेट  गुजरात सरकार (2003–2010)

धर्म  हिन्दू (वैष्णव)

अमित शाह (जन्म: 22 अक्टूबर 1964) एक भारतीय राजनीतिज्ञ तथा सम्प्रति भारत के गृह मंत्री हैं। इसके पहले वे भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष, भारत के गुजरात राज्य के गृहमंत्री तथा भारतीय जनता पार्टी के महासचिव रह चुके हैं। 2019 के लोकसभा चुनावों में गांधी नगर से लोकसभा के सांसद चुने गए हैं। इसके पहले वे राज्यसभा के सदस्य थे। मोदी सरकार के द्वितीय कार्यकाल में भारत के गृहमंत्री बनाए जाने के बाद उन्होंने ने जम्मू कश्मीर से धारा 370 को हटाने का बड़ा फैसला लिया जो कांग्रेस के सत्ता में रहते प्रायः असम्भव माना जाता था। 

प्रारम्भिक जीवन एवं शिक्षा

अमित शाह का जन्म 22 अक्टूबर 1964 को महाराष्ट्र के मुंबई में एक व्यवसायी परिवार में हुआ था। वे गुजरात के एक धनाढ्य परिवार से सम्बन्धित हैं। उनका परिवार गुजराती हिन्दू वैष्णव बनिया परिवार था। उनका गाँव पाटण जिले के चँन्दूर में है। मेहसाणा में आरम्भिक शिक्षा के बाद जैवरसायन (बॉयोकेमिस्ट्री) की पढ़ाई के लिए वे अहमदाबाद आए, जहां से उन्होने जैवरसायन में बीएससी की। उसके बाद अपने पिता का व्यवसाय संभालने में जुट गए। राजनीति में आने से पहले वे मनसा में प्लास्टिक के पाइप का पारिवारिक व्यवसाय संभालते थे। वे बहुत कम उम्र में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए थे। 1982 में उनके अपने कॉलेज के दिनों में शाह की भेंट नरेंद्र मोदी से हुयी। 1983 में वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े और इस तरह उनका छात्र जीवन में राजनीतिक रुझान बना।

राजनीतिक करियर

शाह 1987 में भाजपा में शामिल हुए। 1987 में उन्हें भारतीय जनता युवा मोर्चा का सदस्य बनाया गया। शाह को पहला बड़ा राजनीतिक मौका मिला 1991 में, जब आडवाणी के लिए गांधीनगर संसदीय क्षेत्र में उन्होंने चुनाव प्रचार का जिम्मा संभाला। दूसरा मौका 1996 में मिला, जब अटल बिहारी वाजपेयी ने गुजरात से चुनाव लड़ना तय किया। इस चुनाव में भी उन्होंने चुनाव प्रचार का जिम्मा संभाला। पेशे से स्टॉक ब्रोकर अमित शाह ने 1997 में गुजरात की सरखेज विधानसभा सीट से उप चुनाव जीतकर अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की। 1999 में वे अहमदाबाद डिस्ट्रिक्ट कोऑपरेटिव बैंक (एडीसीबी) के प्रेसिडेंट चुने गए। 2009 में वे गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के उपाध्यक्ष बने। 2014 में नरेंद्र मोदी के अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद वे गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष बने। 2003 से 2010 तक उन्होने गुजरात सरकार की कैबिनेट में गृहमंत्रालय का जिम्मा संभाला।

2012 में नारनुपरा विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से उनके विधानसभा चुनाव लड़ने से पहले उन्होंने तीन बार सरखेज विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। वे गुजरात के सरखेज विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से चार बार क्रमशः 1997 (उप चुनाव), 1998, 2002 और 2007 से विधायक निर्वाचित हो चुके हैं। वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के करीबी माने जाते हैं। शाह तब सुर्खियों में आए जब 2004 में अहमदाबाद के बाहरी इलाके में कथित रूप से एक फर्जी मुठभेड़ में 19 वर्षीय इशरत जहां, ज़ीशान जोहर और अमजद अली राणा के साथ प्रणेश की हत्या हुई थी। गुजरात पुलिस ने दावा किया था कि 2002 में गोधरा बाद हुए दंगों का बदला लेने के लिए ये लोग गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को मारने आए थे। इस मामले में गोपीनाथ पिल्लई ने अदालत में एक आवेदन देकर मामले में अमित शाह को भी आरोपी बनाने की अपील की थी। हालांकि 15 मई 2014 को सीबीआई की एक विशेष अदालत ने शाह के विरुद्ध पर्याप्त साक्ष्य न होने के कारण इस याचिका को ख़ारिज कर दिया।

एक समय ऐसा भी आया जब सोहराबुद्दीन शेख की फर्जी मुठभेड़ के मामले में उन्हें 25 जुलाई 2010 में गिरफ्तारी का सामना करना पड़ा। शाह पर आरोपों का सबसे बड़ा हमला खुद उनके बेहद खास रहे गुजरात पुलिस के निलंबित अधिकारी डीजी बंजारा ने किया। सोलहवीं लोकसभा चुनाव के लगभग 10 माह पूर्व शाह दिनांक 12 जून 2013 को भारतीय जनता पार्टी के उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया, तब प्रदेश में भाजपा की मात्र 10 लोक सभा सीटें ही थी। उनके संगठनात्मक कौशल और नेतृत्व क्षमता का अंदाजा तब लगा जब 16 मई 2014 को सोलहवीं लोकसभा के चुनाव परिणाम आए। भाजपा ने उत्तर प्रदेश में 71 सीटें हासिल की। प्रदेश में भाजपा की ये अब तक की सबसे बड़ी जीत ‌थी। इस करिश्माई जीत के‌ शिल्पकार रहे अमित शाह का कद पार्टी के भीतर इतना बढ़ा कि उन्हें भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष का पद प्रदान किया गया।

चुनावी उपलब्धियाँ

1989 से 2014 के बीच शाह गुजरात राज्य विधानसभा और विभिन्न स्थानीय निकायों के लिए 42 छोटे-बड़े चुनाव लड़े, लेकिन वे एक भी चुनाव में पराजित नहीं हुये। गुजरात के विधान सभा चुनाव में उनकी उपलब्धियां इसप्रकार है- 

चुनाव  वर्ष  निर्वाचन क्षेत्र परिणाम  मत % मत प्रतिशत
गुजरात विधानसभा चुनाव (उप-चुनाव)) 1997 सरखेज विजयी  76839 56.10%
गुजरात विधानसभा चुनाव  1998  सरखेज विजयी  193,373  69.81%
गुजरात विधानसभा चुनाव  2002  सरखेज    विजयी  288,327  66.98%
गुजरात विधानसभा चुनाव  2007  सरखेज  विजयी  407,659  68.00%
गुजरात विधानसभा चुनाव   
2012 
नरनपुरा 
विजयी 
103,988 
69.19%
लोकसभा के लिए आम चुनाव 
2019   
गांधीनगर 
विजयी 
888,210 
69.76%

 

 

व्यक्तिगत जीवन

शाह का विवाह सोनल शाह से हुआ, जिनसे उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई, जिनका नाम जय है। अमित शाह अपनी माँ के बेहद करीब थे, जिनकी मृत्यु उनकी गिरफ्तारी से एक माह पूर्व 8 जून 2010 को एक बीमारी से हो गयी।

गृह मंत्री

अनुच्छेद 370

शाह ने 30 मई 2019 को कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ ली और 1 जून 2019 को गृह मंत्री के रूप में पदभार ग्रहण किया। 5 अगस्त 2019 को, शाह ने राज्यसभा में अनुच्छेद 370 को खत्म करने और जम्मू-कश्मीर राज्य को दो भागों में विभाजित करने का प्रस्ताव पेश किया, जिसमें जम्मू-कश्मीर एक केंद्र शासित प्रदेश के रूप में और लद्दाख एक अलग केंद्र के रूप में कार्य करेगा।

सितंबर 2019 में, शाह ने इस बारे में बात की कि कैसे भारत को एक एकीकृत भाषा की आवश्यकता है; उन्होंने कहा कि देश को एकजुट करने और दुनिया में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए हिंदी भाषा बोली जानी चाहिए। एक ट्वीट में उन्होंने भारतीयों से हिंदी भाषा का इस्तेमाल बढ़ाने की भी अपील की।

एनआरसी और सीएए

19 नवंबर 2019 को, शाह ने भारतीय संसद की राज्यसभा में घोषणा की कि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) पूरे देश में लागू किया जाएगा।

दिसंबर 2019 में, उन्होंने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 पेश किया, जो धार्मिक रूप से प्रताड़ित अल्पसंख्यक समुदायों को भारतीय नागरिकता प्रदान करता है, जो 2015 से पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के मुस्लिम-बहुल देशों से देश में चले गए थे। पूर्वोत्तर भारत में, इस अधिनियम ने स्थानीय संस्कृति और राजनीति पर आप्रवासन के प्रभाव के बारे में चिंताएँ बढ़ा दीं, जिसके कारण लोगों ने इस अधिनियम का विरोध किया। अन्यत्र, विपक्षी दलों ने अधिनियम में मुसलमानों को बाहर करने को भारत के बहुलवाद के लिए हानिकारक बताते हुए इसकी आलोचना की। शाह ने जोर देकर कहा कि यह विधेयक मुस्लिम विरोधी नहीं है, क्योंकि यह नागरिकता के उनके मौजूदा रास्ते को नहीं बदलेगा।

आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) विधेयक 2022

इस विधेयक का उद्देश्य कैदी पहचान अधिनियम 1920 को प्रतिस्थापित करना है। 1980 के दशक में, भारत के विधि आयोग ने अपनी 87वीं रिपोर्ट में मौजूदा कानून में महत्वपूर्ण बदलावों की सिफारिश की थी। नया विधेयक पुलिस और जेल अधिकारियों को विभिन्न आरोपों में गिरफ्तार किए गए दोषियों और व्यक्तियों के रेटिना और आईरिस स्कैन सहित भौतिक और जैविक नमूने एकत्र करने, संग्रहीत करने और उनका विश्लेषण करने की अनुमति देगा। लोकसभा में विधेयक पेश करते हुए, शाह ने कहा, “दंड प्रक्रिया (पहचान) विधेयक, 2022, न केवल उन अप्रचलित अंतर को भर देगा, बल्कि यह सजा के लिए साक्ष्य के दायरे को भी बढ़ाएगा।

आलोचना और विवाद

भाजपा के महासचिव के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, पार्टी के सदस्यों ने शाह को हिंदुत्व को बढ़ावा देने, हिंदू मतदाताओं को "अल्पसंख्यकों के रक्षकों" को अस्वीकार करने के लिए प्रोत्साहित करने और मुस्लिम समुदाय के साथ मेल-मिलाप के मोदी के प्रयासों का विरोध करने का श्रेय दिया। शाह ने गुजरात में मोदी सरकार को 2003 में गुजरात धर्म स्वतंत्रता अधिनियम पारित करने के लिए मना लिया, जिसके लिए राज्य में धार्मिक रूपांतरण की आवश्यकता होती है - जिनमें से अधिकांश हिंदू धर्म से अन्य धर्मों में होते हैं  - जिला मजिस्ट्रेट द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए। शाह ने विधेयक को जबरन धर्मांतरण के खिलाफ एक उपाय के रूप में चित्रित किया, हालांकि आलोचकों ने दावा किया कि यह विधेयक भारतीय संविधान को कमजोर करता है। 2011 और 2016 के बीच, गुजरात में धार्मिक रूपांतरण के लगभग आधे आवेदन स्थानीय सरकार द्वारा अस्वीकार कर दिए गए थे।

2014 में, चुनाव आयोग ने विभिन्न वर्गों की धार्मिक भावनाओं और विश्वासों को अपमानित करने के लिए दिए गए भाषणों के कारण शाह को उत्तर प्रदेश में किसी भी सार्वजनिक जुलूस, मार्च, सभा और रोड शो आयोजित करने से रोक दिया था। 2018 में, शाह ने कहा: "घुसपैठिए बंगाल की मिट्टी में दीमक की तरह हैं," और इसके समाधान के बारे में कहा, "भारतीय जनता पार्टी की सरकार घुसपैठियों को एक-एक करके उठाएगी और बंगाल की खाड़ी में फेंक देगी।

दिसंबर 2019 में, अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग (यूएससीआईआरएफ) ने अमेरिकी प्रशासन से कहा कि अगर भारतीय संसद नागरिकता (संशोधन) विधेयक पारित करती है तो शाह के खिलाफ प्रतिबंध लगाने पर विचार करें। यूएससीआईआरएफ ने अपने बयान में कहा, "सीएबी गलत दिशा में एक खतरनाक मोड़ है; यह भारत के धर्मनिरपेक्ष बहुलवाद के समृद्ध इतिहास और भारतीय संविधान के विपरीत है, जो विश्वास की परवाह किए बिना कानून के समक्ष समानता की गारंटी देता है।" आयोग ने कहा कि सीएबी "अप्रवासियों के लिए नागरिकता का मार्ग प्रशस्त करता है जो विशेष रूप से मुसलमानों को बाहर करता है, धर्म के आधार पर नागरिकता के लिए कानूनी मानदंड निर्धारित करता है"। विदेश मंत्रालय ने यूएससीआईआरएफ के जवाब में एक जवाबी बयान जारी करते हुए कहा कि यह तथ्यों पर आधारित नहीं है और यह विधेयक भारत आए प्रताड़ित धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के लिए है और इसका उद्देश्य नागरिकता छीनना नहीं है।

अमित शाह की आलोचना में लिखे गए लेख पर क्यों है विवाद - गृहमंत्री अमित शाह का एक भाषण, राज्यसभा के एक सांसद का अंग्रेज़ी अख़बार में लिखा दो महीने पुराना लेख और उप राष्ट्रपति का सांसद को समन। इन तीन बातों की खूब चर्चा हो रही है।

दरअसल, उप राष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने सीपीएम के राज्यसभा सांसद जॉन ब्रिटास को उनके एक लेख पर बीते दिनों समन किया। ये लेख ब्रिटास ने अंग्रेज़ी अख़बार द इंडियन एक्सप्रेस में 20 फरवरी को लिखा गया था जिसमें गृहमंत्री अमित शाह के कर्नाटक की चुनावी में दिए गए भाषण की आलोचना की गई थी।

कर्नाटक के मंगलूरु में एक चुनावी जनसभा को संबोधित करते हुए अमित शाह ने कहा था- "आपके बगल में ही केरल है। इससे ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा..." 

जॉन ब्रिटास के इस लेख का शीर्षक था- 'पेरिल्स ऑफ़ प्रेपोगैंडा' यानी प्रेपोगैंडा के ख़तरे।

इसमें ब्रिटास ने लिखा कि 'किस तरह गृहमंत्री अमित शाह केरल राज्य को लेकर नकारात्मक बातें करते हैं और ये राज्य की छवि को बुरी बना कर पेश करने की कोशिश है।

उन्होंने गृहमंत्री के बयान को इस बात से भी जोड़ा है कि चूंकि इस राज्य में बीजेपी को कभी चुनावी सफलता नहीं मिली इसलिए वो केरल को 'नापसंद' करती हैं।

लेकिन इस लेख पर सांसद को उपराष्ट्रपति के कार्यालय से समन किया गया और ब्रिटास से लेख पर सफ़ाई मांगी गई।

जॉन ब्रिटास ने बीबीसी को बताया कि 6 मार्च को इस मामले में उन्हें पहली बार उपराष्ट्रपति के सचिवालय की ओर से समन किया गया और बताया गया कि सभापति उनके अख़बार में लिखे लेख के सिलसिले में उनसे मिलना चाहते हैं।

केरल बीजेपी के महासचिव पी. सुधीर ने उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के कार्यालय को ब्रिटास के लेख पर एक लिखित शिकायत भेजी थी, इसी शिकायत को ही आधार बनाकर उप राष्ट्रपति कार्यालय ने ब्रिटास को समन किया था।

19 अप्रैल को जॉन ब्रिटास और जगदीप धनखड़ के बीच मुलाकात हुई।

 

ब्रिटास कहते हैं, "मेरी सभापति महोदय के साथ 10 से 15 मिनट तक बैठक चली और उन्होंने मुझे बताया कि मेरे लेख के खिलाफ़ उन्हें एक शिकायत मिली है और पूछा कि मेरा उस लेख पर क्या कहना है? मेरे लिए ये हैरान करने वाला था कि एक अख़बार में लिखे लेख के लिए मुझे बुलाया गया। शिकायत में मेरे लेख को 'राजद्रोह' जैसा कृत्य बताया गया है।

"मुझे समन मिलना इसलिए परेशान करने वाली बात है क्योंकि ये एक तरह का दबाव मीडिया और अख़बारों पर भी है कि वो ऐसे लेख ना छापें जो सरकार या सत्ता पक्ष के नेता के खिलाफ़ हो, उनकी आलोचना करता हो।

इस पूरे मामले को लेकर ये भी सवाल उठाए जा रहे हैं कि उप-राष्ट्रपति कार्यालय क्या इस तरह के मामले में सांसद को समन कर सकता है?

दवे कहते हैं, "सभापति सदन में की गई अनुशासनहीनता पर कार्रवाई कर सकते हैं लेकिन संसद के बाहर सांसद अगर कुछ करते, लिखते हैं या बोलते हैं तो ये किसी भी तरह सभापति या उप राष्ट्रपति कार्यालय के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है।

'दूसरी भाषा के रूप में हिंदी': अमित शाह ने उस टिप्पणी की व्याख्या की जिससे बड़ा विवाद खड़ा हो गया

अमित शाह ने कहा कि उन्होंने कभी भी हिंदी को अन्य क्षेत्रीय भाषाओं पर थोपने के लिए नहीं कहा और केवल अपनी मातृभाषा के बाद दूसरी भाषा के रूप में हिंदी सीखने का अनुरोध किया था।

गृह मंत्री अमित शाह, जिनकी "हिंदी को एकजुट करने वाली" टिप्पणी पर दक्षिणी राज्यों में तीखी प्रतिक्रिया हुई थी, ने कहा कि उन्होंने कभी भी क्षेत्रीय भाषाओं पर हिंदी थोपने के लिए नहीं कहा था और यह दूसरों पर निर्भर है कि वे इस पर राजनीति करना चाहते हैं या नहीं। शाह ने कहा कि उन्होंने केवल दूसरी भाषा के रूप में हिंदी सीखने के लिए कहा था क्योंकि देश को एक ऐसी भाषा की जरूरत थी, वह झारखंड के रांची में हिंदुस्तान पूर्वोदय 2019 में बोल रहे थे।

शाह ने आलोचकों को जवाब देते हुए कहा, "मैं खुद गैर-हिंदी राज्य गुजरात से आता हूं, लोगों को मेरा भाषण ठीक से सुनना चाहिए, अगर वे राजनीति करना चाहते हैं तो यह उनकी पसंद है, लेकिन भ्रम दूर करने के लिए मेरा भाषण दोबारा सुनना चाहिए।" ने गृह मंत्री पर क्षेत्रीय भाषाओं की कीमत पर हिंदी को बढ़ावा देने का आरोप लगाया था

दक्षिणी राज्यों में लगभग सभी राजनीतिक दलों ने एकजुट भाषा के रूप में हिंदी सीखने के शाह के सुझाव का मुखर विरोध किया था, जिसमें दक्षिण में भाजपा के सबसे बड़े नेता और कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा भी शामिल थे, जिन्होंने कहा था कि उनकी सरकार कन्नड़ के महत्व के साथ कभी समझौता नहीं करेगी।

“मैंने बार-बार कहा है कि भारतीय भाषाओं को मजबूत किया जाना चाहिए और उनकी आवश्यकता को समझा जाना चाहिए। एक बच्चा तभी अच्छा करेगा जब उसे उसकी मातृभाषा में पढ़ाया जाएगा, जो जरूरी नहीं कि हिंदी हो। यह गुजराती की तरह क्षेत्रीय भाषा भी हो सकती है,'' शाह ने कहा, इससे पहले कि उन्होंने केवल दूसरी भाषा के रूप में हिंदी सीखने का अनुरोध किया था।

संसद के नये भवन में सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में सेंगोल को स्थापित करने को लेकर अब विवाद शुरू हो गया है। गृहमंत्री अमित शाह ट्वीट करके यह कहा है कि पता नहीं क्यों कांग्रेस पार्टी को भारतीय सभ्यता और संस्कृति से नफरत है। सेंगोल को तमिलनाडु के एक शैव मठ ने पंडित नेहरू को आजादी के प्रतीक के रूप में दिया था, लेकिन पार्टी ने उसे संग्रहालय भेजकर इसे दरकिनार किया। अब पार्टी यह कह रही है कि सेंगोल को आजादी के समय सत्ता हस्तांतरण के रूप में पंडित जवाहरलाल नेहरू को दिया गया था इसके कोई प्रमाण नहीं हैं।

अमित शाह ने ट्‌वीट किया है कि एक पवित्र शैव मठ ने स्वयं भारत की स्वतंत्रता के समय सेंगोल के महत्व के बारे में बात की थी। कांग्रेस अधीनम के इतिहास को झूठा बता रही है, कांग्रेस अपनी संस्कृति का अपमान कर रही है अत: उन्हें अपने व्यवहार को लेकर मंथन करने की जरूरत है। गौरतलब है कि कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने यह कहा था कि सेंगोल को सत्ता हस्तातंरण के रूप पंडित नेहरू को सौंपा गया था इसका कोई साक्ष्य नहीं है। जयराम रमेश ने नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार पर यह आरोप लगाया था कि वे अपने राजनीतिक फायदे के लिए सेंगोल का उपयोग कर रहे हैं।

ज्ञात हो कि 28 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद के नये भवन का उद्‌घाटन । सेंगोल की स्थापना लोकसभा अध्यक्ष के आसन के पास की जायेगी। सेंगोल का संबंध चोल साम्राज्य से है, जहां सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में इसे दिया जाता था। नये संसद भवन के उद्‌घाटन को लेकर भी देश में विवाद चल रहा है। विपक्ष की मांग यह है कि राष्ट्रपति नये संसद भवन का उद्‌घाटन करे जबकि प्रधानमंत्री इस भवन का उद्‌घाटन कर रहे हैं, जिसकी वजह से विपक्ष इस कार्यक्रम का बहिष्कार कर रहा है।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रवींद्रनाथ टैगोर की कुर्सी पर बैठने के मामले पर सांसद अधीर रंजन चौधरी के बयान को गलत बताया है। अपनी बंगाल यात्रा के दौरान शांति निकेतन में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की कुर्सी पर बैठने के आरोप पर लोकसभा में अमित शाह ने इसका सबूत के साथ जवाब दिया। गृह मंत्री ने तस्वीरें दिखाकर सदन में कहा कि वो नहीं बल्कि पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और फिर राजीव गांधी उस कुर्सी पर बैठ चुके हैं।

14 फरवरी को समाचार एजेंसी ANI ने अमित शाह का एक इंटरव्यू रिलीज किया। इंटरव्यू में उनसे बीजेपी और अडानी ग्रुप की 'मित्रता' को लेकर पूछा गया। सवाल किया गया कि विपक्ष कहता है कि बीजेपी सरकार में सारे कॉन्ट्रैक्ट अडानी ग्रुप को मिल रहे हैं। इस पर अमित शाह ने कहा, "अभी सुप्रीम कोर्ट ने इस केस का संज्ञान लिया है। देश के कैबिनेट के सदस्य के नाते जब सुप्रीम कोर्ट ने किसी मामले का संज्ञान लिया हो उस वक्त मेरा बोलना ठीक नहीं होगा। लेकिन इसमें बीजेपी के पास कुछ छिपाने को नहीं है। ना ही किसी बात से डरने की जरूरत है।

संसद में अडानी को लेकर राहुल गांधी की स्पीच पर भी अमित शाह से पूछा गया। इस पर गृह मंत्री ने कहा कि उनकी (राहुल) स्पीच की जो स्क्रिप्ट लिखते हैं, उनको सोचना चाहिए। भारतीय जनता पार्टी पर एक भी आरोप आज तक कोई भी लगा पाया है. शाह ने कहा कि उनके जमाने (UPA शासनकाल) में उन्हीं की एजेंसियों ने चाहे CAG हो, CBI हो, सभी एजेंसियों ने भ्रष्टाचार का संज्ञान लेकर केस दर्ज किए थे. 12 लाख करोड़ का घोटाला हुआ था।

संसद के बजट सत्र में इस मुद्दे पर विपक्षी दल लगातार संयुक्त संसदीय समिति (JPC) जांच की मांग कर रहे हैं। विपक्ष ने अडानी ग्रुप में LIC और सरकारी बैंकों के निवेश पर भी सवाल उठाया है. मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा। 13 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने बताया कि SEBI ने हिंडनबर्ग रिसर्च के आरोपों की जांच करने के लिए एक कमिटी गठित करने का फैसला किया है।

इससे पहले 7 फरवरी को संसद में अपनी स्पीच के दौरान राहुल गांधी ने सरकार पर कई आरोप लगाए थे। राहुल ने कहा था कि अडानी ग्रुप की कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए नियमों में बदलाव किए गए। उन्होंने प्रधानमंत्री पर सीधा-सीधा आरोप लगाया कि वे जिस देश में जाते हैं वहीं पर अडानी को कॉन्ट्रैक्ट मिलने लगते हैं। उन्होंने कहा था कि साल 2014 में अमीरों की लिस्ट में अडानी 609वें नंबर पर थे। फिर, पता नहीं कौन सा जादू हुआ कि अडानी दूसरे नंबर पर आ गए।

असम और अरुणाचल प्रदेश के बीच आखिर क्या था सीमा विवाद? गृहमंत्री अमित शाह की दखल से 51 साल बाद सुलझा मामला । असम और अरुणाचल प्रदेश के बीच 50 साल से भी अधिक समय से चल रहा सीमा विवाद अब सुलझने जा रहा है। इसके लिए दोनो राज्यों ने गृहमंत्री अमित शाह (Home Minister Amit Shah) की मौजूदगी में एक समझौते ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया।

इससे पहले मार्च 2022 में असम और मेघालय सरकारों ने अपने 50 साल पुराने लंबित सीमा विवाद को हल करने के लिए एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने इसकी सूचना दी है। गृह मंत्रालय के अनुसार दोनों राज्यों के प्रतिनिधि ने 19 अप्रैल  2023 नॉर्थ ब्लॉक में शाम पांच बजे गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किया।

19 अप्रैल को मिली मंजूरी

उल्लेखनीय है कि असम कैबिनेट ने अरुणाचल प्रदेश के साथ दशकों से चल रहे सीमा विवाद के मुद्दे को सुलझाने के लिए 19 अप्रैल को फैसला लिया है। राज्य सरकार की गठित 12 क्षेत्रीय समितियों द्वारा दी गई सिफारिशों को कल यानि 19 अप्रैल को राज्य सरकार ने मंजूरी दी थी। मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत बिस्वा सरमा की अध्यक्षता में गुवाहाटी में आयोजित राज्य मंत्रिमंडल की बैठक के दौरान यह निर्णय लिया गया। उसके बाद आज दोनों राज्य के प्रतिनिधि केंद्रीय गृहमंत्री की मौजूदगी में एमओयू पर हस्ताक्षर करेंगे।

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