चंद्रयान -1 मिशन

  • Posted on: 21 August 2023
  • By: admin
मिशन प्रकार चन्द्र ऑर्बिटर
संचालक (ऑपरेटर)  भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन
कोस्पर आईडी 2008-052A
सैटकैट नं॰ 33405
वेबसाइट www.isro.gov.in/Spacecraft/chandrayaan-1
मिशन अवधि योजना: 2 वर्ष
हासिल: 10 माह, 6 दिन
अंतरिक्ष यान के गुण  
लॉन्च वजन 1,380 किलोग्राम (3,040 पौंड)
मिशन का आरंभ  
प्रक्षेपण तिथि 22 अक्टूबर 2008, 00:52 यु.टी.सी
रॉकेट  ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचन वाहन सी11
प्रक्षेपण स्थल द्वितीय लॉन्च पैड, सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र
ठेकेदार भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन
मिशन का अंत  
अंतिम संपर्क 28 अगस्त 2009, 20:00 यु.टी.सी
कक्षीय मापदण्ड  
निर्देश प्रणाली चन्द्र केन्द्रीय कक्ष
अर्ध्य-मुख्य अक्ष (सेमी-मेजर ऑर्बिट) 1,758 किलोमीटर (1,092 मील)
विकेन्द्रता 0.0
परिधि (पेरीएपसिस) 200 किलोमीटर (120 मील)
उपसौर (एपोएपसिस) 200 किलोमीटर (120 मील)
वर्ष 19 मई 2009
चन्द्र कक्षीयान  
कक्षीय निवेशन 8 नवंबर 2008
कक्षायें 3,400

चन्द्रयान (अथवा चंद्रयान-1) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के चंद्र अन्वेषण कार्यक्रम के अंतर्गत चंद्रमा की तरफ कूच करने वाला भारत का पहला अंतरिक्ष यान था। इस अभियान के अन्तर्गत एक मानवरहित यान को 22 अक्टूबर, 2008 को चन्द्रमा पर भेजा गया और यह 30 अगस्त, 2009 तक सक्रिय रहा। यह यान ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचन यान (पोलर सेटलाईट लांच वेहिकल, पी एस एल वी) के एक संशोधित संस्करण वाले राकेट की सहायता से सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से प्रक्षेपित किया गया। इसे चन्द्रमा तक पहुँचने में 5 दिन लगे पर चन्द्रमा की कक्षा में स्थापित करने में 15 दिनों का समय लग गया। चंद्रयान ऑर्बिटर का मून इम्पैक्ट प्रोब (MIP) 14 नवंबर 2008 को चंद्र सतह पर उतरा, जिससे भारत चंद्रमा पर अपना झंडा लगाने वाला चौथा देश बन गया।

चंद्रयान का उद्देश्य चंद्रमा की सतह के विस्तृत नक्शे और पानी के अंश और हीलियम की तलाश करना था। चंद्रयान-प्रथम ने चंद्रमा से 100 किमी ऊपर 525 किग्रा का एक उपग्रह ध्रुवीय कक्षा में स्थापित किया। यह उपग्रह अपने रिमोट सेंसिंग (दूर संवेदी) उपकरणों के जरिये चंद्रमा की ऊपरी सतह के चित्र भेजे।

भारतीय अंतरिक्षयान प्रक्षेपण के अनुक्रम में यह 27वाँ उपक्रम था। इसका कार्यकाल लगभग 2 साल का होना था, मगर नियंत्रण कक्ष से संपर्क टूटने के कारण इसे उससे पहले बंद कर दिया गया। चन्द्रयान के साथ भारत चाँद को यान भेजने वाला छठा देश बन गया था। इस उपक्रम से चन्द्रमा और मंगल ग्रह पर मानव-सहित विमान भेजने के लिये रास्ता खुला।

हालाँकि इस यान का नाम मात्र चंद्रयान था, किन्तु इसी शृंखला में अगले यान का नाम चन्द्रयान-2 होने से इस अभियान को चंद्रयान-1 कहा जाने लगा।

तकनीकी जानकारी

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र 'इसरो' के चार चरणों वाले 316 टन वजनी और 44.4 मीटर लंबे अंतरिक्ष यान चंद्रयान प्रथम के साथ ही 11 और उपकरण एपीएसएलवी-सी 11 से प्रक्षेपित किए गए जिनमें से पाँच भारत के और छह अमरीका और यूरोपीय देशों के थे। इस परियोजना में इसरो ने पहली बार 10 उपग्रह एक साथ प्रक्षेपित किए।

द्रव्यमान - प्रक्षेपण के समय 1360 किलोग्राम और बाद में चन्द्रमा तक पहुँचने पर इसका वजन 575 किग्रा हो जाएगा। अपने इम्पैक्टरों को फेंकने के बाद 523 किग्रा।

आकार- एक घन के आकार में जिसकी भुजाए 1.5 मीटर लम्बी हैं।

संचार- एक्स-बैंड

ऊर्जा- ऊर्जा का मुख्य स्रोत सौर पैनल है जो 700 वाट की क्षमता का है। इसे लीथियम-आयन बैटरियों में भर कर संचित किया जा सकता है।

अध्ययन के विशिष्ट क्षेत्र

  1. स्थायी रूप से छाया में रहने वाले उत्तर- और दक्षिण-ध्रुवीय क्षेत्रों के खनिज एवं रासायनिक इमेजिंग।
  2. सतह या उप-सतह चंद्र पानी-बर्फ की तलाश, विशेष रूप से चंद्र ध्रुवों पर।
  3. चट्टानों में रसायनों की पहचान।
  4. दूरसंवेदन से और दक्षिणी ध्रुव एटकेन क्षेत्र (एसपीएआर) के द्वारा परत की रासायनिक वर्गीकरण, आंतरिक सामग्री की इमेजिंग।
  5. चंद्र सतह की ऊंचाई की भिन्नता का मानचित्रण करना।
  6. 10 केवी से अधिक एक्स-रे स्पेक्ट्रम और 5 मी (16 फुट) रिज़ॉल्यूशन के साथ चंद्रमा की सतह के अधिकांश स्टेरिओग्राफिक कवरेज का निरीक्षण।
  7. चंद्रमा की उत्पत्ति और विकास को समझने में नई अंतर्दृष्टि प्रदान करना।

घटनाक्रम

  • बुधवार 22 अक्टूबर 2008 को छह बजकर 21 मिनट पर श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से चंद्रयान प्रथम छोड़ा गया। इसको छोड़े जाने के लिए उल्टी गिनती सोमवार सुबह चार बजे ही शुरू हो गई थी। मिशन से जुड़े वैज्ञानिकों में मौसम को लेकर थोड़ी चिंता थी, लेकिन सब ठीक-ठाक रहा। आसमान में कुछ बादल जरूर थे, लेकिन बारिश नहीं हो रही थी और बिजली भी नहीं चमक रही थी। इससे चंद्रयान के प्रक्षेपण में कोई दिक्कत नहीं आयी। इसके सफल प्रक्षेपण के साथ ही भारत दुनिया का छठा देश बन गया है, जिसने चांद के लिए अपना अभियान भेजा है। इस महान क्षण के मौके पर वैज्ञानिकों का हजूम 'इसरो' के मुखिया जी माधवन नायर 'इसरो' के पूर्व प्रमुख के कस्तूरीरंगन के साथ मौजूद थे। इन लोगों ने रुकी हुई सांसों के साथ चंद्रयान प्रथम की यात्रा पर सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लगातार नजर रखी और एक महान इतिहास के गवाह बने।
  • चंद्रयान के ध्रुवीय प्रक्षेपण अंतरिक्ष वाहन पीएसएलवी सी-11 ने सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से रवाना होने के 19 मिनट बाद ट्रांसफर कक्षा में प्रवेश किया। 11 पेलोड के साथ रवाना हुआ चंद्रयान पृथ्वी के सबसे नजदीकी बिन्दु (250 किलोमीटर) और सबसे दूरस्थ बिन्दु (23,000 किलोमीटर) के बीच स्थित ट्रांसफर कक्षा में पहुंच गया। दीर्घवृताकार कक्ष से 255 किमी पेरिजी और 22 हजार 860 किमी एपोजी तक उठाया गया था।
  • गुरुवार 23 अक्टूबर 2008 को दूसरे चरण में अंतरिक्ष यान के लिक्विड इंजिन को 18 मिनट तक दागकर इसे 37 हजार 900 किमी एपोजी और 305 किमी पेरिजी तक उठाया गया।
  • शनिवार 25 अक्टूबर 2008 को तीसरे चरण के बाद कक्ष की ऊंचाई बढ़ाकर एपोजी को दोगुना अर्थात 74 हजार किमी तक सफलतापूर्वक अगली कक्षा में पहुंचा दिया गया। इसके साथ ही यह 36 हजार किमी से दूर की कक्षा में जाने वाला देश का पहला अंतरिक्ष यान बन गया।
  • सोमवार 27 अक्टूबर 2008 को चंद्रयान-1 ने सुबह सात बज कर आठ मिनट पर कक्षा बदलनी शुरू की। इसके लिए यान के 440 न्यूटन द्रव इंजन को साढ़े नौ मिनट के लिए चलाया गया। इससे चंद्रयान-1 अब पृथ्वी से काफी ऊंचाई वाले दीर्घवृत्ताकार कक्ष में पहुंच गया है। इस कक्ष की पृथ्वी से अधिकतम दूरी 164,600 किमी और निकटतम दूरी 348 किमी है।
  • बुधवार 29 अक्टूबर 2008 को चौथी बार इसे उसकी कक्षा में ऊपर उठाने का काम किया। इस तरह यह अपनी मंजिल के थोड़ा और करीब पहुंच गया है। सुबह सात बजकर 38 मिनट पर इस प्रक्रिया को अंजाम दिया गया। इस दौरान 440 न्यूटन के तरल इंजन को लगभग तीन मिनट तक दागा गया। इसके साथ ही चंद्रयान-1 और अधिक अंडाकार कक्षा में प्रवेश कर गया। जहां इसका एपोजी (धरती से दूरस्थ बिंदु) दो लाख 67 हजार किमी और पेरिजी (धरती से नजदीकी बिंदु) 465 किमी है। इस प्रकार चंद्रयान-1 अपनी कक्षा में चंद्रमा की आधी दूरी तय कर चुका है। इस कक्षा में यान को धरती का एक चक्कर लगाने में करीब छह दिन लगते हैं। इसरो टेलीमेट्री, ट्रैकिंग एंड कमान नेटवर्क और अंतरिक्ष यान नियंत्रण केंद्र, ब्यालालु स्थित भारतीय दूरस्थ अंतरिक्ष नेटवर्क एंटीना की मदद से चंद्रयान-1 पर लगातार नजर रखी जा रही है। इसरो ने कहा कि यान की सभी व्यवस्थाएं सामान्य ढंग से काम कर रही हैं। धरती से तीन लाख 84 हजार किमी दूर चंद्रमा के पास भेजने के लिए अंतरिक्ष यान को अभी एक बार और उसकी कक्षा में ऊपर उठाया जाएगा।
  • शनिवार 8 नवंबर 2008 को चन्द्रयान भारतीय समय अनुसार करीब 5 बजे सबसे मुश्किल दौर से गुजरते हुए चन्दमाँ की कक्षा में स्थापित हो गया। अब यह चांद की कक्षा में न्यूनतम 504 और अधिकतम 7502 किमी दूर की अंडाकार कक्षा में परिक्रमा करगा। अगले तीने-चार दिनों में यह दूरी कम होती रहेगी। 
  • शुक्रवार 14 नवंबर 2008 वैज्ञानिक उपकरण मून इंपैक्ट प्रोब (एमआईपी) को चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्र में शाकेल्टन गड्ढे के पास छोड़ दिया। एमआईपी के चारों ओर भारतीय ध्वज चित्रित है। यह चांद पर भारत की मौजूदगी का अहसास कराएगा। 
  • शनिवार 29 अगस्त 2009 चंद्रयान-1 का नियंत्रण कक्ष से संपर्क टूट गया। 
  • रविवार 30 अगस्त 2009 भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने चंद्रयान प्रथम औपचारिक रूप से समाप्त कर दिया।

चंद्र पानी की खोज

24 सितंबर 2009 को साइंस (पत्रिका) ने बताया कि चंद्रयान पर चंद्रमा खनिजोग्य मैपर (एम 3) ने चंद्रमा पर पानी की बर्फ होने की पुष्टि की है।

सदी की सबसे महान उपलब्धि

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन [इसरो] ने दावा किया कि चांद पर पानी भारत की खोज है। चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी का पता चंद्रयान-1 पर मौजूद भारत के अपने मून इंपैक्ट प्रोब [एमआईपी] ने लगाया। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के उपकरण ने भी चांद पर पानी होने की पुष्टि की है। चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी का पता भारत के अपने एमआईपी ने लगाया है। चंद्रयान-1 के प्रक्षेपण के करीब एक पखवाड़े बाद भारत का एमआईपी यान से अलग होकर चंद्रमा की सतह पर उतरा था। उसने चंद्रमा की सतह पर पानी के कणों की मौजूदगी के पुख्ता संकेत दिए थे। चंद्रयान ने चांद पर पानी की मौजूदगी का पता लगाकर इस सदी की महत्वपूर्ण खोज की है। इसरो के अनुसार चांद पर पानी समुद्र, झरने, तालाब या बूंदों के रूप में नहीं बल्कि खनिज और चंट्टानों की सतह पर मौजूद है। चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी पूर्व में लगाए गए अनुमानों से कहीं ज्यादा है। 

आंकड़े का सार्वजनिक प्रदर्शन

चंद्रयान-1 द्वारा इकट्ठा किए गए आंकड़े वर्ष 2010 के अंत तक जनता के लिए उपलब्ध कराए गए थे। आंकड़े को दो सत्रों में विभाजित किया गया था जिसमें पहले सत्र 2010 के अंत तक सार्वजनिक हो गया था और दूसरा सत्र 2011 के मध्य तक सार्वजनिक हो गया था। आंकड़ो में चंद्रमा की तस्वीरें और चंद्रमा की सतह के रासायनिक और खनिज मानचित्रण के आंकड़े शामिल हैं।

परियोजना की अनुमानित लागत ₹ 386 करोड़ (US$48 मिलियन) थी।

इसका उद्देश्य दो साल की अवधि में चंद्रमा की सतह का सर्वेक्षण करना, सतह पर रासायनिक संरचना और त्रि-आयामी स्थलाकृति का पूरा नक्शा तैयार करना था। ध्रुवीय क्षेत्र विशेष रुचि रखते हैं क्योंकि उनमें पानी की बर्फ हो सकती है। इसकी कई उपलब्धियों में चंद्रमा की मिट्टी में पानी के अणुओं की व्यापक उपस्थिति की खोज थी ।

लगभग एक वर्ष के बाद, ऑर्बिटर को स्टार ट्रैकर की विफलता और खराब थर्मल परिरक्षण सहित कई तकनीकी समस्याओं का सामना करना पड़ा; चंद्रयान-1 ने 28 अगस्त 2009 को लगभग 20:00 यूटीसी पर संचार करना बंद कर दिया, जिसके तुरंत बाद इसरो ने आधिकारिक तौर पर घोषणा की कि मिशन समाप्त हो गया है। चंद्रयान-1 निर्धारित दो वर्षों के विपरीत 312 दिनों तक प्रचालित हुआ। हालाँकि मिशन ने चंद्र जल की उपस्थिति का पता लगाने सहित अपने अधिकांश वैज्ञानिक उद्देश्यों को प्राप्त किया ।

2 जुलाई 2016 को, नासा ने चंद्रयान-1 को बंद होने के लगभग सात साल बाद उसकी चंद्र कक्षा में स्थानांतरित करने के लिए जमीन-आधारित रडार सिस्टम का उपयोग किया। अगले तीन महीनों में बार-बार किए गए अवलोकन से इसकी कक्षा का सटीक निर्धारण संभव हो सका, जो हर दो साल में 150 और 270 किमी (93 और 168 मील) की ऊंचाई के बीच बदलती रहती है।

चंद्रयान-2

18 सितंबर 2008 को, प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने मिशन को मंजूरी दी। अंतरिक्षयान का डिजाइन अगस्त 2009 में पूरा हुआ, जिसमें दोनों देशों के वैज्ञानिकों ने एक संयुक्त समीक्षा की। हालांकि इसरो ने चंद्रयान-2 के प्रति शेड्यूल के लिए पेलोड को अंतिम रूप दिया, मिशन को जनवरी 2013 में स्थगित कर दिया गया और 2016 को पुनर्निर्धारित किया गया क्योंकि रूस समय पर लैंडर विकसित करने में असमर्थ था रोस्कोसमोस बाद में मार्स में फोबोस-ग्रंट मिशन की विफलता के कारण वापस ले लिया, क्योंकि फ़ुबोस-ग्रंट मिशन से जुड़े तकनीकी पहलुओं का उपयोग चंद्र परियोजनाओं में भी किया गया था, जिनकी समीक्षा किए जाने की आवश्यकता थी। जब रूस ने 2015 तक भी लैंडर प्रदान करने में असमर्थता का हवाला दिया, तो भारत ने चंद्र मिशन को स्वतंत्र रूप से विकसित करने का निर्णय लिया। 

2018 के तहत तैयारी के तहत दूसरा चरण, चंद्रमा पर नरम-लैंडिंग में सक्षम अंतरिक्ष यान को शामिल करेगा और अतिरिक्त माप लेने के लिए एक ऑर्बिटर के साथ चंद्र सतह पर एक रोबोट रोवर को भी तैनात करेगा।

चंद्रयान -2 को 14 जुलाई 2019 को लॉन्च किया जाना था। लेकिन लॉन्च को तकनीकी मुद्दों के कारण लॉन्च से 56 मिनट पहले अंतिम क्षणों में बंद कर दिया गया था। इसे बाद में 22 जुलाई, 2019 को जीएसएलवी एमके 3 रॉकेट पर लॉन्च किया गया था। 6 सितंबर, 2019 को लगभग 1:53 बजे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, इसरो, मिशन कंट्रोल ने यान के साथ सभी संपर्क खो दिया, जबकि जमीन पर उतरने का प्रयास किया। संपर्क खो जाने पर चंद्रमा की सतह से 2.1 किमी की ऊंचाई पर होने का अनुमान लगाया गया था।

 चंद्रयान -1 , चंद्रमा के लिए भारत का पहला मिशन 22 अक्टूबर 2008 को ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV-C11) का उपयोग करके लॉन्च किया गया था। उपग्रह ने चंद्रमा के चारों ओर 3400 से अधिक परिक्रमाएँ कीं और 29 अगस्त 2009 को अंतरिक्ष यान के साथ संचार खो जाने पर मिशन समाप्त हो गया। मिशन का प्राथमिक विज्ञान उद्देश्य पृथ्वी के निकट और दूर दोनों तरफ का त्रि-आयामी एटलस तैयार करना था। चंद्रमा और उच्च स्थानिक संकल्प के साथ संपूर्ण चंद्र सतह का रासायनिक और खनिज मानचित्रण करना।

चंद्रयान-1 का सबसे महत्वपूर्ण परिणाम चंद्र सतह पर हाइड्रॉक्सिल (OH) और पानी (H2O) अणुओं की उपस्थिति की खोज है। स्थायी सूर्य की छाया में क्रेटर के आधार में उप-सतही जल-बर्फ जमा का अनुमान, चंद्र वातावरण में पानी के अणुओं के संभावित अस्तित्व का पता लगाना, चंद्र मैग्मा महासागर की परिकल्पना का सत्यापन, सौर पवन प्रोटॉन के 20% के प्रतिबिंब का पता लगाना, पता लगाना चंद्र सतह पर Mg, Al, Si, Ca की उपस्थिति और कई चंद्र क्रेटरों की तीन आयामी अवधारणा चंद्रयान -1 के अन्य वैज्ञानिक परिणाम हैं।

इस मिशन के सफल कार्यान्वयन ने उपग्रह प्रौद्योगिकी, डिजाइन, विकास और विभिन्न प्रायोगिक पेलोड के निर्माण, भूस्थिर कक्षा से परे जाने के लिए संचार, नेविगेशन और नियंत्रण प्रणाली की स्थापना, चंद्र कक्षा से डेटा के अधिग्रहण और हस्तांतरण में सर्वांगीण विकास किया है। भारतीय डीप स्पेस नेटवर्क (आईडीएसएन) के माध्यम से ग्राउंड स्टेशन नेटवर्क के लिए 18-मीटर और 32 मीटर एंटीना के साथ और भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान मिशनों के लिए प्राथमिक डेटा केंद्र के रूप में बयालू में भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान डेटा केंद्र (आईएसएसडीसी) की स्थापना। 

 चंद्रयान-1 . के महत्वपूर्ण परिणाम

चंद्रयान -1 मिशन की प्रमुख खोज चंद्र सतह पर पानी (H2O) और हाइड्रॉक्सिल (OH) का पता लगाना है। डेटा ने ध्रुवीय क्षेत्र की ओर उनकी बढ़ी हुई बहुतायत का भी खुलासा किया। 

Galary Image: 
A three-color composite of near-infrared reflected solar radiation for Chandra showing the spatial extent of the diagnostic absorption measured by M3 is shown above. The blue color indicates the 3 µm absorption associated with the presence of OH/H2O. Red indicates absorption at 2 µm due to the presence of iron-containing minerals. Green represents the reflected brightness at 2.4 μm. [Reference: Cover page of Science, October 23, 2009 issue
The reflectance spectra obtained by 2M3 (a) show a lack of reflectance beyond 2.7 micrometres, when compared with modeled near-infrared reflectance spectra of H 2 O and OH applied for the lunar comparison (b), So the presence of water and OH bearing material is indicated. on the lunar surface. [Reference: CMPieters et al. Science, 326, 568–572, 2009.
Three-dimensional view of the Apollo-15 landing site by TMC, in front of the Apennine Mountains, showing parts of the Rima Hadley ridge and the 'halo' around the Apollo-15 Lunar Module landing site. [Reference: Prakash Chauhan et al. Current Science, 97, 630–631, 2009.
Simulated C1XS spectrum for the 18 November flare based on individual 16s integration. The lower line (black) shows the spectrum detected during the quiet period just before the start of the flare, while the upper line (grey) shows the spectrum obtained at the peak of the flare. [Reference: M Grande et al. Planetary and Space Science, 57(2009) 717–724
Hydrogen reflected from the lunar surface as detected by Sarah [Ref: Martin Weiser et al. Planetary Space Science, 57, 2132–2134, 2009
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