महाराणा मोकल सिंह
मेवाड़ के महाराणा
शासन काल 1421–1433
पूर्वज लाखा सिंह
उत्तराधिकारी राणा कुम्भा
जन्म 1409
मृत्यु 1433 (आयु 23-24)
मुद्दा
कुंभकर्ण
रानी सिसोदिनी (जिन्हें लाला मेवाड़ी और अचलदास खिंची की पत्नी के नाम से भी जाना जाता है)
हाउस सिसोदिया राजपूत
मेवाड़ के राजवंश सिसोदिया
पिता लाखा सिंह
माता हंसा बाई
राणा मोकल मेवाड़ के राणा लाखा तथा ( मारवाड़ की राजकुमारी ) रानी हंंसाबाई केे पुत्र थे।
महाराणा मोकल सिंह मेवाड़ साम्राज्य के महाराणा थे। वह महाराणा लाखा सिंह के पुत्र थे, अपने पिता की तरह, महाराणा मोकल एक उत्कृष्ट निर्माता थे। उन्होंने न केवल अपने पिता लाखा द्वारा शुरू किए गए भवनों को पूरा किया, बल्कि कई नए भी बनवाए। समाधिश्वर का मंदिर जो की भोज परमार द्वारा निर्मित था, उसकी मरम्मत महाराणा मोकल ने करवाई थी जिसे मोकल जी का मंदिर भी कहा जाता है।
मोकल (1397-1433ई.) – राणा बनते समय मोकल की आयु केवल बारह वर्ष की ही थी। अतः लाखा का बङा पुत्र चूण्डा उसका अभिभावक बना और उसने कुशलतापूर्वक मोकल के नाम पर मेवाङ का शासन चलाया। कुछ दिनों तक सभी काम ढंग से चलते रहे। परंतु धीरे-धीरे हंसाबाई और चूण्डा के संबंधों में तनाव पैदा हो गया। हंसाबाई को संदेह होने लगा कि कहीं अवसर मिलने पर चूण्डा मेवाङ के सिंहासन को हस्तगत न कर ले। अंत में जब स्थिति असहनीय हो गयी तो चूण्डा मेवाङ छोङकर माण्डू में सुल्तान की सेवा में चला गया। इस घटना के संबंध में हंसाबाई और उसके भाई रणमल की भूमिका के संबंध में परस्पर विरोधी विवरण मिलता है।
महाराणा मोकल ने अपनी तरह के सबसे प्रसिद्ध योद्धा के रूप में जाने जाने से पहले कुछ समय के लिए मेवाड़ पर शासन किया। उसने भारत से दिल्ली सल्तनत को खदेड़ दिया और नागौर गुजरात (सैय्यद वंश) पर विजय प्राप्त की। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात उन्होंने अपने पिता महाराणा लाखा द्वारा शुरू की गई महल परियोजनाओं को पूरा करने के लिए काम किया और उन्होंने अतिरिक्त सुंदर इमारतों के निर्माण की योजना बनाई।
मेवाङ के ख्यातकार तथा वीर-विनोद के लेखक श्यामलदास के अनुसार माण्डू जाते समय चूण्डा राघवदेव के अलावा अपने अन्य सभी भाइयों को अपने साथ ले गया। राघवदेव को मोकल की सुरक्षा के निमित्त छोङ गया था। संभव है कि वह राघवदेव को मेवाङ दरबार में सिसोदियों के हितों की रक्षा तथा रणमल के बढते हुए प्रभाव को रोकने के लिये छोङ गया हो। चूण्डा के जाने के बाद रणमल की स्थिति सर्वोपरि हो गयी। इसमें कोई संदेह नहीं कि रणमल ने महाराणा की निष्ठापूर्वक सेवा की और महाराणा के विरुद्ध उठने वाले विद्रोहों का दमन किया। परंतु उसके बढते हुए प्रभाव से सिसोदिया सामंत घबरा उठे और उन्हें ऐसा लगा कि मेवाङ पर राठौङ सत्ता स्थापित होनो जा रही है। अतः उन्होंने हर संभव उपाय से रणमल को कमजोर बनाने के प्रयास शुरू कर दिये। इस पर रणमल को भी अपने नेतृत्व में राठौङ सैनिकों की एक शक्तिशाली सेना खङी करनी पङी जिसका व्यय मेवाङ राज्य को उठाना पङा।
उधर मारवाङ में रणमल के पिता चूण्डा की मृत्यु हो गयी और राठौङ सरदारों ने रणमल के छोटे भाई कान्हा को नया राजा घोषित कर दिया। रणमल ने अपना उत्तराधिकार प्राप्त करने का प्रयास किया परंतु उसे सफलता नहीं मिली। इस अवसर पर राणा मोकल की तरफ से उसे किसी प्रकार की सहायता नहीं मिली। संयोगवश कान्हा की जल्दी ही मृत्यु हो गयी और मारवाङ के सिंहासन के लिये राठौङों में गृह-युद्ध छिङ गया। इस बार राणा मोकल ने रणमल को सैनिक सहायता दी और मेवाङ की सहायता से रणमल मारवाङ के सिंहासन पर बैठने में सफल रहा। उसने मंडौर को अपना केन्द्र बनाकर अपनी शक्ति को सुदृढ बनाना शुरू किया।
रणमल के चले जाने के बाद मालवा के सुल्तान होशंगशाह ने मेवाङ के गागरोण दुर्ग पर आक्रमण किया। दुर्ग का रक्षक अचलदास खींची जो मोकल का संबंधी भी था लङता हुआ मारा गया और गागरोण पर मालवा का अधिकार हो गया। इसी प्रकार नागौर के मुस्लिम शासक फिरोजखाँ से भी मोकल का संघर्ष हुआ जिसमें मेवाङ को पराजय का सामना करना पङा। परंतु मेवाङ के शिलालेखों के आधार पर डॉ.गोपीनाथ शर्मा ने लिखा है कि 1428 ई. के आसपास मोकल ने नागौर के फिरोजखाँ को रामपुरा के युद्ध में परास्त किया और सांभर देश को रौंद डाला तथा गुजरात के अहमदशाह को पराजित किया। उसने जहाजपुर के किले के घेरे में भी विजय प्राप्त की और हाङों के मानमर्दन में सफलता प्राप्त की। परंतु डॉ.शर्मा के इस निष्कर्ष के विरुद्ध अन्य साक्ष्यों से जानकारी मिलती है कि बून्दी के हाङाओं ने भी मेवाङ की सीमाओं का अतिक्रमण किया और माण्डलगढ तक का क्षेत्र अधिकृत कर लिया। गोडवाङ के क्षेत्र में सिरोही के शासक ने अव्यवस्था फैला रखी थी। इस प्रकार, मोकल के शासनकाल में मेवाङ के प्रभुत्व एवं प्रभाव में कमी आने लग गई थी। ऐसी स्थिति में गुजरात के सुल्तान अहमदशाह ने मेवाङ पर आक्रमण कर दिया। सुल्तान ने डूँगरपुर, केलवाङा और देलवाङा के क्षेत्रों में भारी लूटमार की। महाराणा मोकल उसका सामना करने के लिये सेना सहित चित्तौङ से रवाना हुआ। जब वह जीलवाङा क्षेत्र में गुजरात के सुल्तान का आक्रमण रोकने के लिए पङाव डाले हुये था तो उसके दो चाचाओं – चाचा और मेरा, जो महाराणा क्षेत्रसिंह की अवैध संतान थे, ने महाराणा मोकल की हत्या कर दी। मोकल की हत्या में भी अलग-अलग विवरण मिलते हैं। नैणसी आदि ख्यातकार घटना का विवरण इस ढंग से प्रस्तुत करते हैं। जिससे रणमल की प्रतिष्ठा में वृद्धि हो। मेवाङ के ख्यातकार भी अलग-अलग विवरण देते हैं।
मृत्यु और उत्तराधिकार
24 वर्ष की छोटी उम्र में, 1433 में उनके चाचा चाचा और मेरा द्वारा उनकी हत्या ने एक महान महाराणा को समाप्त कर दिया।
मोकल की मृत्यु के समय राणा कुंभा जो सिर्फ 13 वर्ष का था मेवाड़ के इतिहास में एक महत्वपूर्ण बिंदु पर गद्दी पर बैठा। अपने पिता के असामयिक निधन के बाद युवा कुंभ को सबसे खराब परिस्थितियों का सामना करना पड़ा लेकिन महाराणा मोकल के साहस और दूरदर्शिता के कारण उन्हें मेवाड़ के महानतम राजाओं में से एक बनने के लिए प्रेरित किया गया।