चंद्रयान-2

  • Posted on: 23 August 2023
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चन्द्रयान-द्वितीय (लैण्डर एवं ऑर्बिटर का सम्मिलित रूप)

मिशन प्रकार चन्द्र ऑर्बिटर , लैंडर तथा रोवर
संचालक (ऑपरेटर)  भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन(इसरो)
वेबसाइट www.isro.gov.in
मिशन अवधि  ऑर्बिटर: 1 वर्ष
विक्रम लैंडर:  <15 दिन
प्रज्ञान रोवर:  <15 दिन
अंतरिक्ष यान के गुण  
निर्माता भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन(इसरो)
लॉन्च वजन कुल योग: 3,877 कि॰ग्राम (8,547 पौंड)
पेलोड वजन  ऑरबिटर: 2,379 कि॰ग्राम (5,245 पौंड)
विक्रम लैंडर: 1,471 कि॰ग्राम (3,243 पौंड)
प्रज्ञान रोवर :  27 कि॰ग्राम (60 पौंड)
ऊर्जा   
ऑरबिटर:  1 किलोवाट विक्रम लैंडर: 650 वाट
प्रज्ञान रोवर:  50 वाट
मिशन का आरंभ  
प्रक्षेपण तिथि  15 जुलाई 2019, 21:21 यु.टी.सी (योजना) थी, जो तकनीकी गड़बड़ी के चलते 22 जुलाई 2019 को 02:41 अपराह्न की गई थी।
रॉकेट  भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान संस्करण 3
प्रक्षेपण स्थल सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र
ठेकेदार भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन
चन्द्रमा कक्षीयान  
कक्षीय निवेशन सितंबर 6, 2019 (योजना)
कक्षा मापदंड  
निकट दूरी बिंदु 100 कि॰मी॰ (62 मील)
दूर दूरी बिंदु 100 कि॰मी॰ (62 मील)
भारतीय चन्द्रयान अभियान(इसरो)  

चंद्रयान-२ या चंद्रयान द्वितीय, चंद्रयान-1 के बाद चन्द्रमा पर खोजबीन करने वाला दूसरा अभियान है, जिसे इसरो ने विकसित किया है। अभियान को जीएसएलवी मार्क 3 प्रक्षेपण यान द्वारा प्रक्षेपित (लॉन्च) किया गया। इस अभियान में भारत में निर्मित एक चंद्र ऑरबिटर, एक रोवर एवं एक लैंडर शामिल हैं। इन सब का विकास इसरो द्वारा किया गया है। भारत ने चंद्रयान-2 को 22 जुलाई 2019 को श्रीहरिकोटा रेंज से भारतीय समयानुसार दोपहर 02:43 बजे सफलता पूर्वक प्रक्षेपित किया।

चंद्रयान-2 लैंडर और रोवर को चंद्रमा पर लगभग 70° दक्षिण के अक्षांश पर स्थित दो क्रेटरों मज़िनस सी और सिमपेलियस एन के बीच एक उच्च मैदान पर उतरने का प्रयास करना था। पहियेदार रोवर चंद्र सतह पर चलने और जगह का रासायनिक विश्लेषण करने के लिए बनाया गया था। रोवर द्वारा एकत्र किए गए आंकड़ों को चंद्रयान-2 कक्षयान के माध्यम से पृथ्वी पर भेजने की योजना थी।

चंद्रयान-1 ऑर्बिटर का मून इम्पैक्ट प्रोब (MIP) 14 नवंबर 2008 को चंद्र सतह पर उतरा, जिससे भारत चंद्रमा पर अपना झंडा लगाने वाला चौथा देश बन गया था। यूएसएसआर, यूएसए और चीन की अंतरिक्ष एजेंसियों के बाद, चंद्रयान-2 लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग हो जाने पर भारत ऐसा करने वाला चौथा देश होता। सफल होने पर, चंद्रयान-2 सबसे दक्षिणी चंद्र लैंडिंग होता, जिसका लक्ष्य 67°-70° दक्षिण अक्षांश पर उतरना था।

हालाँकि, भारतीय समय अनुसार लगभग 1:52 बजे, लैंडर लैंडिंग से लगभग 2.1 किमी की दूरी पर अपने इच्छित पथ से भटक गया और अंतरिक्ष यान के साथ ग्राउन्ड कंट्रोल ने संचार खो दिया। 

8 सितंबर 2019 को इसरो द्वारा सूचना दी गई कि ऑर्बिटर द्वारा लिए गए ऊष्माचित्र से विक्रम लैंडर का पता चल गया है। परंतु अभी चंद्रयान-2 से संपर्क नहीं हो पाया है। 

इतिहास

12 नवंबर 2007 को इसरो और रूसी अंतरिक्ष एजेंसी (रोसकॉस्मोस) के प्रतिनिधियों ने चंद्रयान-2 परियोजना पर साथ काम करने के एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। यह तय हुआ था कि ऑर्बिटर तथा रोवर की मुख्य जिम्मेदारी इसरो की होगी तथा रोसकोसमोस लैंडर के लिए जिम्मेदार होगा।

भारत सरकार ने 18 सितंबर 2008 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में आयोजित केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में इस अभियान को स्वीकृति दी थी। अंतरिक्ष यान के डिजाइन को अगस्त 2009 में पूर्ण कर लिया गया जिसमें दोनों देशों के वैज्ञानिकों ने अपना संयुक्त योगदान दिया।

हालांकि इसरो ने चंद्रयान -2 कार्यक्रम के अनुसार पेलोड को अंतिम रूप दे दिया परंतु रूस द्वारा लैंडर को समय पर विकसित करने में असफल होने के कारण अभियान को जनवरी 2013 में स्थगित कर दिया गया तथा अभियान को 2016 के लिये पुनर्निर्धारित कर दिया गया। रोसकॉस्मोस को बाद में मंगल ग्रह के लिए भेजे फोबोस-ग्रन्ट अभियान मे मिली विफलता के कारण चंद्रयान -2 कार्यक्रम से अलग कर दिया गया तथा भारत ने चंद्र मिशन को स्वतंत्र रूप से विकसित करने का फैसला किया।

उद्देश्य

चंद्रयान-2 लैंडर का प्राथमिक उद्देश्य चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट-लैंडिंग और रोबोटिक रोवर संचालित करने की क्षमता प्रदर्शित करना था।

चंद्रयान -2 मिशन एक अत्यधिक जटिल मिशन था, जो इसरो के पिछले मिशनों की तुलना में एक महत्वपूर्ण तकनीकी छलांग का प्रतिनिधित्व करता था, जो चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की खोज के लक्ष्य के साथ एक ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर को एक साथ लाया था। यह एक अनूठा मिशन था जिसका उद्देश्य चंद्रमा के केवल एक क्षेत्र का नहीं बल्कि एक ही मिशन में चंद्रमा के बाह्यमंडल, सतह के साथ-साथ उप-सतह के सभी क्षेत्रों का अध्ययन करना है।

ऑर्बिटर के वैज्ञानिक लक्ष्य हैं:

 

  • चंद्र स्थलाकृति (टोपोग्राफी) , खनिज विज्ञान, तात्विक प्रचुरता, चंद्र बहिर्मंडल (एक्सॉस्फीयर), और हाइड्रॉक्सिल और जल से बनी बर्फ के निशानों का अध्ययन करना।
  • दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र में जल से बनी बर्फ और सतह पर चंद्र रेगोलिथ की मोटाई का अध्ययन करना।
  • चंद्रमा की सतह का मानचित्रण करना और उसके 3डी मानचित्र तैयार करने में मदद करना।

बनावट

ऑर्बिटर - वज़न 2,379 kg

विद्युत ऊर्जा उत्पादन क्षमता - 1,000 डब्ल्यू

चंद्रयान 2 ऑर्बिटर ब्यालालु में भारतीय डीप स्पेस नेटवर्क (आईडीएसएन) के साथ-साथ विक्रम लैंडर के साथ संचार करने में सक्षम है। सटीक प्रक्षेपण और मिशन प्रबंधन ने नियोजित एक वर्ष के बजाय लगभग सात वर्षों का मिशन जीवन सुनिश्चित किया है।

ऑर्बिटर 100 किलोमीटर की ऊंचाई पर चन्द्रमा की परिक्रमा कर रहा है। इस अभियान में ऑर्बिटर में पांच पेलोड लगे हुए हैं। तीन पेलोड नए हैं, जबकि दो अन्य चंद्रयान-1 ऑर्बिटर पर भेजे जाने वाले पेलोड के उन्नत संस्करण हैं। उड़ान के समय इसका वजन लगभग 2379 किलो था। ऑर्बिटर में हाई रिज़ॉल्यूशन कैमरा लगा है जिसका काम लैंडर के ऑर्बिटर से अलग होने पूर्व लैंडिंग साइट की तस्वीर देना था। लॉन्च के समय, चंद्रयान 2 ke ऑर्बिटर बयालू, कर्नाटक स्थित भारतीय डीप स्पेस नेटवर्क (आईडीएसएन) के द्वारा ट्रैक किया गया। ऑर्बिटर का मिशन जीवन एक वर्ष है और इसे 100X100 किमी लंबी चंद्र ध्रुवीय कक्षा में रखा गया है। 

लैंडर

वज़न - 1,471 kg

विद्युत ऊर्जा उत्पादन क्षमता - 650 डब्ल्यू

चंद्रयान 2 के लैंडर का नाम भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है। यह एक चंद्र दिन के लिए कार्य करने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जो लगभग 14 पृथ्वी दिनों के बराबर होता है। लैंडर को चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। चन्द्रमा की सतह से टकराने वाले चंद्रयान-1 के मून इम्पैक्ट प्रोब के विपरीत, लैंडर धीरे-धीरे नीचे उतरेगा। लैंडर तथा रोवर का वजन लगभग 1471 किलो था। प्रारंभ में, लैंडर रूस द्वारा भारत के साथ सहयोग से विकसित किए जाने की उम्मीद थी। जब रूस ने 2015 से पहले लैंडर के विकास में अपनी असमर्थता जताई। तो भारतीय अधिकारियों ने स्वतंत्र रूप से लैंडर को विकसित करने का निर्णय लिया। रूस द्वारा लैंडर को रद्द करने के कारण मिशन प्रोफ़ाइल को बदलना पड़ा जिसके तहत स्वदेशी लैंडर की प्रारंभिक कॉन्फ़िगरेशन का अध्ययन 2013 में अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (SAC), अहमदाबाद द्वारा पूरा किया गया।

चंद्रमा की सतह पर लैंडिंग के लिए अनुसंधान दल ने लैंडिंग विधि की पहचान की और इससे जुड़े प्रौद्योगिकियों का अध्ययन किया। इन प्रौद्योगिकियों में हाई रेसोल्यूशन कैमरा, नेविगेशन कैमरा, खतरे से बचने के लिए कैमरा, एक मुख्य तरल इंजन (800 न्यूटन) और अल्टीमीटर, एक्सीलेरोमीटर और इन घटकों को चलाने के लिए सॉफ्टवेयर आदि शामिल थे। लैंडर के मुख्य इंजन को सफलतापूर्वक 513 सेकंड की अवधि के लिए परीक्षण किया गया था। उसके बाद सेंसर और सॉफ्टवेयर के क्लोज़ लूप वेरीफिकेशन परीक्षण किए गए। लैंडर के इंजीनियरिंग मॉडल को कर्नाटक के चित्रदुर्ग जिले के चुनलेरे में अक्टूबर 2016 के अंत में जमीनी और हवाई परीक्षणों के दौर से गुजारा गया। इसी परीक्षण के अंतर्गत इसरो ने लैंडिंग साइट का चयन करने के लिए और लैंडर के सेंसर की क्षमता का आकलन करने में सहायता के लिए चुनलेरे में करीब 10 क्रेटर बनाए थे।

रोवर को चांद की सतह पर उतारने के लिए विक्रम लैंडर ऑर्बिटर से अलग हुआ और अपने 800 N के मुख्य तरल इंजन का उपयोग करके 30 किमी × 100 किमी (19 मील × 62 मील) की निचली चंद्र कक्षा में उतर गया। अपने सभी ऑन-बोर्ड सिस्टम की जांच करने के बाद इसने एक नरम लैंडिंग का प्रयास किया, जिससे रोवर को तैनात किया जाता इस दौरान इसने लगभग 14 पृथ्वी दिनों तक वैज्ञानिक गतिविधियां कीं। इस प्रयास के दौरान ही विक्रम दुर्घटनाग्रस्त हो गया।

रोवर

चंद्रयान-2 का 'प्रज्ञान' नामक रोवर एक 6 पहियों वाला रोबोट वाहन था। प्रज्ञान एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ 'बुद्धिमत्ता' या 'ज्ञान' होता है। रोवर का वजन 27 किग्रा था और यह सौर ऊर्जा के माध्यम से 50 W इलेक्ट्रिक पावर जनरेशन की क्षमता रखता था। यह चांद की सतह पर 500 मीटर तक यात्रा करने के लिए बनाया गया था। यह केवल लैंडर के साथ संवाद कर सकता था। इस रोवर को चन्द्रमा की सतह पर पहियों के सहारे चलने, मिट्टी और चट्टानों के नमूने एकत्र करने व रासायनिक विश्लेषण करने के लिए डिजाइन किया गया था। इस डाटा को लेंडर के माध्यम से ऊपर ऑर्बिटर से होते हुए पृथ्वी के स्टेशन पर भेजने की योजना थी।

आईआईटी कानपुर ने गतिशीलता प्रदान करने के लिए रोवर के तीन उप प्रणालियों विकसित की:

  • स्टीरियोस्कोपिक कैमरा आधारित 3डी दृष्टि - जमीन टीम को रोवर नियंत्रित के लिए रोवर के आसपास के इलाके की एक 3डी दृश्य को प्रदान करने के लिए।
  • काइनेटिक ट्रैक्शन (कर्षण) कंट्रोल - रोवर को चन्द्रमा की सतह पर चलने और अपने छह पहियों पर स्वतंत्र रूप से काम करने की क्षमता प्रदान करने के लिए।
  • नियंत्रण और मोटर गतिशीलता - छह पहियों से युक्त इस रोवर के प्रत्येक पहिये को स्वतंत्र बिजली की मोटर द्वारा संचालित करने के लिए।

प्रज्ञान रोवर का अपेक्षित परिचालन (ऑपरेटिंग) समय एक चंद्र दिवस या ~14 पृथ्वी दिन था, क्योंकि इसके इलेक्ट्रॉनिक्स को ठंडी चंद्र रात को सहन करने के लिए डिज़ाइन नहीं किया गया था। हालाँकि, इसकी विद्युत प्रणाली में सौर ऊर्जा से संचालित सोने/जागने का चक्र लागू किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप योजना से अधिक सेवा समय मिल सकता था। रोवर के दो पिछले पहियों पर चंद्रमा की सतह पर पैटर्न वाले ट्रैक छोड़ने के लिए इसरो का लोगो और भारत का राजकीय प्रतीक उभरा हुआ था।

पेलोड

सबसिस्टम  मात्रा (सं.)  वजन(किलोग्राम)  पावर(वाट)
जड़त्वीय नेविगेशन प्रणाली  1 20 100
स्टार ट्राकर 2 6 15
अल्टीमीटर 2 1.5 8
वेलोसिटी मीटर 2 1.5 8
इमेजिंग सेंसर 2 2 5

इसरो ने घोषणा की है कि एक विशेषज्ञ समिति के निर्णय के अनुसार ऑर्बिटर पर पांच तथा रोवर पर दो पेलोड भेजे जायेंगे। हालांकि शुरुआत में बताया गया था कि नासा तथा ईएसए भी इस अभियान में भाग लेंगे और ऑर्बिटर के लिए कुछ वैज्ञानिक उपकरणों को प्रदान करेंगे, इसरो ने बाद में स्पष्ट किया कि वजन सीमाओं के चलते वह इस अभियान पर किसी भी गैर-भारतीय पेलोड को साथ नहीं ले जायेगी। 

ऑर्बिटर पेलोड

चन्द्र सतह पर मौजूद प्रमुख तत्वों की मैपिंग (मानचित्रण) के लिए इसरो उपग्रह केन्द्र (ISAC), बंगलौर से लार्ज एरिया सॉफ्ट एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (क्लास) और फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी (PRL), अहमदाबाद से सोलर एक्स-रे मॉनिटर (XSM)

स्पेस एप्लीकेशन सेंटर (SAC), अहमदाबाद से एल और एस बैंड सिंथेटिक एपर्चर रडार (एसएआर); चन्द्र सतह पर वॉटर आइस (बर्फीले पानी) सहित अन्य तत्वों की खोज के लिए। एसएआर से चन्द्रमा के छायादार क्षेत्रों के नीचे वॉटर आइस की उपस्थिति की पुष्टि करने वाले और अधिक साक्ष्य प्रदान किये जाने की उम्मीद है।

स्पेस एप्लीकेशन सेंटर (SAC), अहमदाबाद से इमेजिंग आईआर स्पेक्ट्रोमीटर (IIRS); खनिज, पानी, तथा हाइड्रॉक्सिल की मौजूदगी संबंधी अध्ययन हेतु चन्द्रमा की सतह के काफी विस्तृत हिस्से का मानचित्रण करने के लिए

अंतरिक्ष भौतिकी प्रयोगशाला (SPL), तिरुअनंतपुरम से न्यूट्रल मास स्पेक्ट्रोमीटर (ChACE2); चन्द्रमा के बहिर्मंडल के विस्तृत अध्ययन के लिए

स्पेस एप्लीकेशन सेंटर (SAC), अहमदाबाद से टेरेन मैपिंग कैमरा-2 (टीएमसी-2); चन्द्रमा के खनिज-विज्ञान तथा भूविज्ञान के अध्ययन के लिए आवश्यक त्रिआयामी मानचित्र को तैयार करने के लिए

लैंडर पेलोड

  • सेइसमोमीटर - लैंडिंग साइट के पास भूकंप के अध्ययन के लिए
  • थर्मल प्रोब - चंद्रमा की सतह के तापीय गुणों का आकलन करने के लिए
  • लॉंगमोर प्रोब - घनत्व और चंद्रमा की सतह प्लाज्मा मापने के लिए
  • रेडियो प्रच्छादन प्रयोग - कुल इलेक्ट्रॉन सामग्री को मापने के लिए

रोवर पेलोड

लेबोरेट्री फॉर इलेक्ट्रो ऑप्टिक सिस्टम्स (LEOS), बंगलौर से लेजर इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप (LIBS)

PRL, अहमदाबाद से अल्फा पार्टिकल इंड्यूस्ड एक्स-रे स्पेक्ट्रोस्कोप (APIXS)

हम चंद्रमा पर क्यों गए?

चंद्रमा निकटतम ब्रह्मांडीय पिंड है जिस पर अंतरिक्ष खोज का प्रयास और दस्तावेजीकरण किया जा सकता है। यह गहरे अंतरिक्ष अभियानों के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकियों को प्रदर्शित करने के लिए एक आशाजनक परीक्षण बिस्तर भी है। चंद्रयान-2 का उद्देश्य चंद्रमा के बारे में हमारी समझ को बढ़ाना, प्रौद्योगिकी की प्रगति को प्रोत्साहित करना, वैश्विक गठबंधनों को बढ़ावा देना और खोजकर्ताओं और वैज्ञानिकों की भावी पीढ़ी को प्रेरित करना है।

चंद्रयान 2 के वैज्ञानिक उद्देश्य क्या हैं? अन्वेषण के लिए चंद्र दक्षिणी ध्रुव को क्यों लक्षित किया गया?

चंद्रमा पृथ्वी के प्रारंभिक इतिहास से सर्वोत्तम जुड़ाव प्रदान करता है। यह आंतरिक सौर मंडल पर्यावरण का अबाधित ऐतिहासिक रिकॉर्ड प्रस्तुत करता है। हालाँकि कुछ परिपक्व मॉडल हैं, चंद्रमा की उत्पत्ति को समझने के लिए और स्पष्टीकरण की आवश्यकता थी। चंद्रमा की उत्पत्ति और विकास का पता लगाने के लिए चंद्र सतह में भिन्नताओं का अध्ययन करने के लिए चंद्र सतह का व्यापक मानचित्रण आवश्यक था। चंद्रयान-1 द्वारा खोजे गए पानी के अणुओं के साक्ष्य के लिए, चंद्रमा पर पानी की उत्पत्ति का पता लगाने के लिए सतह पर, सतह के नीचे और कमजोर चंद्र बाह्यमंडल में पानी के अणुओं के वितरण की सीमा पर आगे के अध्ययन की आवश्यकता है।

चंद्र दक्षिणी ध्रुव विशेष रूप से दिलचस्प है क्योंकि छाया में रहने वाला चंद्र सतह क्षेत्र उत्तरी ध्रुव की तुलना में बहुत बड़ा है। इसके आस-पास स्थायी रूप से छाया वाले क्षेत्रों में पानी की मौजूदगी की संभावना हो सकती है। इसके अलावा, दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में ऐसे गड्ढे हैं जो ठंडे जाल हैं और इनमें प्रारंभिक सौर मंडल का जीवाश्म रिकॉर्ड मौजूद है।

विज्ञान प्रयोग

चंद्रयान-2 में स्थलाकृति, भूकंप विज्ञान, खनिज पहचान और वितरण, सतह रासायनिक संरचना, ऊपरी मिट्टी की थर्मो-भौतिक विशेषताओं और कमजोर चंद्र वातावरण की संरचना के विस्तृत अध्ययन के माध्यम से चंद्र वैज्ञानिक ज्ञान का विस्तार करने के लिए कई विज्ञान पेलोड हैं, जिससे एक नई समझ पैदा होती है। चंद्रमा की उत्पत्ति और विकास के बारे में

ऑर्बिटर पेलोड 100 किमी की कक्षा से रिमोट-सेंसिंग अवलोकन करेगा, जबकि लैंडर और रोवर पेलोड लैंडिंग साइट के पास इन-सीटू माप करेंगे।

चंद्र संरचना को समझने के लिए, तत्वों की पहचान करने और वैश्विक और इन-सीटू दोनों स्तरों पर चंद्र सतह पर इसके वितरण का मानचित्रण करने की योजना बनाई गई है। इसके अलावा चंद्र रेजोलिथ की विस्तृत 3 आयामी मैपिंग की जाएगी। चंद्र आयनमंडल में निकट सतह प्लाज्मा वातावरण और इलेक्ट्रॉन घनत्व पर माप का अध्ययन किया जाएगा। चंद्रमा की सतह की थर्मो-भौतिकीय संपत्ति और भूकंपीय गतिविधियों को भी मापा जाएगा। जल अणु वितरण का अध्ययन इन्फ्रा रेड स्पेक्ट्रोस्कोपी, सिंथेटिक एपर्चर रेडियोमेट्री और पोलारिमेट्री के साथ-साथ मास स्पेक्ट्रोस्कोपी तकनीकों का उपयोग करके किया जाएगा।

चंद्रयान-2: चाँद की अधूरी यात्रा में भी क्यों है भारत की एक बड़ी जीत

अगर सब कुछ ठीक रहता तो भारत दुनिया का पहला देश बन जाता जिसका अंतरिक्षयान चन्द्रमा की सतह के दक्षिण ध्रुव के क़रीब उतरताइससे पहले अमरीका, रूस और चीन ने चन्द्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैन्डिंग करवाई थी लेकिन दक्षिण ध्रुव पर नहीं. कहा जा रहा है कि दक्षिण ध्रुव पर जाना बहुत जटिल था इसलिए भी भारत का मून मिशन चन्द्रमा की सतह से 2.1 किलोमीटर दूर रह गया। चंद्रयान-2 जब चंद्रमा की सतह पर उतरने ही वाला था कि लैंडर विक्रम से संपर्क टूट गया। प्रधानमंत्री मोदी भी इस ऐतिहासिक क्षण का गवाह बनने के लिए इसरो मुख्यालय बेंगलुरू पहुंचे थे। लेकिन आख़िरी पल में चंद्रयान-2 का 47 दिनों का सफ़र अधूरा रह गया।

क्या इसरो की यह हार है या इस हार में भी जीत छुपी है? आख़िर चंद्रयान-2 की 47 दिनों की यात्रा अधूरी आख़िरी पलों में क्यों रह गई? क्या कोई तकनीकी खामी थी? 

साइंस के मशहूर पत्रकार  पल्लव बागला के ही शब्दों में पढ़िए सारे सवालों के जवाब?

आख़िरी पलों में विक्रम लैंडर का संपर्क ग्राउंड स्टेशन से टूट गया। इसरो के चेयरमैन डॉ के सिवन ने बताया कि जब इसरो का विक्रम लैंडर 2.1 किलोमीटर चाँद की सतह से दूर था, तभी ग्राउंट स्टेशन से संपर्क टूट गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसरो के कंट्रोल रूम से वैज्ञानिकों से बात की और तब उन्होंने संकेत दिया कि कहीं न कहीं चंद्रयान-2 का विक्रम लैंडर चाँद की सतह पर उतरने में जल्दी कर रहा था। अंतिम क्षणों में कहीं न कहीं कुछ ख़राबी हुई है जिससे पूरी सफलता नहीं मिल पाई।

विक्रम लैंडर से भले निराशा मिली है लेकिन यह मिशन नाकाम नहीं रहा है, क्योंकि चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर चाँद की कक्षा में अपना काम कर रहा है। इस ऑर्बिटर में कई साइंटिफिक उपकरण हैं और अच्छे से काम कर रहे हैं। विक्रम लैन्डर और प्रज्ञान रोवर का प्रयोग था और इसमें ज़रूर झटका लगा है। इस हार में जीत भी है। ऑर्बिटर भारत ने पहले भी पहुंचाया था लेकिन इस बार का ऑर्बिटर ज़्यादा आधुनिक है। चंद्रयान-1 के ऑर्बिटर से चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर ज़्यादा आधुनिक और साइंटिफिक उपकरणों से लैस है। विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर का प्रयोग भारत के लिए पहली बार था और मुझसे डॉ सिवन ने कहा भी था कि इसके आख़िरी 15 मिनट दहशत के होंगे। यह एक प्रयोग था और इसमें झटका लगा है. ज़ाहिर है हर प्रयोग कामयाब नहीं होते। 

दुनिया भर के 50 फ़ीसदी से भी कम मिशन हैं जो सॉफ्ट लैंडिंग में कामयाब रहे हैं। जो भी अंतरिक्ष विज्ञान को समझते हैं वो ज़रूर भारत के इस प्रयास को प्रोत्साहन देंगे। इसरो का अब बड़ा मिशन गगनयान का है जिसमें अंतरिक्षयात्री को भेजा जाना है।

चंद्रयान 2 की पूरी कहानी

  • 12 जून 2019 को इसरो के अध्यक्ष के. सिवन ने घोषणा की कि चंद्रमा पर जाने के लिए भारत के दूसरे मिशन चंद्रयान-2 को 15 जुलाई को प्रक्षेपित किया जाएगा
  • 29 जून 2019 को सभी परीक्षणों के बाद रोवर को लैंडर विक्रम से जोड़ा गया
  • 29 जून को लैंडर विक्रम को ऑर्बिटर से जोड़ा गया
  • 4 जुलाई को चंद्रयान-2 को प्रक्षेपण यान (जीएसएलवी एमके तृतीय-एम1) से जोड़ने का काम पूरा किया गया
  • 7 जुलाई को जीएसएलवी एमके तृतीय-एम1 को लॉन्च पैड पर लाया गया
  • 14 जुलाई को  15 जुलाई को जीएसएलवी एमके तृतीय-एम1/चंद्रयान-2 के प्रक्षेपण के लिए उल्टी गिनती शुरू हुई
  • 15 जुलाई को इसरो ने महज एक घंटे पहले प्रक्षेपण यान में तकनीकी खामी के कारण चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण टाल दिया
  • 18 जुलाई को चंद्रयान-2 के प्रक्षेपण के लिए श्रीहरिकोटा के दूसरे लॉन्च पैड से 22 जुलाई को दोपहर दो बजकर 43 मिनट का समय तय किया गया
  • 21 जुलाई को जीएसएलवी एमके तृतीय-एम1/चंद्रयान-2 के प्रक्षेपण के लिए उल्टी गिनती शुरू हुई
  • 22 जुलाई को  जीएसएलवी एमके तृतीय-एम1 ने चंद्रयान-2 को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया
  • 24 जुलाई को चंद्रयान-2 के लिए पृथ्वी की कक्षा पहली बार सफलतापूर्वक बढ़ाई गई
  • 26 जुलाई को दूसरी बार पृथ्वी की कक्षा बढ़ाई गई
  • 29 जुलाई को तीसरी बार पृथ्वी की कक्षा बढ़ाई गई
  • 2 अगस्त को चौथी बार पृथ्वी की कक्षा बढ़ाई गई
  • 4 अगस्त को इसरो ने चंद्रयान-2 उपग्रह से ली गई पृथ्वी की तस्वीरों का पहला सैट जारी किया
  • 6 अगस्त को पांचवीं बार पृथ्वी की कक्षा बढ़ाई गई
  • 14 अगस्त को चंद्रयान-2 ने सफलतापूर्वक ‘लूनर ट्रांसफर ट्रेजेक्टरी' में प्रवेश किया
  • 20 अगस्त को चंद्रयान-2 सफलतापूर्वक चंद्रमा की कक्षा में पहुंचा
  • 22 अगस्त को इसरो ने चंद्रमा की सतह से करीब 2,650 किलोमीटर की ऊंचाई पर चंद्रयान-2 के एलआई4 कैमरे से ली गई चंद्रमा की तस्वीरों का पहला सैट जारी किया
  • 21 अगस्त को चंद्रमा की कक्षा को दूसरी बार बढ़ाया गया
  • 26 अगस्त को इसरो ने चंद्रयान-2 के टेरेन मैपिंग कैमरा-2 से ली गई चंद्रमा की सतह की तस्वीरों के दूसरे सैट को जारी किया
  • 28 अगस्त को तीसरी बार चंद्रमा की कक्षा बढ़ाई गई
  • 30 अगस्त को चौथी बार चंद्रमा की कक्षा बढ़ाई गई
  • 1 सितंबर को पांचवीं और अंतिम बार चंद्रमा की कक्षा बढ़ाई गई
  • 2 सितंबर को लैंडर विक्रम सफलतापूर्वक ऑर्बिटर से अलग हुआ
  • 3 सितंबर : विक्रम को चंद्रमा के करीब लाने के लिए पहली डी-ऑर्बिटिंग प्रक्रिया पूरी हुई
  • 4 सितंबर को दूसरी डी-ऑर्बिटिंग प्रक्रिया पूरी हुई
  • 7 सितंबर को लैंडर ‘विक्रम' को चंद्रमा की सतह की ओर लाने की प्रक्रिया 2.1 किलोमीटर की ऊंचाई तक सामान्य और योजना के अनुरूप देखी गई, लेकिन बाद में लैंडर का संपर्क जमीनी स्टेशन से टूट गया
Galary Image: 
The Moon is the closest cosmic body at which space discovery can be attempted and documented.
Launcher and the Spacecraft
The Orbiter will observe the lunar surface and relay communication between Earth and Chandrayaan 2's Lander — Vikram.
Vikram Lander The lander was designed to perform India's first soft landing on the lunar surface.
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